निर्जला एकादशी व्रत का समस्त एकादशियों में सबसे ज्यादा महत्व है। एकादशी दो तरह की होती है एक शुद्धा और दूसरी वेद्धा। यदि द्वादशी तिथि को शुद्धा एकादशी दो घड़ी तक भी हो तो उसी दिन व्रत करना चाहिए। शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत को निषेध माना गया है।
निर्जला, यानी बिना पानी के उपवास रहने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी के दिन व्रत और उपवास करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को करने से वर्ष की सभी 24 मुख्य एकादशियों के साथ अधिक मास की 2 एकादशी व्रत के बराबर फल मिलता है।
निर्जला एकादशी व्रत पौराणिक कथा
इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा महाभारत काल से जुड़ी है। कथा के मुताबिक एक बार महाबली भीम को व्रत करने की इच्छा हुई और उन्होंने महर्षि व्यास से इसके बारे में जानना चाहा। उन्होंने अपनी परेशानी उन्हें बताते हुए कहा कि उनकी माता, भाई और पत्नी सभी एकादशी के दिन व्रत करते हैं, लेकिन भूख बर्दाश्त नहीं होने के कारण उन्हें व्रत करने में परेशानी होती है। इस पर महर्षि व्यास ने भीम से ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी व्रत को शुभ बताते हुए यह व्रत करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस व्रत में आचमन में जल ग्रहण किया जा सकता है, लेकिन अन्न से परहेज किया जाता है। इसके बाद भीम ने मजबूत इच्छाशक्ति के साथ यह व्रत कर पापों से मुक्ति पाई।
निर्जला एकादशी पूजन विधि
– निर्जला एकादशी का व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से शुरू हो जाता है।
– व्रती को “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
– इस दिन गौ दान करने का विशेष महत्व होता है।
– इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है।
– व्रत के बाद द्वादशी तिथि में स्नान, दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत को करने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि की शाम से ही इसकी तैयारी करनी चाहिए। इस दिन व्रत में प्रयोग होने वाली सामग्री को एकत्रित कर लें। इसके बाद दशमी तिथि की शाम को सात्विक भोजन करके सो जाएं।
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और शौचादि से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर में साफ-सफाई करें। भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को गंगा जल से नहलाएं। अब दीपक जलाकर उनका स्मरण करें।
भगवान विष्णु की पूजा में उनकी स्तुति करें। पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें। पूजा के अंत में विष्णु आरती करें। शाम को भी भगवान विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाकर उनकी आराधना करें। इस समय विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
अगले दिन यानि द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें। सबसे पहले भगवान विष्णु जी को भोग लगाएं। भोग में अपनी इच्छानुसार कुछ मीठा भी शामिल करें। लोगों में प्रसाद बांटें और ब्राह्मणों को भोजन कर कराकर उन्हें दान-दक्षिणा दें। ध्यान रहे, व्रत खोलने के बाद ही आपको जल का सेवन करना है।