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रावण अहंकार का दूसरा नाम है

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महाकवि तुलसी ने रावण के अत्याचारों का उल्लेख किया हैः

'अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा, धर्म सुनिअ नहिं काना।
तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ, जो कह बेद पुराना॥'

रावण अपनी नई संस्कृति की स्थापना के लिए पुरानी विधियों से जीवन जीने की कोशिश कर रहे लोगों को बुरी तरह सताता था। रावण के राज में एक ही कानून था - रावण। न्याय की अवधारणा लुप्त हो चुकी थी। रावण शासकों के क्रूर अहंकार का प्रतीक है। वह उसके सामने न झुकने वालों को खा जाता है, जिसका वर्णन रामचरित मानस में यूं हैः

'अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया॥
निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए॥'

राम प्रबल संकल्प के प्रबल प्रतीक हैं। आत्म शक्ति और सत्य के परम उपासक हैं। तभी तो राम यह प्रतिज्ञा करने का साहस करते हैं किः

'निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।'

राम और उनके वानर आम जनता के प्रतीक हैं।यह कथा आधुनिक अर्थों में इसलिए प्रासंगिक हो जाती है। अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाकर तो देखो, परमात्मा की शक्ति आपको राम बना देगी। खर दूषण की विशाल सेना के सामने एक मनुष्य का साहस कह रहा हैः

'हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥
रिपु बलवंत देख नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥'

कितना साहसी है यह मनुष्य! आदर्श है क्रांति का। ऐसे समय आवाज उठाने का, जब अपनी क्षमताओं को भूला मनुष्य साँस लेने में भी घबराता है।


फिल्म 'स्वदेस' में निर्देशक ने एक दृश्य रचा था जिसमें गाँव में रावण का पुतला दहन हो रहा है। उस वक्त एक संवाद है कि रावण अँधेरे में कितना सुंदर दिखाई देता है! वास्तव में रावण की सिर्फ इतनी ही उपयोगिता है कि उसकी काली पृष्ठभूमि में राम अधिक धवल रूप में सामने आते हैं। इस देश की यही गरिमा है कि इसने पुराण लिखे, राम कथा लिखी। यह कोई इतिहास है या सच में ऐसा हुआ, आज भी पंडितों के बीच विवाद का विषय है।

खैर, पंडित तो मनुष्य विवादों और बौद्धिक जुगाली के लिए ही बनता है पर इन कथाओं में सीधा अर्थ यही छुपा है कि इतिहास की चिंता मत करना। इतिहास तो हमेशा अपने को दोहराता है। तुम पकड़ लेना इसमें छुपे संकेतों को, राम-रावण में छुपे अर्थों को। इन राम कथाओं को रोशनी बनाना आने वाले कल के लिए, न कि उलझना इनकी ऐतिहासिकता को लेकर। यह तुम्हारा काम नहीं है।

इसे मशाल बनाओगे तो अपने अंदर छुपे अहंकारी रावण को मारकर उस राम से मिल पाओगे जिसके बिना तुम अतृप्त और अधूरे हो। रावण के साथ गुजारा असंभव है क्योंकि रावण एक अहंकार है जिसके मिटने की अनेकों कथाएँ भारतीय पुराणों में भरी पड़ी हैं। यह प्रतीक रावण जीने में भले आसान लगे पर वह मंजिल नहीं है, मंजिल तो राम ही है।

दशहरा बार-बार यही याद दिलाता है कि यदि रावण की तरह अहंकारी हो तो जलना निश्चित है। वर्तमान की दशाएँ राम नहीं, रावण ही पैदा कर रही हैं। तभी तो हर आदमी की जिन्दगी एक विषाद से भरी नजर आ रही है। चारों तरफ रावणों से भयाक्रान्त इस पृथ्वी के तल से आज यही आह निकल रही है कि-

'अब कोई राम नहीं, गम का धनुष जो तोड़े
जिंदगी तड़पती सीता के स्वयंवर की तरह'

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