एग्जाम : डोन्ट डू दिस - 1
- अशोक सिंह
परीक्षा की तैयारी कैसे करनी चाहिए, इस बात को लेकर स्टूडेंट्स, पेरेन्ट्स और टीचर्स के बीच हमेशा मतभेद की स्थिति देखी जा सकती है। सबके विचार और सोच अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित होते हैं। इनमें क्या सही है और क्या गलत इस बात का निर्धारण कर पाना मुश्किल है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि परीक्षा तैयारी का कोई निश्चित स्वरूप या फॉर्मूला भी नहीं होता है जिसके जरिए प्रभावी या निष्प्रभावी परीक्षा तैयारी के तरीकों का आकलन हो सके। संगीत सुनते हुए पढ़ाई :कई लोगों का मानना है इस प्रकार पढ़ने से ध्यान केंद्रित करने में काफी मदद मिलती है। हो सकता है कि यह बात कुछ फीसदी लोगों पर सच हो लेकिन इस बारे में वैज्ञानिक तर्क यही है कि दिमाग कीᅠग्रहण करने या ध्यान केंद्रित करने की क्षमता असीमित नहीं होती है ऐसे में पढ़ाई के साथ संगीत से न सिर्फ सामान्यतौर पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता बल्कि भटकने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता। एजुकेशनल सीडी या डीवीडी से पढ़ाई :निस्संदेह इस प्रकार की डीवीडी कई बार कठिन विषयों को ग्राफिक्स या एनीमेशन के माध्यम से समझाने का काम बखूबी करती हैं। लेकिन परीक्षा तैयारी के अंतिम दौर में नोट्स या टेक्स्ट बुक या अपनी क्लास वर्क की कॉपी के बजाय इस तरह की डिजिटल पढ़ाई करने से ज्यादा फायदा नहीं हो पाता। क्योंकि उनमें सही उत्तरों का फॉर्मेट नहीं होता है।
बिना नोट्स सीधे टेक्स्ट बुक से तैयारी :ऐसे युवा भी देखने में आते हैं जो नोट्स बनाने में विश्वास नहीं रखते और सीधे पाठ्यपुस्तकों से एक या दो बार चैप्टर को पढ़ लेने को ही अंतिम तैयारी मानते हैं। इस प्रकार की पढ़ाई से दिमाग में कितना संजोकर रखा जा सकता है यह समझना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है। बिना लिखे पढ़ाई की आदत : कंप्यूटर और इंटरनेट के इस डिजिटल युग में युवाओं की लिखने की आदत लगभग समाप्त हो चुकी है। ऐसे में सही तरह से प्रश्नों के उत्तर लिखना या नोट्स बनाना या रिविजन के दौरान लिखना नहीं के बराबर ही दिखाई पड़ता है। इस गलत प्रवृत्ति का भयंकर नुकसान उन्हें परीक्षा हॉल में लगातार 3 घंटे तक नहीं लिख पाने, लिखने में थकावट महसूस करने या आलस्य के कारण कम लिखने के रूप में भुगतना पड़ता है। जाहिर है, ऐसे उत्तरों के कारण कम अंक ही मिल पाते हैं।