Trump increased worlds nuclear arms race: अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हवाई हमले, जिन्हें 'ऑपरेशन मिडनाइट हैमर' नाम दिया गया था, ने वैश्विक परमाणु नीतियों को हिलाकर रख दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को 'पूरी तरह नष्ट' कर दिया, लेकिन अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स और वैश्विक विश्लेषण बताते हैं कि यह हमला न केवल ईरान को गुप्त रूप से परमाणु हथियार हासिल करने की ओर धकेल सकता है, बल्कि अन्य देशों में भी परमाणु हथियारों की होड़ को बढ़ावा दे सकता है। यह कार्रवाई मौजूदा परमाणु शक्ति संपन्न देशों में यह डर पैदा कर रही है कि अमेरिका और इजराइल उनकी सुविधाओं पर भी मनमाने ढंग से हमला कर सकते हैं। क्या ट्रम्प ने दुनिया को एक खतरनाक दौर में धकेल दिया है, जहां परमाणु हथियार ही एकमात्र सुरक्षा गारंटी बन गए हैं?
22 जून, 2025 को अमेरिका ने बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स और मासिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर्स (बंकर-बस्टर बम) का उपयोग कर ईरान के फोर्डो, नतांज और इस्फहान में स्थित परमाणु ठिकानों पर हमला किया। ट्रम्प ने इन हमलों को हिरोशिमा और नागासाकी की बमबारी से तुलना करते हुए 'निर्णायक' बताया। हालांकि, पेंटागन की लीक रिपोर्ट्स संकेत देती हैं कि हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को केवल 6-12 महीनों के लिए पीछे धकेला है। भूमिगत संवर्धन प्रणालियां, सेंट्रीफ्यूज और कुछ समृद्ध यूरेनियम सुरक्षित रहे, क्योंकि ईरान ने पहले ही कुछ सामग्री को गुप्त स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया था। ईरान ने स्वीकार किया कि उसके परमाणु ठिकाने 'बुरी तरह क्षतिग्रस्त' हुए, लेकिन उसने परमाणु महत्वाकांक्षाओं को त्यागने का कोई संकेत नहीं दिया। इजराइली खुफिया जानकारी के अनुसार, ईरान पहले से ही हथियार डिजाइन पर काम कर रहा था और एक 'छिपा परमाणु किला' होने की संभावना भी जताई जा रही है।
वैश्विक परमाणु प्रसार और अन्य परमाणु शक्तियों की चिंताएं : आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के डेरिल किमबॉल ने चेतावनी दी कि ये हमले गैर-परमाणु देशों को यह संदेश दे सकते हैं कि परमाणु हथियार ही ऐसी हमलों से बचाव का एकमात्र तरीका हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में कहा गया कि ईरान जैसे देश की तुलना में उत्तर कोरिया जैसे परमाणु शक्ति संपन्न देशों को इस तरह के हमलों का सामना नहीं करना पड़ता, जो अन्य देशों को परमाणु हथियार हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
इसके अलावा, मौजूदा परमाणु शक्ति संपन्न देशों —रूस, चीन, उत्तर कोरिया, भारत, पाकिस्तान, ब्रिटेन, फ्रांस, और संभावित रूप से न्यूक्लियर हथियार की चाह में सोच रहे देशों में यह डर बढ़ रहा है कि अब अमेरिका की सैन्य और खुफिया क्षमताएं उनकी परमाणु सुविधाओं को भी निशाना बना सकती हैं।
रूस : रूस, जिसके पास दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु शस्त्रागार (लगभग 5,977 हथियार, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2024 के अनुसार) है, ने इन हमलों की कड़ी निंदा की। पूर्व रूसी अधिकारी दिमित्री मेदवेदेव ने एक एक्स पोस्ट में दावा किया कि यह कार्रवाई अन्य देशों को ईरान को परमाणु हथियार प्रदान करने के लिए प्रेरित कर सकती है, हालांकि यह दावा असत्यापित है। रूसी विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की बंकर-बस्टर तकनीक उनकी गहरी भूमिगत सुविधाओं को खतरे में डाल सकती है। क्रेमलिन ने संकेत दिया है कि वह अपनी परमाणु रक्षा को और मजबूत करेगा, संभवतः नए हाइपरसोनिक डिलीवरी सिस्टम पर निवेश बढ़ाकर।
चीन : चीन, जिसके पास लगभग 410 परमाणु हथियार हैं और वह 2035 तक इसे 1500 तक (SIPRI 2024) बढ़ाने की योजना बना रहा है। चीन ने इन हमलों को 'परमाणु संप्रभुता पर हमला' करार दिया। चीनी स्टेट मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने चेतावनी दी है कि यह कार्रवाई वैश्विक परमाणु स्थिरता को कमजोर करती है। बीजिंग को डर है कि अमेरिका और इजराइल की खुफिया क्षमताएं उनकी भूमिगत सुविधाओं, जैसे युक्सी प्रांत में, को निशाना बना सकती हैं। चीन ने हाल ही में अपनी परमाणु सुविधाओं को और गहरा करने और साइबर सुरक्षा बढ़ाने की योजनाएं शुरू की हैं।
उत्तर कोरिया : उत्तर कोरिया ने इन हमलों को अपने परमाणु कार्यक्रम को उचित ठहराने के लिए इस्तेमाल किया। उत्तर कोरिया के पास अनुमानित 50 परमाणु हथियार हैं। किम जोंग-उन ने एक बयान में कहा कि परमाणु शक्ति ही साम्राज्यवादी हमलों से बचाव की गारंटी है। प्योंगयांग को डर है कि अमेरिका की बंकर-बस्टर तकनीक उनकी गहरी सुरंगों को निशाना बना सकती है, जिसके जवाब में वे और अधिक आक्रामक परमाणु परीक्षण कर सकते हैं।
भारत और पाकिस्तान : दक्षिण एशिया की परमाणु शक्तियां भारत (लगभग 164 हथियार) और पाकिस्तान (लगभग 170 हथियार, SIPRI 2024), इस हमले को क्षेत्रीय संतुलन के लिए खतरे के रूप में देख रहे हैं। पाकिस्तान, जिसका परमाणु कार्यक्रम पहले से ही वैश्विक जांच के दायरे में है, को डर है कि अमेरिका और इजराइल उसकी सुविधाओं जैसे खुशाब रिएक्टर को निशाना बना सकते हैं। इसने पाकिस्तान को अपनी सुविधाओं को और गुप्त करने और मोबाइल लॉन्चरों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है। भारत हालांकि अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, क्षेत्रीय अस्थिरता और चीन के साथ तनाव के कारण सतर्क है। भारतीय विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यह हमला क्षेत्र में परमाणु होड़ को बढ़ा सकता है।
ब्रिटेन और फ्रांस : नाटो के परमाणु शक्ति संपन्न देशों (ब्रिटेन: 225 हथियार, फ्रांस: 290 हथियार) ने आधिकारिक तौर पर हमले का समर्थन किया, लेकिन निजी तौर पर चिंता जताई कि यह परमाणु अप्रसार संधि (NPT) को कमजोर कर सकता है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कूटनीति की वकालत की, यह संकेत देते हुए कि एकतरफा हमले वैश्विक स्थिरता को खतरे में डाल सकते हैं।
इजराइल : हालांकि इजराइल आधिकारिक तौर पर परमाणु शक्ति नहीं है, लेकिन इसके पास 90 हथियार होने का अनुमान है। इस हमले में इज़राइल की खुफिया जानकारी और रणनीतिक समर्थन महत्वपूर्ण था, लेकिन यह अन्य परमाणु शक्तियों को सतर्क कर सकता है कि इजराइल की गुप्त परमाणु क्षमता भी भविष्य में जांच के दायरे में आ सकती है।
ईरान का गुप्त परमाणु हथियारों की ओर बढ़ना : यह दावा कि ट्रम्प के हमलों ने 'यह सुनिश्चित कर दिया' कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार हासिल करेगा, कई कारकों पर निर्भर करता है:
पहले से मौजूद गुप्त प्रयास : 2018 में इजराइली खुफिया जानकारी ने ईरान के गुप्त हथियार डिजाइनों का खुलासा किया था। ये हमले इस इरादे को और मजबूत कर सकते हैं।
बचे हुए संसाधन : खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ईरान की भूमिगत सेंट्रीफ्यूज और समृद्ध यूरेनियम का एक हिस्सा सुरक्षित है। एक 'छिपा परमाणु किला' की अफवाहें भी हैं, जो फोर्डो से गहरा हो सकता है।
बाहरी समर्थन : मेदवेदेव का दावा कि कुछ देश ईरान को परमाणु हथियार दे सकते हैं, असत्यापित है। हालांकि, रूस या उत्तर कोरिया जैसे देशों से तकनीकी सहायता की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।