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जवाबदेही कहां से लाओगे?

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जयदीप कर्णिक

हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग की एक फिल्म आई थी- जॉज़। यानी जबड़े-शार्क के जबड़े। 1975 में आई यह फिल्म कई मायनों में ऐतिहासिक थी और इसने पर्दे पर धूम मचा दी थी।

आज वह फिल्म उत्तराखंड त्रासदी के संदर्भ में याद आ रही है। अमेरिका के मैसाचुसैट्स राज्य के अमेटी समुद्र तट पर एक युवती समंदर में तैरते वक्त अचानक पानी में नीचे खींच ली जाती है। वहां के पुलिस प्रमुख को बाद में उस युवती की लाश समुद्र किनारे बरामद होती है।

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पोस्टमार्टम के बाद डॉक्टर बताते हैं कि इसे शार्क ने मारा है। पुलिस प्रमुख सोचते हैं कि ये तो यहां के लोगों के लिए बड़ा ख़तरा है। वो सोचते हैं कि तुरंत चेतावनी के बोर्ड लगाकर इस तट को बंद कर दिया जाए, लेकिन वहां के महापौर, पुलिस प्रमुख को ऐसा करने से रोक देते हैं, क्योंकि यह तटीय द्वीप अब एक बड़ा पर्यटन स्थल बन चुका है। वहां के उद्योगपति महापौर पर दबाव बनाते हैं कि तट को बंद ना किया जाए क्योंकि यह तो उनका कमाई का मुख्य 'सीजन' है।

पुलिस प्रमुख मन मसोसकर रह जाते हैं। पर वो सतर्क रहते हैं। एक दिन उनके सामने ही समुद्र में खेल रहे एक बच्चे को शार्क अपना शिकार बना लेती है...। इस घटना से पुलिस प्रमुख भीतर तक हिल जाते हैं। वे जबर्दस्त अपराध-बोध से भर जाते हैं। पहले मारी गई युवती को तो वे नहीं बचा सकते थे पर इस बच्चे को? ...उसे उन्होंने जानते-बूझते मौत के मुंह में धकेल दिया। इसी आत्मग्लानि से भरकर वे समुद्र तट को बंद कर देते हैं और शार्क को मारने के अभियान में जुट जाते हैं। अपनी जान पर खेलकर भी वो शार्क को मार देते हैं।

अब आइए उत्तराखंड पर। भारी बारिश होने की जानकारी मौसम विभाग द्वारा 48 घंटे पहले दे दी गई थी। विभाग द्वारा 15 जून को केदारनाथ, बद्रीनाथ और आसपास के इलाक़ों में अगले 72 घंटे के दौरान सामान्य से अधिक बारिश होने और बिजली कड़कने के साथ भारी बारिश की चेतावनी दी थी।

चेतावनी में साफ कहा गया था, 'अगले 72 घंटे के दौरान खासकर 16 जून की रात से भारी बारिश और भूस्खलन हो सकता है।' इतना ही नहीं, यह भी साफ कहा था कि यात्रियों को ऊपर पहाड़ पर नहीं जाने देना चाहिए। सर्वाधिक प्रभावित रुद्रप्रयाग के जिला प्रशासन को भी फैक्स और ई-मेल के जरिए इसके बारे में सूचना दे दी गई थी।

एक भू-वैज्ञानिक ने 20 साल पहले ही अपनी एक रिपोर्ट में चेताया था कि केदारनाथ में किसी भी दिन तबाही हो सकती है। क्या सावधानी बरती जानी चाहिए, कहां निर्माण होना चाहिए और कहां नहीं यह भी उन्होंने विस्तार से बताया था। उनकी रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी रही।
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इस चेतावनी को लेकर जो बयान वहां के जिम्मेदार अधिकारियों ने दिए वे हास्यास्पद और लज्जाजनक हैं। किसी ने कहा कि इस तरह की चेतावनी तो आती रहती है। ऐसी तबाही का अंदेशा थोड़े था!! एक ने कहा हम क्या करते, लोग हमारी कहां सुनते, सब ने अपनी बुकिंग करा रखी थी!! किसी को कोई अपराध बोध नहीं, कोई ग्लानि नहीं और आगे ऐसा न हो इसको लेकर भी कोई प्रतिबद्धता नजर नहीं आती।

मौसम की अचूक जानकारी दे सकने वाला 'वेदर डॉपलर' मंजूरी के 3 साल बाद भी नहीं लग पाया। आखिर किसकी जिम्मेदारी है? अगर लग भी जाता और पर्यटन से मिलने वाले पैसों कि खातिर उसे अनदेखा किया जाता तब?

एक भू-वैज्ञानिक ने 20 साल पहले ही अपनी एक रिपोर्ट में चेताया था कि केदारनाथ में किसी भी दिन तबाही हो सकती है। क्या सावधानी बरती जानी चाहिए, कहां निर्माण होना चाहिए और कहां नहीं यह भी उन्होंने विस्तार से बताया था। उनकी रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी रही। ऐसी अनेक लापरवाहियों की फेहरिस्त है। मगर इनके लिए जवाबदेही किसकी? क्या कोई एक भी अधिकारी या नेता है जिसका जमीर उस जॉज़ वाले पुलिस प्रमुख की तरह हो? जो अपनी गलती को सुधारने के लिए, अपने पाप के प्रायश्चित के लिए ही सही, भविष्य में ऐसा ना होने देने के लिए कमर कस लेगा?

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