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सब्र सिखाता है रोजा

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रमजान का मुबारक महीना अब धीरे-धीरे पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। मुस्लिम भाइयों के इफ्तार के लिए व्यवस्था की जाने लगी है। अनेक मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इफ्तार के वक्त शाम को चहल-पहल बढ़ने लगी है।

रोजा सब्र की तालीम देता है, रमजान के रोजे मोमिनों पर फर्ज किए गए हैं। जिसने भी जानबूझ कर रोजा तर्क किया, वो माफी के भी हकदार नहीं हैं। यह कहना है तरावीह की नमाज पढ़ा रहे हाफिज गुलाम फरीद अंसारी का। रमजान के मुबारक महिने में मुस्लिम युवाओं को नसीहत देते हुए हाफिज साहब ने कहा कि जानबूझ कर रोजा छोड़ने वाले किसी भी कीमत पर माफी के हकदार नहीं हैं।

हाफिज साहब ने आधुनिक युग के बदलते तौर-तरीकों पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि अब तो रोजा न रखने वाले लोग रोजदारों का एहतेराम भी नहीं करते। जबकि पहले किसी कारण से रोजा छूट जाने पर लोग रोजदारों के सामने कुछ भी खाने-पीने से परहेज करते थे, लेकिन अब बदलते दौर के साथ सब बदल गया है।

हाफिज साहब ने ये भी माना कि रमजान की विशेष नमाज तरावीह पढ़ने वालों की तादाद में लगातार इजाफा हो रहा है। लोग कुरआन सुनने के साथ-साथ समझ भी रहे हैं। रमजान के दिनों में मस्जिदें आबाद हैं। विभिन्न मस्जिदों में कुरान की आयतों को सुनने के लिए मुस्लिमों की भीड़ बढ़ रही है।

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