धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 26 एकादशियों में उत्पन्ना एकादशी का विशिष्ट महत्व है। अत: जो भक्त एकादशी का व्रत आरंभ करना चाहते हैं उन्हें मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी यानी उत्पन्ना एकादशी (वैतरणी एकादशी) से ही व्रत का शुभारंभ करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार एकादशी करने का नियम यह है कि इसे साल में कभी भी शुरू नहीं किया जा सकता। इसे सिर्फ उत्पन्ना एकादशी से ही शुरू कर सकते हैं, क्योंकि इसी एकादशी से एकादशी व्रत का प्रारंभ माना जाता है।
यह एकादशी भगवान श्रीहरि विष्णु की वैष्णवी शक्ति है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह एकादशी अश्वमेध यज्ञ, कठिन से कठिन तपस्या, तीर्थ स्नान व दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक शुभ फलदायी मानी गई है तथा इस दिन व्रत रखने वाले लोगों के कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं।
अत: जो भी नए एकादशी व्रत के उपवास आरंभ करना चाहते हैं उन्हें इसी दिन से व्रत-उपवास आरंभ करना चाहिए। यह शास्त्रसम्मत भी है।