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रमजान कुरान का महीना

उपवास से आत्मा शुद्ध होती है

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इस्लामी चाँद कैलेंडर के नौवें महीने रमजान के दौरान उपवास इस्लाम के पाँच खंबों में से एक है। इस्लाम धर्म को मानने वाले हर वयस्क और स्वस्थ्य स्त्री-पुरुष के लिए रमजान के दौरान उपवास रखना जरूरी है। लेकिन अस्वस्थ, बुजुर्ग लोगों, गर्भवती और सेवा-सुश्रुषा में लगी महिलाओं के लिए इससे छूट है। मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी उपवास से छूट है लेकिन उसके खत्म होने के बाद उन्हें भी उपवास करना जरूरी है। इसी तरह पर्यटकों के लिए भी छूट दी गई है।

उपवास वास्तव में आत्मानुशासन का एक क्रैस कोर्स है। इस दौरान मुसलमानों को रमजान के दौरान एक प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे साल भर उपवास की आत्मा को अनुसार जीवन गुजार सकें। कुरान के अनुसार उपवास के दो उद्देश्य हैं- जीवन में सावधान रहना और अल्लाह के प्रति शुक्रगुजार होना।

रमजान के दौरान जब मुसलमान रोजा रखते हैं तो अपने कार्यों में काफी पवित्रता बरतते हैं और हर काम में कुछ खास हो जाते हैं। कब खाना है, कब नहीं खाना है या क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए आदि बातों की परवाह रखते हैं। इसके अलावा वे इबादत पर ज्यादा समय गुजारते हैं। इसी तरह कुरान ज्यादा पढ़ते हैं और गरीबों को ज्यादा देते हैं। इस तरह की चेतना और आत्मानुशासन के साथ पूरी जिंदगी जीने के लिए वे तैयार हो जाते हैं। उपवास उसी का प्रशिक्षण है।

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रमजान के दौरान दिन भर उपवास करने के बाद जब शाम को इस्लाम को मानने वाले लोग रोजा तोड़ते हैं, तब उन्हें भोजन-पानी का महत्व मालूम होता है। ऐसे में अल्लाह के प्रति वे खुद-ब-खुद शुक्रगुजार हो जाते हैं। इफ्तार के वक्त यानी रोजा तोड़ने के समय पैगंबर मुहम्मद साहब अल्लाह की खूब प्रशंसा किया करते थे और शुक्रिया अदा करते थे।

उनका कहना है- 'अल्लाह का शुक्र है कि उसने रोजा रखने में मेरी मदद की और इस तरह देखभाल की कि शाम में हम रोजा तोड़ सके। अल्लाह का शुक्र है कि मुझे प्यास नहीं लगी और मेरे शरीर की सिराएँ नहीं सूखीं। अल्लाह की कृपा से हमें इनाम मिलना निश्चित है।'

पैगंबर की अनेक बातों में इफ्तार का जिक्र अगली जिंदगी के एक चिह्न के रूप में आता है। उदाहरण के लिए- 'जो रोजा रखते हैं उन्हें दो खुशियाँ निश्चित रूप से मिलती हैं- पहली बार इफ्तार के समय और दूसरी बार जब वे अल्लाह से मिलते हैं।' जैसे जिंदगी में हमारे लिए अच्छा होना जरूरी है, उसी तरह अनेक नेमतों और आशीर्वाद के एवज में रोज-रोज के जीवन में भी अल्लाह के प्रति शुक्रगुजार होना हमारे लिए जरूरी है।


इबादत के दूसरे तरीकों की तरह उपवास का भी एक बाहरी भौतिक रूप है जिसे हम जानते हैं। लेकिन हमें इसके आंतरिक आध्यात्मिक अर्थ को भी नहीं भूलना चाहिए। जो रोजा रखते हैं लेकिन गलत काम करते हैं वे रमजान के दौरान रोजा रखने का महत्व नहीं समझते। जाहिर है कि उनका संबंध सिर्फ रोजा के बाहरी यथार्थ से है।

मुहम्मद साहब ने स्पष्ट कहा है कि इस ऐसा करने वालों को सिर्फ भूख और प्यास ही मिलते हैं। रोजा में हम अपनी बुरी आदतों पर नियंत्रण कर जीवन भर गलत नहीं करने की तैयारी करते हैं।

रोजा हमें अल्लाह के नजदीक ले जाने का साधन है। कुरान में स्पष्ट कहा गया है कि पवित्रता के साथ रोजा रखने वाला स्वाभाविक रूप से अल्लाह के निकट पहुँच जाता है। पैगंबर कहते हैं कि रोजा बुराइयों से बचाने वाला एक कवच है। इस्लाम में रमजान सबसे पवित्र महीना माना जाता है क्योंकि इसी महीने में कुरान का इलहाम हुआ था। यही कारण है कि रमजान को कुरान का महीना भी कहा जाता है। रमजान और कुरान इस्लाम की एक बहुत बड़ी इनायत है।

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