Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अमरेली में भाजपा की राह आसान नहीं

हमें फॉलो करें अमरेली में भाजपा की राह आसान नहीं
अमरेली (भाषा) , शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007 (19:06 IST)
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान अमरेली में सूरत के हीरा व्यापारियों की टक्कर झेलनी पड़ सकती है।

सौराष्ट्र के जिले अमरेली का सूरत से गहरा वास्ता है। सूरत के तमाम हीरा व्यवसायी और कामगार इसी जिले से हैं। इस बार भाजपा के लिए अमरेली विद्रोह की धुरी बन गया है। सत्तारूढ़ पार्टी के अधिकांश विधायक विरोधी दलों के खेमे में पहुँच गए हैं। ऐसे ही एक विधायक हैं सूरत के हीरा व्यवसायी वसंत गजेरा। वह भाजपा के तीन विद्रोही विधायक बावकू उंगद, बेचार भंडारी और बालू के ताँती के साथ कांग्रेस के कार्यालय में हैं।

गजेरा लेउवा पटेल हैं। वह उसी जाति के हैं जिससे भाजपा के विद्रोही नेता केशुभाई पटेल हैं। वह अमरेली के उन जाने-माने हीरा व्यवसायियों में से हैं जिन्होंने सरदार पटेल उत्कर्ष समिति का गठन किया। इस समिति ने ही मोदी के खिलाफ राज्य में किसानों की रैली आयोजित की थी।

ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब गजेरा अपने भाई और सूरत से विधायक धीरू गजेरा की तरह ही भाजपा के कट्टर समर्थक हुआ करते थे। आज दोनों ही कांग्रेस में हैं।

गजेरा ने गुरुवार को अपने समर्थकों से कहा कि अमरेली मोदी के विरुद्ध लड़ाई के केंद्र के तौर पर उभरा है क्योंकि मुख्यमंत्री ने किसानों और गरीबों के हित के विरुद्ध काम किया है।

गजेरा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा भाजपा अमरेली की छह विधानसभा क्षेत्रों में कई सीटें पटेल समुदाय के समर्थन से ही जीत सकी थी। हालाँकि पाटीदार (पटेल) कांग्रेस के साथ हैं और इस बार परिणाम अलग होगा। अमरेली बदलाव की बयार का केंद्र साबित होगा।

दूसरी ओर भाजपा में उनके विरोधियों का कहना है कि गजेरा चुनाव जीतने के लिए धनबल का इस्तेमाल कर रहे हैं।

अमरेली शहर से चुनाव लड़ रहे भाजपा के पूर्व सांसद दिलीप संघानी ने कहा कि गजेरा कांग्रेस का मंच इस्तेमाल कर भाजपा के विरुद्ध छ्द्‍म युद्ध लड़ रहे हैं। इस बार असली लड़ाई भाजपा और वसंत गजेरा जैसे लोगों के बीच है, जो चुनाव लड़ने के लिए धनबल का इस्तेमाल कर रहे हैं।

संघानी ने कहा लेकिन वह लोगों को नहीं खरीद पाएँगे। उनके पास अगर धन है तो इसका मतलब यह नहीं कि वे लोगों को खरीद लें।

संघानी की राह उतनी आसान नहीं है क्योंकि उनका मुकाबला परेश धनानी जैसे मँजे हुए खिलाड़ी से है। उन्होंने 2002 में भाजपा की तत्कालीन राज्य इकाई प्रमुख पुरुषोत्तम रूपाला को शिकस्त दी थी। इधर संघानी भी 2004 में हार से पहले दो बार भाजपा के टिकट पर जीत चुके हैं। उन्हें मोदी का करीबी माना जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi