क्रिसमस आने के बहुत पहले से ही मार्क ज़ुकरबर्ग समूचे भारत के लिए सांता क्लॉज़ बनने के लिए उतावले हुए जा रहे थे। सितंबर में प्रधानमंत्री मोदी का फेसबुक मुख्यालय जाना और अक्टूबर में ख़ुद ज़ुकरबर्ग का यहाँ आना, इसके लिए आवश्यक भूमिका बना रहे थे। अक्टूबर में भी सभी बड़े अखबारों के पन्ने फ़ेसबुक के विज्ञापनों से रंगे हुए थे और अभी पिछले एक हफ्ते से तो मानो विज्ञापनों की बाढ़ सी आई हुई है। टेलीविज़न पर भी लगातार विज्ञापन आ रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?
भारत के 20 करोड़ से अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 13 करोड़ लोग फेसबुक के उपयोगकर्ता हैं। अमेरिका के बाद दुनिया में फेसबुक के सर्वाधिक उपयोगकर्ता भारत में ही हैं। ...और ये सब बिना किसी विज्ञापन या प्रचार के ही फेसबुक से जुड़ गए हैं। इसमें भी कोई शक नहीं कि जल्द ही फेसबुक के सर्वाधिक उपयोगकर्ता भारत में ही होंगे। हम देख सकते हैं कि अपनी बात लिखने, कहने, तस्वीर या वीडियो फेसबुक पर साझा करने को लेकर लोगों में किस कदर उत्साह है और कुछ हद तक तो दीवानगी भी है। फिर ये इतनी विज्ञापनबाज़ी क्यों? फेसबुक को लेकर इतना हंगामा क्यों बरपा है और क्यों हमें ट्राई यानी भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण को लिखने के लिए बार-बार कहा जा रहा है? आइए समझते हैं?
फ्री-बेसिक्स क्या है? : फ्री-बेसिक्स नाम की इस सुविधा को पहले फ़ेसबुक ने पहले internet.org के नाम से बाज़ार में उतारा था। फिर अचानक इसका नाम फ्री-बेसिक्स कर दिया गया। एयरटेल ज़ीरो की ही तरह इंटरनेट डॉट ओआरजी का भी तगड़ा विरोध हुआ था। एयरटेल को तो पैर पीछे खींचने पड़े थे पर फेसबुक ने रिलायंस कम्यूनिकेशन के साथ मिलकर इंटरनेट डॉट ओआरजी का नाम बदलकर फ्री-बेसिक्स सेवा को शुरू कर दिया था।
फ्री-बेसिक्स दरअसल एक ऐसी सुविधा है जिससे आप अपने मोबाइल पर बिना डेटा प्लान लिए भी इंटरनेट से जुड़ सकते हैं और सामग्री को देख-पढ़ सकते हैं। केवल इतना भर जानेंगे तो स्वाभाविक ही आप पूछेंगे कि अरे वाह!! ये तो बड़ी अच्छी बात है– अपने मोबाइल पर बिना डेटा प्लान लिए भी इंटरनेट से जुड़ पाना तो कमाल की सुविधा है? फिर तो मार्क ज़ुकरबर्ग सचमुच के सांता क्लॉज़ निकले!! फिर दिककत कहाँ है? तो ये तथ्य भी जान लीजिए –
1. फ्री-बेसिक्स केवल रिलायंस कम्यूनिकेशन के ग्राहकों के लिए ही उपलब्ध होगी।
2. इसके लिए फेसबुक और रिलायंस कम्यूनिकेशन के बीच विशेष अनुबंध है।
3. डेटा पर ख़र्च तो फिर भी होगा, उपभोक्ताओं से नहीं लेंगे तो किसी अन्य रूप में ज़रूर वसूलेंगे।
4. सबसे अहम बात ये है कि इस सुविधा से आप इंटरनेट पर उपलब्ध केवल वो ही सामग्री देख पाएँगे जो फेसबुक तय करे!!
5. इसका मतलब फेसबुक ऐसे उपयोगकर्ताओं के लिए इंटरनेट का चौकीदार बन जाएगा। वो ही तय करेगा कि आपके लिए इंटरनेट का मतलब क्या हो?
6. अभी ये कहा जा रहा है कि फ्री-बेसिक्स पर विज्ञापन के ज़रिए कमाई नहीं की जाएगी, पर आगे ऐसा नहीं होगा इसका कोई उल्लेख नहीं है।
इस सारे मसले पर हंगामा तब खड़ा हुआ जब 12 दिसंबर को ट्राई ने एक पत्र लिखकर रिलायंस इंफोकॉम से ये सेवा फिलहाल बंद करने के लिए कहा। क्या फ्री-बेसिक्स या उसके जैसी अन्य सेवाएँ इंटरनेट की स्वतंत्रता का हनन करती हैं? इसको लेकर ट्राई ने 30 दिसंबर तक लोगों से सुझाव माँगे थे। फिर 7 जनवरी तक का समय सेवा प्रदाताओं को इस पर अपनी राय रखने के लिए दिया जाएगा। यही वजह है कि आप भी अपने फेसबुक पेज पर ये सूचना या नोटिफिकेशन बार-बार देख रहे होंगे कि आपके मित्र फ्री-बेसिक्स के समर्थन में ट्राई को लिख रहे हैं, आप भी लिखिए। कई लोग बिना इसको गहराई से समझे बस क्लिक करते जा रहे हैं। और ये बड़ा उदाहरण है कि कैसे हमारे देश में पढ़े-लिखे लोगों को भी आसानी से भरमाया जा सकता है। कुछ दिनों पहले के आँकड़े के मुताबिक लगभग 32 लाख लोग अपने फेसबुक से ट्राई को इस तरह के संदेश भेज चुके हैं। इनमें से अधिकांश से जब आप पूछेंगे कि उन्होंने किसका और क्यों समर्थन किया है तो नहीं बता पाएँगे।
फेसबुक करोड़ों रुपए के विज्ञापन दे रहा है। मार्क ज़ुकरबर्ग ख़ुद भारत में कई दिग्गजों को अपनी मुहिम का समर्थन करने के लिए फ़ोन और ई-मेल से संपर्क कर रहे हैं जिनमें पे-टीएम के प्रमुख विजय शर्मा शामिल हैं। अपने फ्री-बेसिक्स के समर्थन में फेसबुक के तर्क भी देख लेते हैं–
1. इंटरनेट डॉट ओआरजी की तरह अब चुनिंदा प्रकाशकों नहीं बल्कि निर्धारित तकनीकी अहर्ताएँ पूरी करने वाले डिजिटल प्रकाशकों और अनुप्रयोग निर्माताओं को स्थान देंगे।
2. ये भारत के उन करोडों लोगों को जोड़ने के लिए है जो अभी तक इंटरनेट से नहीं जुड़ पाए हैं।
3. ये केवल शुरुआत के लिए है। महत्व समझ लेने के बाद उपयोगकर्ता ख़ुद ही पैसा खर्च कर चयन के लिए स्वतंत्र होगा।
4. फ्री-बेसिक्स पर शिक्षा, स्वास्थ्य और ख़ेती-किसानी से जुड़ी सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी।
5. ख़ुद मार्क ज़ुकरबर्ग ने हाल ही में एक अंग्रेज़ी अखबार में लेख लिखकर फ्री-बेसिक्स की ज़ोरदार वकालत की है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि कुछ लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
दूसरी ओर नेट-स्वतंत्रता के पक्षधरों ने भी कमर कस ली है। वे लगातार फेसबुक के फ्री-बेसिक्स का विरोध कर रहे हैं। वो मानते हैं कि एयरटेल ज़ीरो की ही तरह ही फ्री-बेसिक्स भी नेट-स्वतंत्रता का हनन करता है। दरअसल ना तो ये फ्री यानी मुफ़्त है ना ही सही मायने में बेसिक यानी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि फेसबुक कौन होता है तय करने वाला कि इंटरनेट पर कौन-सी सामग्री बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति करती है और उसका प्रदाता कौन हो? फेसबुक जो ख़ुद इंटरनेट के मैदान का बड़ा और व्यावसायिक खिलाड़ी है, क्या वो वाकई निष्पक्ष होकर ऐसा कर पाएगा? क्या वो अपने हितों को आगे नहीं रखेगा? हाल ही में अपनी नई कंपनियां खोलने वाले 9 सीईओ ने ट्राई को ख़त लिखकर फ्री-बेसिक्स का कड़ा विरोध किया है।
कुल मिलाकर नेट-स्वतंत्रता बनाम फ्री-बेसिक्स के बीच ज़ोरदार और महत्वपूर्ण बहस छिड़ी हुई है। ये बहस बहुत ज़रूरी भी है। दोनों ही पक्षों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए। आख़िर मामला आधुनिक युग में इंसान की बुनियादी ज़रूरत बनते जा रहे इंटरनेट की स्वतंत्रता से जुड़ा है और जिस स्पैक्ट्रम पर ये इंटरनेट सवार है वो भी बहुत बेशकीमती संसाधन है जिसके दुरुपयोग की इजाज़त किसी को नहीं मिलनी चाहिए।