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विजयादशमी : जानिए कुछ खास बातें...

विजयादशमी की पौराणिक महत्ता

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दशहरा पर्व को भगवती के 'विजया' नाम पर भी इसे 'विजयादशमी' कहते हैं।

ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय 'विजय' नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।

विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास भोग कर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुंचे थे। इसलिए भी इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है।

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विजयादशमी की पौराणिक महत्ता के अनुसार शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी दिन प्रस्थान करना चाहिए।

इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है।

युद्ध करने का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं (महत्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोग) को सीमा का उल्लंघन करना चाहिए।

दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी।

तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के पास नौकरी कर ली थी।

जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी।

विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम द्वारा लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है।

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