Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गुनाहों की माफी देती हैं शबे कद्र की रात

परवरदिगार का अनमोल तोहफा

Advertiesment
हमें फॉलो करें गुनाहों की माफी देती हैं शबे कद्र की रात
- जावेद आल
ND

रमजान के पाक महीने में इबादत गुजार बंदे पहली रात से ही अपने माबूद (पूज्य) को मनाने, उसकी इबादत करने मे जुट जाते हैं। इन नेक बंदों के लिए शब-ए-कद्र परवरदिगार का अनमोल तोहफा है। कुरआन में इसे हजार महीनों से श्रेष्ठ रात बताया गया है।

जिसकी बाबत हजरत मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया कि शब-ए-कद्र अल्लाह ताला ने मेरी उम्मत (अनुयायी) को अता फरमाई है, (यह) पहली उम्मतों को नहीं मिली। इसकी एक वजह यह भी है कि पिछली उम्मतों की उम्र काफी होती थी। वह लोग बरसों तक लगातार अपने रब की इबादत किया करते थे।

पैगंबर साहब के साथियों ने जब उन लोगों की लंबी इबादतों के बारे में सुना तो उन्हें रंज हुआ कि इबादत करने में वह उन लोगों की बराबरी नहीं कर सकते, सो उसके बदले में यह रात अता यानी प्रदान की गई, जिसमें इबादत करने का बड़ा भारी सवाब है।

श्रद्घा और ईमान के साथ इस रात में इबादत करने वालों के पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। आलिमों का कहना है कि जहां भी पिछले गुनाह माफ करने की बात आती है वहां छोटे गुनाह बख्श दिए जाने से मुराद होती है। दो तरह के गुनाहों कबीरा (बड़े) और सगीरा (छोटे) में, कबीरा गुनाह माफ कराने के लिए खुसूसी तौबा लाजमी है। इस यकीन और इरादे के साथ कि आइंदा कबीरा गुनाह नहीं होगा।

webdunia
ND
रमजान में महीने भर तौबा के साथ मुख्तलिफ इबादतें की जाती हैं ताकि इंसान के सारे गुनाह धुल जाएं और सारी दुनिया का वाली (मालिक) राजी हो जाए।

रसूलुल्लाह ने शब-ए-कद्र के लिए रमजान की 21, 23, 25, 27 और 29 रात बताई। इन रातों में रातभर मुख्तलिफ इबादतें की जाती हैं। जिनमें निफिल नमाजें पढ़ना, कुरआन पढ़ना, मुख्तलिफ तसबीहात (जाप) पढ़ना वगैरा अहम है। निफिल अनिवार्य नमाज नहीं है। यह रब को राजी करने के लिए पढ़ी जाती है।

हजरत मुहम्मद साहब उनके साथी और दीगर बुजुर्ग हस्तियां अनिवार्य नमाजों के साथ दिन विशेषतः रातों में निफिल नमाजों में मशगूल रहा करते थे। रमजान में यह नमाजें खुसूसी तवज्जो के साथ पढ़ी जाती हैं। अनिवार्य नमाजों के अलावा इन नमाजों में पूरा कुरआन पढ़ने की परंपरा आज भी जारी है। इतने शौक और लगन के साथ कि शब-ए-कद्र वाली पांच रातों के साथ ही दीगर पांच रातें (22, 24, 26, 28, 30) भी इबादत में गुजार दी जाती हैं।

पैगंबर साहब के एक साथी ने शब-ए-कद्र के बारे में पूछा तो आपने बताया कि वह रमजान के आखिर अशरे (दस दिन) की ताक (विषम संख्या) रातों में है। आप ने शब-ए-कद्र पाने वालों को एक मख्सूस दुआ भी बताई। जिसका मतलब है 'ऐ अल्लाह तू बेशक माफ करने वाला है और पसंद करता है माफ करने को, बस माफ कर दे मुझे भी।'

रमजान में खुदा की रहमत पूरे जोश पर होती है। शबे कद्र यानी हजार महीनों से बेहतर रात। इस रात में कुरआन उतारा गया और इसी शब में अनगिनत लोगों को माफी दी जाती है इसीलिए पूरी रात जागकर इबादतें की जाती हैं।

खासकर शब-ए-कद्र में यह कई गुना बढ़ जाती है। गुनाहगारों के लिए तौबा के जरिए पश्चाताप करने का और माफी मांगने का अच्छा मौका होता है। छोटी-सी इबादत जरा सी नेकी पर ढेरों सवाब मिलता है। इस रात से पहले वाले दिन का रोजा हमारे यहां बड़ा रोजा कहलाता है, जिसकी रात शबे-कद्र होती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi