Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मुहर्रम पर विशेष : शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन...

Advertiesment
हमें फॉलो करें मुहर्रम पर विशेष : शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन...
फ़िरदौस ख़ान
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को ख़िराजे-अक़ीदत पेश करते हुए ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती फ़रमाते हैं-
शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन
दीन अस्त हुसैन, दीने-पनाह हुसैन
सरदाद न दाद दस्त, दर दस्ते-यज़ीद
हक़्क़ा के बिना, लाइलाह अस्त हुसैन...
 
इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम है। हिजरी सन् का आग़ाज़ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस माह में रोज़ा रखने की ख़ास अहमियत बयान की गई है। 10 मुहर्रम को यौमे आशूरा कहा जाता है। इस दिन अल्लाह के नबी हज़रत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था। 
 
कर्बला के इतिहास मुताबिक़ सन 60 हिजरी को यज़ीद इस्लाम धर्म का ख़लीफ़ा बन बैठा। सन् 61 हिजरी से उसके जनता पर उसके ज़ुल्म बढ़ने लगे। उसने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन से अपने कुशासन के लिए समर्थन मांगा और जब हज़रत इमाम हुसैन ने इससे इनकार कर दिया, तो उसने इमाम हुसैन को क़त्ल करने का फ़रमान जारी कर दिया। इमाम हुसैन मदीना से सपरिवार कुफ़ा के लिए निकल पडे़, जिनमें उनके ख़ानदान के 123 सदस्य यानी 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे। यज़ीद सेना (40,000 ) ने उन्हें कर्बला के मैदान में ही रोक लिया। सेनापति ने उन्हें यज़ीद की बात मानने के लिए उन पर दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने अत्याचारी यज़ीद का समर्थन करने से साफ़ इनकार कर दिया। हज़रत इमाम हुसैन सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे। हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म के उसूल, न्याय, धर्म, सत्य, अहिंसा, सदाचार और ईश्वर के प्रति अटूट आस्था को अपने जीवन का आदर्श माना था और वे उन्हीं आदर्शों के मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी गुज़ार थे यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन और उनके ख़ानदान के लोगों को तीन दिनों तक भूखा- प्यास रखने के बाद अपनी फ़ौज से शहीद करा दिया. इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की तादाद 72 थी।
 
पूरी दुनिया में कर्बला के इन्हीं शहीदों की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। दस मुहर्रम यानी यौमे आशूरा देश के कई शहरों में ताज़िये का जुलूस निकलता है। ताज़िया हज़रत इमाम हुसैन के कर्बला (इराक़ की राजधानी बग़दाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा क़स्बा) स्थित रौज़े जैसा होता है। लोग अपनी-अपनी आस्था और हैसियत के हिसाब से ताज़िये बनाते हैं और उसे कर्बला नामक स्थान पर ले जाते हैं। जुलूस में शिया मुसलमान काले कपड़े पहनते हैं, नंगे पैर चलते हैं और अपने सीने पर हाथ मारते हैं, जिसे मातम कहा जाता है। मातम के साथ वे हाय हुसैन की सदा लगाते हैं और साथ ही नौहा (शोक गीत) भी पढ़ते हैं। पहले ताज़िये के साथ अलम भी होता है, जिसे हज़रत अब्बास की याद में निकाला जाता है।
 
मुहर्रम का महीना शुरू होते ही मजलिसों (शोक सभाओं) का सिलसिला शुरू हो जाता है। इमामबाड़े सजाए जाते हैं। मुहर्रम के दिन जगह- जगह पानी के प्याऊ और शर्बत की छबीलें लगाई जाती हैं। हिंदुस्तान में ताज़िये के जुलूस में शिया मुसलमानों के अलावा दूसरे मज़हबों के लोग भी शामिल होते हैं।
 
विभिन्न हदीसों, यानी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के कथन व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता और इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का ज़िक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा है। इसे जिन चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है।
 
एक हदीस के मुताबिक़ अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि रमज़ान के अलावा सबसे अहम रोज़े (व्रत) वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह फ़रमाते वक़्त नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाज़ों के बाद सबसे अहम नमाज़ तहज्जुद की है, उसी तरह रमज़ान के रोज़ों के बाद सबसे अहम रोज़े मुहर्रम के हैं।
 
मुहर्रम की 9 तारीख़ को जाने वाली इबादत का भी बहुत सवाब बताया गया है। सहाबी इब्ने अब्बास के मुताबिक़ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख़ का रोज़ा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ़ हो जाते हैं और मुहर्रम के एक रोज़े का सवाब 30 रोज़ों के बराबर मिलता हैअ 
मुहर्रम हमें सच्चाई, नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।
 
क़त्ले-हुसैन असल में मर्गे-यज़ीद है
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दशहरे पर दुर्भाग्य पर विजय पाने के विशेष उपाय...