Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पेड़ पर लटकी संवेदनाएँ

हमें फॉलो करें पेड़ पर लटकी संवेदनाएँ
webdunia

जयदीप कर्णिक

FILE
फेसबुक पर जब पेड़ से लटकी दो किशोरियों की तस्वीर देखी तो सहसा यकीन ही नहीं हुआ कि ये सच है। लगा कि ये सोशल मीडिया पर भी लोग पता नहीं तस्वीर जोड़कर क्या बना देते हैं। पर इस मामले की सचाई ख़ून जमा देने वाली थी। उत्तरप्रदेश के बदायूँ जिले के कटरा शहादतपुर गाँव में पेड़ पर वो दो लाशें नहीं, दरअसल हमारी संवेदनाएँ, हमारी शर्म, हमारा घिनौना जातिवाद, हमारी सामंती पुलिस व्यवस्था, हमारे सैफई के उत्सव, हमारा उदारवाद ... सब के सब नंगे होकर लटके थे। अगर मीडिया न हो तो पता नहीं ऐसे कितने ही पेड़ लाशों को टाँगकर ऐसे ही खड़े रह जाएँ और हमारी नंगई फिर भी ढँकी रहे।

ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उन जवानों के घर समय पर नहीं जा पाए जिनके सिर काटकर पाकिस्तानी सैनिक ले गए थे। ये भी और बात है कि कुंभ मेले के दौरान इलाहबाद रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ के बाद अखिलेश यादव के पास वहाँ जाने के लिए समय नहीं था।

ये भी अलग बात है कि मुजफ्फरनगर दंगे में मारे गए लोगों के परिवार वालों के आँसू भी नहीं सूखे थे कि सैफई में उत्सव मन रहा था। लोकसभा चुनाव में यादव परिवार के अलावा कोई सीट नहीं आ पाई। ये सबक भी काफी नहीं है। पूरे उत्तर प्रदेश में बिजली को लेकर हाहाकार मचा है। बदायूँ को लेकर देश-दुनिया का मीडिया थू-थू कर रहा है। पर एक पत्रकार वार्ता में अराजकता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा- "आप लोग तो सुरक्षित हैं ना, फिर क्यों चिंता करते हैं?" अफसोस होता है जब एक युवा मुख्यमंत्री यों असंवेदनशील होकर बात करता है।

webdunia
बदलाव की बेचैनी केवल सरकारों के बदल जाने से मुकाम पर नहीं पहुँच पाएगी। असली बदलाव तो तभी होगा जब समाज के भीतर से बदलाव की ये लहर उठे। हम जब कपड़े पहनें और नाख़ून काटें तो सचमुच सभ्य बनें.....
webdunia
इतना हंगामा मचने के बाद चंद सिपाहियों को सस्पेंड किया गया है। क्या उन्हें पता है कि जब पीड़ित लड़कियों के परिवार वाले थाने पर गए तो उनकी जात पूछी गई!! क्या ये महज संयोग है कि सारे आरोपी भी उसी वर्ग के हैं जिस वर्ग के थाने में मौजूद पुलिस वाले? क्या जात देखकर कार्रवाई तय होगी? उसके बाद भी ये दंभ भरे जवाब? निर्भया की मौत के बाद जो बड़े-बड़े दावे किए गए थे उनका क्या हुआ? या ये सब बस होता ही रहेगा? दस हज़ार की आबादी वाले कटरा शहादतपुर में बड़ी संख्या दलितों की है पर पुलिस प्रशासन में बैठे अभिजात्य उन पर भारी पड़ जाते हैं.... ये ही तो अब तक होता आया है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस। तो फिर क्यों हम सभ्य, आधुनिक समाज होने का दंभ भरें। उतारें अपने ये झूठे कपड़े और लटक जाए उन पेड़ों पर.....।

बदलाव की बेचैनी केवल सरकारों के बदल जाने से मुकाम पर नहीं पहुँच पाएगी। असली बदलाव तो तभी होगा जब समाज के भीतर से बदलाव की ये लहर उठे। हम जब कपड़े पहनें और नाख़ून काटें तो सचमुच सभ्य बनें..... वो सुबह कभी तो आएगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi