Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

परिवर्तन, संक्रमण और उम्मीदों से भरा साल

साल 2013 की विदाई

हमें फॉलो करें परिवर्तन, संक्रमण और उम्मीदों से भरा साल
webdunia

जयदीप कर्णिक

समय का सिरा पकड़ना मुश्किल है। समय की अपनी गति और अपनी चाल है। अपनी सुविधा के लिए हमने समय को कालखंडों, कैलेंडरों और घंटों, मिनटों में बाँट लिया है। साल 2013 के कैलेंडर का बारहवाँ पन्ना बस उलटने ही वाला है। 2013 की पूर्णता और 2014 की दस्तक के बीच पीछे नज़र दौड़ाएँ तो दिखता है कि पुराने कैलेंडर ने कुछ सिरे खुले छोड़े थे.... उसी में तागा जोड़ते हुए इस साल कुछ नए सिरे हाथ लगते हैं।

webdunia
WD

भारत के फलक पर साल 2012 की पूर्णता के साथ फिज़ाओं में निर्भया के साथ हुए अन्याय की सिसकियाँ भी थीं और अन्याय के खिलाफ खड़े समाज की गूँज भी थी। पिछली देहरी पर अन्ना के आंदोलन के खत्म होने की टीस भी थी और उसी टीस से उपजी आम आदमी पार्टी की उम्मीद भी थी। इन सिरों को जोड़ते हुए हमने 2013 की शाम ढलते-ढलते आम आदमी पार्टी के सपने को सच होते देखा, निर्भया के कातिलों को सजा पाते देखा और हमने देखा कि निर्भया की मौत के एवज में मिले कठोर कानून ने तरुण तेजपाल जैसे नामी पत्रकार को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया।

दरअसल पिछले दो सालों में सामाजिक और राजनीतिक पटल पर भारत ने जो परिवर्तन देखे हैं वो कालजयी हैं। अधूरी आजादी की छटपटाहट ने जिस चिंगारी को जलाए रखा था अब उससे लपटें निकलने लगी हैं। समाज और राजनीति के इस संक्रमण काल में इन लपटों को जलाए रखना जरूरी है- तब तक, जब तक हम इस संक्रमण काल से निकल कर मुकम्मल परिवर्तन की मंजिल तक नहीं पहुँच जाते। देश में आई नई राजनीतिक और सामाजिक चेतना इन शोलों को हवा देती रहेगी। ये ही देश के भविष्य की दिशा तय करेगी। 'आम' से 'ख़ास' हो जाने वालों को आम बनाए रखने के लिए ये जरूरी भी है।

परिवर्तन और संक्रमण की इसी कुलबुलाहट के बीच हम ख़ुद को 2014 के स्वागत के लिए तैयार कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि यहाँ छूटे सिरे वहाँ भी नज़र आएँगे और वहीं से सिलसिला जोड़कर हम अपना सफर जारी रखेंगे
webdunia
जब हम साल 2013 के अक्स को गौर से देखते हैं तो हमें दिखाई देता है मंगल ग्रह की ओर बढ़ता हमारा मंगलयान, और दिखाई देती है फैलिन तूफान से हमारी लड़ाई, हमें दिखाई देती है संगम तट पर कुंभ के मेले में उत्सव मनाती भारतीयता। साथ ही हमें सुनाई देते हैं उत्तराखंड की पहाड़ियों से आने वाले करुण स्वर और दिखती हैं भारतीय सैनिकों की सिर कटी लाशें और सुनाई देता है इलाहबाद रेलवे स्टेशन पर पसरा मौत का सन्नाटा। हमें दिखाई देती है आम आदमी की जीत में मुस्कराती अरविंद केजरीवाल की तस्वीर और दिखते हैं वो सपने जिन्हें हिंदुस्तान पता नहीं कब से संजो रहा है।

दुनिया को सपने दिखाने वाले ओबामा को अपनी दूसरी पारी में अपने ही देश में मशक्कत करते हुए देखना भी 2013 की एक बड़ी तस्वीर है। मंदी की गिरफ्त से बाहर आने को प्रयत्नरत दुनिया के सारे मुल्क धीरे ही सही इस दिशा में कुछ ठोस कदम आगे बढ़ा पाए हैं। मिस्र में निर्वाचित राष्ट्रपति को बेदखल कर दिया गया और सीरिया और थाईलैंड चाह कर भी स्थिर नहीं हो पा रहे।

परिवर्तन और संक्रमण की इसी कुलबुलाहट के बीच हम ख़ुद को 2014 के स्वागत के लिए तैयार कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि यहाँ छूटे सिरे वहाँ भी नज़र आएँगे और वहीं से सिलसिला जोड़कर हम अपना सफर जारी रखेंगे।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi