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इतने राम कहाँ से लाऊँ...!

विजयादशमी विशेष

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हमें फॉलो करें ऑनलाइन रावण दहन
शरद शाही
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कलयुग की तुलना में त्रेता युग हर मामले में बेहतर कहा जाता है और आखिर हो भी क्यों नहीं, उस समय कम से कम इस बात का सुकून था कि रावण एक ही था और उसे एक राम ने ठिकाने लगा दिया लेकिन आज के परिवेश में हालात बहुत पेचीदा हैं। अब तो गली-गली में रावण हैं। इन्हें मारने के लिए इतने राम कहाँ से लाएँ? पुरातन गाथाओं में रक्तबीज नाम के एक दैत्य के बारे में पढ़ा है कि उसके लहू की हर बूँद से सैकड़ों नए रक्तबीज पैदा हो जाते थे।

कलयुग में लगता है कि यह वरदान आधुनिक रावणों को मिल गया है। जी हाँ, सियासत के रावणों को। फर्क सिर्फ इतना है कि इन्हें अपनी जमात की फौज खड़ी करने के लिए रक्त की बूँद की जरूरत भी नहीं पड़ती। ये अपने पसीने की चंद बूँदों से ही सैकड़ों रावण पैदा करने की क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि हम एक अरसे से हर वर्ष रावण को मारते हैं। उसे आतिशबाजी के साथ दहन भी कर देते हैं लेकिन अगले साल फिर वह अट्टहास करता हमारे सामने तनकर खड़ा हो जाता है। हम फिर मारते हैं, वह फिर आ जाता है। समस्या जस की तस।

इस अजब खेल में दो पाटन के बीच साबुत बचा न कोय की तर्ज पर पिस रही है वह पब्लिक जो हर बार रावण दहन देखने जाती है और खुशी-खुशी इस उम्मीद से घर लौटती है कि चलो रावण मर गया लेकिन हर बार होता है उसकी उम्मीदों पर तुषारापात। आजादी के बाद से लेकर आज तक सियासत के ये रावण इसी तरह आम आदमी को छकाते आ रहे हैं।

मैंने कहीं पढ़ा था कि महाभारत काल में एक व्यक्ति शापित हुआ था और उसे शाप मिला था कि महाबली भीम जो भी खाएगा, उसे निष्कासित वह करेगा। बस क्या था, बेचारा सारी जिंदगी लोटा लेकर ही बैठा रहा। यही शाप का दंश कलयुग में जनता भुगत रही है। खाते नेता हैं लेकिन निष्कासन।

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फिर भी इन रावणों में सब बुराइयाँ ही हों, ऐसा नहीं है। हमारे नेता अपने घर के बाहर कभी सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं करते। घर में नहीं है खाने, अम्मा चली भुनाने की लोकोक्ति की तरह वे इस बात की बिलकुल परवाह नहीं करते कि अपने घर के कितने सारे सदस्य भूख से बिलख रहे हैं, वे तो बस नाक ऊँची रखने के लिए कॉमनवेल्थ का आयोजन जरूर करेंगे और सभी पड़ोसियों को भोजन का न्यौता भी देंगे।

अब अगर मेहमानों के सामने घर का कोई सदस्य फटे-पुराने कपड़े पहने, कटोरा लिए आ गया तो सोचो कितनी बदनामी होगी। बस इसीलिए मेहमानों के आने के पहले घर के उन तमाम सदस्यों को बाहर खदेड़ दिया जाता है कि देखो इज्जत का सवाल है..मेहमान जब तक हैं, तुम कहीं और जाकर भीख माँगों।

राजधानी में उनके सामने बिलकुल मत आना। मेहमान आएँगे, खेलेंगे-खाएँगे। अब अगर उनके साथ थोड़ा-बहुत हमने भी खा लिया तो क्या हुआ? साथ तो देना पड़ता है न! नहीं तो मेहमान बुरा मान जाएँगे। ऐसे रावणों का वध करने के लिए क्या एक राम काफी होंगे? कतई नहीं।

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