Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

एक विजय गाथा है विजयादशमी

आत्मा का विजय पर्व है दशहरा

Advertiesment
हमें फॉलो करें रावण
FILE

विजयादशमी रामकथा का उत्कर्ष और चरम तो है ही, यह भारतवर्ष की प्रकृति और लोक की उत्सवावृत्ति का भी गतिमय गीत है। एक विजय गीत है। एक जय गाथा है। उत्सवप्रिया की प्रतीक्षा का आनंद में पर्यावसान है। एक संघर्ष का विराम है। अशुभ का अंत है। एक सत्य की अनगिनत रश्मियों में उतरती ज्योति है। राम कथा मन्दाकिनी है। एक बहती हुई स्रोतस्वनी है। इसमें वानस्पतिक संसार का, लोक का, समय का, देश का बहुस्वादी जल आकर मिला है।

हजारों वर्षों पूर्व इस भूमि पर मानव इतिहास की एक अभूतपूर्व और अविस्मरणीय घटना घटी। वह सद् की असद् पर विजय की गाथा बन गई। राम सत्य हैं। इसलिए वे अपराजेय तो हैं ही, उनकी शक्ति भी अमोघ है। राम-रावण का युद्ध सत्य और असत्य, धर्म और अधर्म के बीच हुआ ऐसा संग्राम है, जिसने सामाजिक संदर्भों को प्रभावित भी किया और उसके अंतस में मूल्यों को स्थापित भी किया।

राम कथा की मन्दाकिनी में हजारों वर्षों से नित-नया जुड़ता चला गया। जुड़ रहा है। विजय पर्व आज अकेला राम का जयघोष नहीं, वह भारत वर्ष की व्यापकता में समाहित राम का विजय घोष बन गया है। इस देश एवं समाज की व्यापकता में अन्तर्निहित राम से तात्पर्य उस ऊर्जा से है, जो संघर्ष में थकती नहीं। अंधेरे से डरती नहीं। असत्य से हारती नहीं। अपने एकान्त में टूटती नहीं। मौसमी हवाओं से बुझती नहीं विपरीतताओं के आगे झुकती नहीं। जो संघर्ष का उत्तर प्रति संघर्ष से और आराधन का उत्तर दृढ़ आराधन से देना जानती है।
webdunia
FILE

विजय पर्व में यह ऊर्जा कई कोणों से आकर राम कथा की धारा का ही नहीं, बल्कि इस देश की चेतना का या आत्मा का उत्सव रचती है। जब विजयादशमी होती है, तो उस उल्लास में शुम्भ-निशुम्भ को बिदारने का संकल्प-फल भी है। आदिशक्ति का ताली बजा-बजाकर अपने दल के साथ नृत्य भी है। शरद की दूधिया चांदनी में नहाई राधा और राधा के नेह में भींगते कृष्ण का अनुराग भी है।

झरती हुई शरद ज्योत्सना और ओस से भारी होती रजनी में श्रीकृष्ण और गोपियों के महारास का रस भी है। जीव तथा ब्रह्म के रिश्तों का नेह-छोह भी है। जड़त्व के खिलाफ बीज का अंकुरित होकर नए बीज की सृष्टि की अदम्य जिजीविषा भी है। शाल्य पूजन और महालक्ष्मी की अगवानी की आकुल-आतुरता भी है। और स्वाति नक्षत्र में बरसती बूंद के साथ ही चातक की प्यास की अमरता भी है।

झरती हुई शरद ज्योत्सना और ओस से भारी होती रजनी में श्रीकृष्ण और गोपियों के महारास का रस भी है। जीव तथा ब्रह्म के रिश्तों का नेह-छोह भी है। जड़त्व के खिलाफ बीज का अंकुरित होकर नए बीज की सृष्टि की अदम्य जिजीविषा भी है।

विजयादशमी के संदर्भ न तो एक दिवसीय हैं, और न ही एक देशीय। एक देशीय से तात्पर्य, यह केवल अयोध्या के प्रजातांत्रिक राजतंत्र या केवल भारतवर्ष तक सीमित नहीं हैं। मानवीय मूल्यों की प्रसार क्षमता भूगोल की सीमाओं को तोड़कर भूमंडलीकृत होने की होती है। लोक शास्त्र, पुराण और मिथकों के सूत्र इस पर्व से जुड़ते हैं। इन प्रसंगों में विजयादशमी की पीठिका राम जन्म या इसके भी पूर्व से आरंभ होती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi