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रोजे करेंगे मोमिन की सिफारिश

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हदीस शरीफ में आया है कि 'नबी-ए-करीम (सल्ल) ने फरमाया है कि रोजा और कुरआन मोमिन के लिए सिफारिश करेंगे।

रोजा कहेगा, ऐ मेरे रब मैंने इस शख्स को खाने और दूसरी लज्जतों से रोका तो यह रुका रहा, तो इसके बारे में मेरी सिफारिश कुबूल फरमा ले। कुरआन कहेगा कि ऐ मेरे रब मैंने इस बंदे को रात में सोने से रोका। तो ऐ मेरे रब इस शख्स के बारे में मेरी सिफारिश कुबूल कर ले।'

इसका मतलब यह नहीं है कि रोजा और कुरआन कोई जानदार हैं, जो यह खड़े होकर यह बात कहते हैं बल्कि इससे मुराद यह है कि एक रोजादार का रोजा रखना और कुरआन पढ़ने वाले का कुरआन पढ़ना वास्तव में खुद अपने आपमें एक रफाअत रखता है।

जिस आदमी ने अल्लाह तआला की खातिर भूख-प्यास बर्दाश्त की और फिर दिन भर की थकान के बावजूद रात में अल्लाह की रजा के लिए कुरआन पढ़ा, उसके यह आमाल खुद गवाही देंगे कि वह नेक है और उसको माफ कर दिया जाए। मरने के बाद जब दुनिया की सब नेमतें साथ छोड़ जाती हैं, तब यही नेकियां हैं, जो आदमी के साथ रहती हैं और इन्हीं के सहारे वह खुदा की रेहमत का हकदार बनता है।

यहां यह बात समझने की है कि वैसे तो कुरआन पढ़ना नेकी है, उसके हर शब्द के पढ़ने का सवाब है, पर उसे समझकर पढ़ने पर उसे हिदायत मिलती है और इस तरह पढ़ने पर बहुत अधिक नेकियां मिलना तय है।

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