श्रीराम ने भी किया था शमी पूजन...
विजयादशमी पर्व : शमी पूजन का महत्व
विजयादशमी पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। जन मानस में विजयादशमी 'दशहरा' के नाम से भी प्रचलित है। श्रद्धालुओं द्वारा दशहरा पर सायंकाल शमी वृक्ष का पूजन कर उससे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस परंपरा के पीछे शमी वृक्ष का महत्व छुपा है।
आश्विन (क्वार) माह के दशहरे के दिन अपराह्न को शमी वृक्ष के पूजन की परंपरा विशेष कर क्षत्रिय व राजाओं में रही है। आज भी यह परंपरा कायम है। कहते हैं कि ऐसा करने से मानव पवित्र हो जाता है। इसके लिए घर या गांव के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में स्थित शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है।
दशहरे के दिन शमी वृक्ष का पूजन अर्चन व प्रार्थना करने के बाद जल और अक्षत के साथ वृक्ष की जड़ से मिट्टी लेकर गायन-वादन और घोष के साथ अपने घर आने के निर्देश हैं।
शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र भी हैं जिनका उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों में भी अमंगलों और दुष्कृत्य का शमन करने, दुस्वप्नों का नाश करने वाली, धन देने वाली, शुभ करने वाली शमी के प्रति पूजा अर्पित करने की बात कही गई है। कहते हैं कि लंका पर विजय पाने के बाद राम ने भी शमी पूजन किया था।