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क्या इतना बुरा था रावण?

विजयादशमी पर्व विशेष

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दुनिया में रावण नाम का दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है। कोई भी पिता अपने बेटे का नाम रावण नहीं रखना चाहता, क्योंकि रावण को बुराई का प्रतीक मानकर सेकड़ों सालों से उसका पुतला दहन किया जाता रहा है।

पहले सिर्फ कुछ जगहों पर रावण के पुतले नहीं जलाए जाते थे, लेकिन अब बहुत-सी जगहों पर उनका पुतला दहन नहीं किया जाता। क्या रावण दहन अब सिर्फ बच्चों के मजे के लिए किया जाने वाला एक खेल मात्र है?

बहुत से लोगों से बात करने पर पता चलता है कि रावण ने इतना भी बुरा नहीं किया था कि उन्हें बुराई का प्रतीक मानकर प्रत्येक वर्ष उनका पुतला दहन करें। रावण विद्वान व्यक्ति थे और उन्होंने देश तथा धर्म के लिए बहुत से अच्छे कार्य भी किए थे। उनके अच्‍छे कार्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए।

माना जाता है कि साम, दाम, दंड और भेद सभी तरह से वे अपनी इच्‍छा पूरी करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। मान्यता अनुसार उनके इस मायावी और क्रूर कृत्यों के कारण सभी उनसे भयभीत रहते थे इसी कारण लोग उन्हें बुरा मानते थे। जबकि रावण ने जो कुछ भी किया वह अपने देश, धर्म, माता-पिता और अपने भाई-बहनों के लिए किया।

किसी को मारकर जश्न मनाए जाने की परंपरा आदिकाल से ही रही है, लेकिन यह कभी समझ में नहीं आया कि एक प्रकाण्ड पंडित की मौत के दिन उसका पुतला दहन करके जश्न मनाया जाए और अपनी वीरता का प्रदर्शन किया जाए। मिठाई बाँटें और दीप जलाऐँ। हिंदू धर्म के जानकार लोग इस कृत्य को धर्म का अंग तो कतई नहीं मानेगें।

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आज यदि आप अपने चारों ओर नजर घुमाएँगे तो पता चलेगा कि बुराई के हजारों जिंदा प्रतीक आपके आसपास हैं जो आपको और दुनिया को परेशान करते रहते हैं और आप हैं कि साल में एक बार बुराई के प्रतीक रावण का पुतला फूँककर खुश हो लेते हैं। एक दूसरे से गले मिलकर बधाइयाँ देते हैं और खीर-पूरी खाकर मजे उड़ाते हैं। कुछ तो शराब पीते हैं, जुआ खेलते हैं और रंडी नचाते हैं, क्या यह करना बुरा नहीं है?

रावण की एक गलती के बहाने उसकी तमाम विद्वता को पुतला बनाकर आग में झौंक दिया जाता है, और लंका से लूटे हुए स्वर्ण (शमी के पत्ते) को आपस में बाँटकर हर्ष का घोष किया जाता है। खुद कितनी गलती करते हैं जरा इसे भी काउंट करके देंखे।

किसी नेता के पुतला दहन पर नेता भड़क जाता है और उसका पुतला दहन करने वालों पर पुलिस लाठी चार्ज कर देती, लेकिन क्या रावण इतना बुरा था कि प्रतिवर्ष उसका पुतला जलाकर बुराई को खत्म करने की कसम खाएँ जबकि प्रति वर्ष बुराइयाँ बढ़ती जा रही है।

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