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क्यों मनाते हैं ईदुल-अजहा

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ईदुल-अजहा पैगंबर हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हजरत इस्माईल अलेहिस्सलाम की कुर्बानी देने की यादगार है।

मुसलमानों के लिए अल्लाह ने खुशी मनाने के लिए साल में मुकर्रर दो ईद में से एक ईदुल-अजहा है।

मुफ्ती मुहम्मद इशाक कासमी ने बताया कि अल्लाह के हुक्म पर हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम ने जब अपने बेटे इस्माईल अलेहिस्सलाम को कुर्बान करने की तैयारी की, जिसे अल्लाह ने कबूल कर लिया। अल्लाह को उनकी यह अदा इतनी पसंद आई कि पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लाहो-अलैह व सल्लम की उम्मत पर इसे वाजिब करार दे दिया।

पैगंबर साहब ने फरमाया था कि कुर्बानी के जानवर कयामत के दिन पुल-सरात की सवारियां होंगी।

कुर्बानी का तरीका : कुर्बानी का जानवर तंदुरुस्त, बिना कोई ऐब वाला होना चाहिए। कुर्बानी करते वक्त जानवर को किबला रुख लिटाकर दुआ पढ़ते हुए कुर्बानी करना चाहिए।

कुर्बानी के गोश्त के तीन बराबर हिस्से करना चाहिए, जिनमें से एक खुद के घर के लिए, दूसरा रिश्तेदारों व दोस्तों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए होना चाहिए।

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