भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन का पूजा की दृष्टि से विशेष महत्व है। इस दिन को परिवर्तिनी एकादशी, डोल ग्यारस के नाम से जनमानस में प्रचलित है। परिवर्तिनी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। वहीं डोल ग्यारस होने के कारण खास तौर पर भगवान श्री कृष्ण का पूजन किया जाता है। इस दिन किए गए व्रत से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
परिवर्तिनी एकादशी को लेकर मान्यता है कि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु विश्राम के दौरान करवट बदलते हैं। इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी भी कहा जाता है।
आइए जानते हैं मुहूर्त, पूजा विधि, कथा, उपाय और मंत्र-
शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि 16 सितंबर, गुरुवार को सुबह 09.39 मिनट से शुरू होकर 17 सितंबर की सुबह 08.08 मिनट तक रहेगी। इसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। 16 सितंबर को एकादशी तिथि पूरे दिन रहेगी। उदया तिथि में व्रत रखने की मान्यता के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी व्रत 17 सितंबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। पुण्य काल- सुबह 06.07 मिनट से दोपहर 12.15 मिनट तक। पूजा की कुल अवधि- 06.08 मिनट तक रहेगी। इसके बाद 17 सितंबर को सुबह 06.07 मिनट से सुबह 08.10 मिनट तक महापुण्य काल रहेगा। जिसकी अवधि 02.03 मिनट रहेगी।
पूजा विधि-
डोल ग्यारस के पर्व का महत्व भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था। इस दिन भगवान विष्णु एवं बालरूप श्री कृष्ण की पूजा की जाती हैं, जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्यफल भक्त को मिलता हैं। इस दिन विष्णु के अवतार वामन देव की पूजा की जाती है, उनकी पूजा से त्रिदेव पूजा का फल प्राप्त होता हैं। डोल ग्यारस व्रत के प्रभाव से सभी दुखों का नाश होता है। इस दिन कथा सुनने से मनुष्य का उद्धार हो जाता हैं। डोल ग्यारस की पूजा और व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ के समान ही माना जाता हैं। इस दिन रात के समय रतजगा किया जाता है।
एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही आरंभ हो जाता है। इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करें। व्रत का संकल्प एकादशी तिथि को ही शुभ मुहूर्त में लिया जाता है। परिवर्तिनी एकादशी की तिथि पर स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करें। इसके बाद पंचामृत, गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम लगाकर पीले वस्तुओं से पूजा करें। पूजा में तुलसी, फल और तिल का उपयोग करना चाहिए। वामन अवतार की कथा सुनें और दीप जलाकर आरती करें। भगवान विष्णु की स्तुति करें। अगले दिन यानी 18 सितंबर, शनिवार को एक बार पुन: भगवान का पूजन करके। ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और व्रत का समापन करें। फिर व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर विधिपूर्वक करें।
मंत्र-
1. मंत्र- भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का तुलसी की माला से कम से 108 बार या अधिक से अधिक जाप करें।
2. मंत्र- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री'।
3. मंत्र- 'कृं कृष्णाय नमः' मंत्रों का 108 बार जाप करना चाहिए।
कथा- त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था, उसने इंद्र से द्वेष के कारण इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया। इस कारण सभी देवता एकत्र होकर भगवान के पास गए और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: श्रीकृष्ण ने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया। तब बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए उससे तीन पग भूमि देने का संकल्प करवाया और अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण कर लिए। अब तीसरा पग रखने के लिए राजा बलि ने अपना सिर झुका लिया और पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे वह पाताल चला गया।
* यदि आपको बार-बार कर्ज लेने की नौबत आती है। लाख कोशिशों के बाद भी कर्ज नहीं उतर पा रहा है तो इस एकादशी के दिन पीपल के पेड़ की जड़ में शकर डालकर जल अर्पित करें और शाम के समय पीपल के नीचे दीपक लगाएं।
* एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन करते समय कुछ सिक्के उनके सामने रखें। पूजन के बाद ये सिक्के लाल रेशमी कपड़े में बांधकर अपने पर्स या तिजोरी में हमेशा रखें। इससे आपके धन के भंडार भरने लगेंगे। यह उपाय व्यापारियों को अवश्य करना चाहिए।
* एकादशी की रात में अपने घर में या किसी विष्णु मंदिर में भगवान श्रीहरि विष्णु के सामने नौ बत्तियों वाला रात भर जलने वाला दीपक लगाएं। इससे आर्थिक प्रगति तेजी से होने लगती है। सारा कर्ज उतर जाता है और व्यक्ति जीवन सुख-सौभाग्य से भर जाता है।
* जीवन में आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंदिर में एक साबुत श्रीफल और सवा सौ ग्राम साबुत बादाम चढ़ाएं।
* इस दिन माता लक्ष्मी का भी पूजन किया जाता है। लक्ष्मी जी का पूजन धन की कमी दूर करती हैं।
* जिनका विवाह नहीं हो पा रहा है वे इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पीले पुष्पों से श्रृंगार करें। उन्हें सुगंधित चंदन लगाकर बेसन की मिठाई का नैवेद्य चढ़ाएं। विवाह शीघ्र होगा।
* इस दिन चावल, दही एवं चांदी का दान करें, यह दान उत्तम फलदायी होता है।
* इस दिन विष्णु सहस्रनाम, श्रीकृष्ण चालीसा एवं कृष्ण नामों का जाप करना चाहिए।