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सहमति से सेक्स की उम्र पर वबाल

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जयदीप कर्णिक

जाति और धर्म की दीवारों के परे लगभग पूरा देश ही आंदोलित हो गया। सहमति से सेक्स कि उम्र 16 साल होनी चाहिए या 18 साल इस पर ख़ूब बहस चल रही है।

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निर्भया कांड के बाद महिलाओं के ख़िलाफ होने वाले यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सरकार अपनी प्रतिबद्धता दिखाना चाहती थी। इसीलिए कानून लागू करने के लिए उसने अध्यादेश का सहारा लिया। इसके प्रावधान जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों और विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों द्वारा दिए गए सुझावों पर आधारित हैं। इसमें महिलाओं के ख़िलाफ होने वाली यौन हिंसा को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। लड़कियों का पीछा करना, छेड़छाड़, मोबाइल से क्लिप बना लेना आदि मुद्दों पर कड़े प्रावधान हैं। लेकिन जिस प्रावधान ने सबसे अधिक ध्यान खींचा वो है सहमति से सेक्स की उम्र को 18 से घटाकर 16 साल करना।

आगे बढ़ने से पहले ये स्पष्ट कर दूँ कि ये जो सारा देश आंदोलित है, ये जो ख़ूब बहस हो रही है, इस कानून को, या भले ही उसके केवल एक प्रावधान को लेकर, ये बहुत शुभ संकेत है, ये सभ्य और जागरूक समाज कि निशानी है और इस तरह के बहस-मुबाहिसों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

बगैर इस बहस में पड़े कि रजामंदी से सेक्स की उम्र 16 साल करने वाला ये प्रावधान सही है या नहीं, दो महत्वपूर्ण बातें इस संदर्भ में समझ लेना आवश्यक है- पहली यह कि भारत में कानून के मुताबिक ही सहमति से सेक्स की उम्र 16 साल ही रही है, 1983 से लेकर अभी चंद महीनों पहले तक। ज्ञान का अभाव, चेतना का अभाव, जागृति का अभाव और जानकारी का अभाव क्या कर सकता है - यह कानून उसका एक बड़ा उदाहरण है। जब तक पता नहीं था तब तक ना संस्कृति आहत हो रही थी ना समाज। आज भी दिक्कत इसकी प्रस्तुति को लेकर है।

दूसरी बात यह कि 1983 से जो उम्र 16 साल थी उसे 4 महीने पहले बाल यौन शोषण रोकथाम कानून के द्वारा 18 साल कर दिया गया था। और अब यह जो अध्यादेश आया है उसमें भी इसे 18 साल ही रखा गया था। कुछ सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया और इसे फिर 16 साल कर दिया गया। सबको लग रहा है कि अचानक 16 साल कर दिया जो कि सही नहीं है।

तो ये तो थी 16 साल और 18 साल से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारी। अब सवाल यह उठा कि जब शादी की उम्र 18 साल है, वयस्क होने की उम्र 18 साल है, मतदान की उम्र 18 साल है तो फिर सहमति से सेक्स की उम्र 16 साल क्यों? आगे सवाल यह कि अगर पिछले 30 साल से भी यह विसंगति बनी हुई थी तो क्यों थी? अगर आप 16 साल कि उम्र में शादी नहीं कर सकते तो सेक्स क्यों कर सकते हो? इसका मतलब तो यह कि आप खुले आम शादी से पूर्व सेक्स कि अनुमति दे रहे हैं!! आप मान रहे हैं कि शादी से पहले सेक्स का अनुभव है वो ले ही लेना चाहिए?

.... बस ये जो विवेचना है इस कानून की वहीं जाकर सबकुछ गड़बड़ा जाता है... ये भी पता चलता है कि पश्चिम से आयातित विचार या कानून क्या गुल खिला सकते हैं या फिर समान परिस्थितियों में भी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का ध्यान ना रखा जाए तो कैसे गंभीर दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।

इससे जुड़ी दो-तीन महत्वपूर्ण बातें जिनका उल्लेख जरूरी है। हमारे यहाँ शादी से पहले यौन संबंधों को वृहत्तर समाज ने कभी मान्य भी नहीं किया और बढ़ावा भी नहीं दिया। जिस तरह भारत कई विरोधाभासों से भरा देश है वैसे ही इसका उलट भी हमें मिलेगा। कई जातियों, कबीलों और छोटे समुदायों में इस संबंध में विसंगतियाँ भी मिलेंगी। बहुत सारे लोग अन्य दावे भी करेंगे। पर मोटे तौर पर यह ही माना और मनवाया गया है कि शादी से पूर्व यौन संबंध अच्छी बात नहीं है। शादी पूर्व क्या हमारे यहाँ तो आँखों की शरम और बड़ों के लिहाज जैसे कुछ अलिखित कानूनों के कारण आज भी पति-पत्नी भी अपने प्यार के इजहार की दैहिक अभिव्यक्ति को केवल अपने बेडरूम तक ही सीमित रखते हैं।

पश्चिमी देशों के समाज की बनावट ऐसी नहीं है। वहाँ शादी से पहले यौन संबंध बना लेना आम बात है। समाज की बनावट ही कुछ ऐसी है। वयस्क होने पर बच्चे माँ-बाप के साथ नहीं रहते। इसीलिए आँखों की शर्म और बड़ों का लिहाज भी आड़े नहीं आता। तभी तो पेरू जैसे देश भी हैं, जहाँ सहमति से सेक्स की उम्र 12 साल है! ब्रिटेन और अमेरिका में यह उम्र 16 साल है जबकि अमेरिका के ही एक राज्य टेक्सास में ये उम्र 14 साल है। उनकी दिक्कत ये है कि अगर हम बच्चों को शादी से पहले यौन संबंध बनाने से रोक नहीं सकते तो कम से कम ऐसा तो ना हो कि वो संबंध बना लें और उन पर बलात्कार या ऐसा कोई मामला दर्ज हो जाए !!

ऐसा भी नहीं कि पश्चिम में इसको लेकर चिंता नहीं। ब्रिटेन में तो बहुत समय तक सहमति से सेक्स की उम्र 13 साल थी। 1885 में हुए एक आंदोलन जिसमें ये चिंता जताई गई कि इससे बच्चों का यौन शोषण हो रहा है, इसे बढ़ाकर 16 साल किया गया।

तो फिर वो ही सवाल कि हमारे यहां 16 साल का क्या औचित्य? ... दिल्ली सेशन कोर्ट का एक फैसला इस संबंध में विचारणीय है - गाजियाबाद का एक लड़का एक साढ़े सत्रह साल की लड़की को लेकर भाग गया। लड़की के भाई ने लड़के पर बलात्कार का आरोप लगा दिया। कोर्ट में मुकदमा लंबा चला। जज कामिनी लाउ ने लड़के को बाइज्जत बरी कर दिया और कहा कि चूंकि दोनों विवाह के बाद राजी-खुशी रह रहे हैं, उनका बच्चा भी है तो बलात्कार का आरोप नहीं लग सकता। इन्हीं जज ने यह भी कहा कि उम्र को बढ़ाकर 18 साल करना 'पिछड़ेपन' कि निशानी है। ... और 'बेख़ौफ आजादी' जैसे बहुत सारे संगठन उनकी इस बात से सहमत भी हैं।

ऐसा विरोधाभास क्यों है? - इसलिए है कि आजादी के बाद से ही और ख़ास तौर पर पिछले तीन दशकों में दो अलग - हिंदुस्तान आकार ले रहे हैं। एक वही शर्म लिहाज वाला पुराना हिंदुस्तान (हालाँकि उसके भीतर आया ख़ोखलापन और पाखंड एक अलग मसला है) और दूसरा 'मेट्रो कल्चर' में पलने-बढ़ने वाला नया हिंदुस्तान। समस्या यह है कि इस नए हिंदुस्तान तक विकृतियाँ कब कैसे दबे पाँव पहुँच रही है, कैसे हमारा पारिवारिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है, इस उच्छृंखलता के दूरगामी परिणाम क्या होंगे इस पर तो हमने ना विचार किया ना कभी समय दिया।

हमें अपने किशोरों से और उनके दैहिक आकर्षण से जुड़े सवालों से अधिक गंभीरता से निपटना होगा। ये विड़ंबना ही है कि दुनिया को कामसूत्र का ज्ञान देने वाला देश खुद अपने सेक्स से जुड़े मसलों को लेकर इतना असहाय हो गया
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हम बस सुनते ही रह गए कि किस तरह गुजरात में नवरात्र के बाद बहुत बड़ी संख्या में गर्भपात होते हैं, किस तरह स्कूल में बच्चों को बहुत आसानी से 'पोर्न' उपलब्ध हो रहा है ... उनका मानसिक ही नहीं शारीरिक विकास भी पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से हो रहा है। देह के परिवर्तनों और मन की उत्कंठाओं में उलझे किशोर से हम कैसे बात करें इसकी कोई योजना ही हमारे पास नहीं है। इस विषय को अब लंबे समय तक वर्जित मान कर इससे अछूतों वाली दूरी नहीं रखी जा सकती ये हम समझ ही नहीं पाए।

जितनी तेजी से टीवी और इंटरनेट का उपभोक्तावाद हमारे बच्चों के दिमाग में सेंध लगा रहा था हम उसकी गंभीरता को लेकर उतने ही बेरुखे और धीमे थे। इसी बीच 'नए भारत' के युवाओं ने कहा कि 16 साल ही रहने दो 18 मत करो... और उनकी बात मान ली गई। .... फिर अचानक हम जाग गए और झंडा लेकर दौड़ पड़े। जैसा कि पहले भी कहा ... ये जागरुकता अच्छी है जरूरी भी है, देर आयद दुरुस्त आयद भी है ... लेकिन मसले की गंभीरता को अब तो समझो !!

हमें अपने किशोरों से और उनके दैहिक आकर्षण से जुड़े सवालों से अधिक गंभीरता से निपटना होगा। ये विड़ंबना ही है कि दुनिया को कामसूत्र का ज्ञान देने वाला देश खुद अपने सेक्स से जुड़े मसलों को लेकर इतना असहाय हो गया। ये दु:खद है कि जहाँ खजुराहो है उस देश में देह से जुड़ी अभिव्यक्ति ऐसा विषय बन गई जिसने गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विकृतियों को जन्म दिया।

पश्चिम के पास भी अपने किशोरों से निपटने की कोई ठोस नीति नहीं है। वहाँ शादी से पहले सेक्स की आजादी जरूर है, लेकिन किशोरावस्था में गर्भधारण वहाँ एक बड़ी समस्या है। ये भयावह खतरे हमारे यहाँ भी पहुँच चुके हैं। इन ख़तरों से केवल कानून बना कर नहीं निपटा जा सकता। ये भी सही है कि हमारी सामाजिक परिस्थितियों, देह व्यापार के बढ़ते खतरों और हमारी अपने किशोरों से निपट पाने कि अपरिपक्वता को देखते हुए रजामंदी से सेक्स की उम्र 18 ही होनी चाहिए। ख़ास तौर पर जो विवेचना इस कानून की हुई है, जिसके तहत ऐसा लग रहा कि 16 के बाद सेक्स करने का लाइसेंस ही मिल जाएगा, इसे 18 ही रखना चाहिए।

जो माहौल बना है और जो सर्वदलीय बैठक हुई है उसको देखकर लगता है कि अब ये उम्र 18 ही रहेगी।.... लेकिन ऐसा हो जाने भर से हम चैन की साँस ना ले लें, अपने किशोर सुरक्षित हैं ये सोचकर निश्चिंत ना हो जाएँ। जिन मानसिक और शारीरिक झंझावातों से वो गुजर रहे हैं... उसमें उनके साथ खड़े रहना हमारे लिए बेहद जरूरी है।

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