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आखिर क्यों जीते मोदी?

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-जनकसिंह झाला
'गुजरात की साढ़े पाँच करोड़ जनता का आभारी हूँ'। यही कहना था उस महानायक का जिसने तमाम अटकलों को पीछे छोड़कर सिर्फ अपने बलबूते पर गुजरात में फिर से भाजपा का झंडा गाड़ दिया।

न था बीजेपी के दिग्गजों का साथ और न ही संघ का। फिर भी यह 57 वर्षीय शख्स कांग्रेस के 'पंजे' से अपने कमल को सुरक्षित बचाने में सफल रहा।

मोदी ने एक क्रिकेटर बनकर राजनीति में हैट्रिक रची। उसकी टीम में कोई अन्य खिलाडी नहीं था जबकि प्रतिस्पर्धी टीम में खुद उनके ही बागी खिलाड़ी जुटे हुए थे। दर्शक थी गुजरात की जनता। गुजरात के चुनावों के कुल 182 सीटों में से भाजपा को मिली 117 सीटों पर कब्जा करके मोदी 'मैन ऑफ द मैच' बने।

यह विजय मोदी के आत्मविश्वास उनकी विचारशैली, बॉडी लैंग्वेज, उनकी कार्यप्रणाली और मतदाताओं के दिलोदिमाग में बसी उनकी छाप के परिणामस्वरूप हुई।

मोदी ने आखिर तक स्वयं को गुजरात की अस्मिता और विकास के मुद्दे से जोड़कर गुजरात के हर नागरिक के सामने पेश किया और यही बात उनको सफलता के शिखर तक ले गई।

कांग्रेस की चुनावी रणनीति कुछ अलग थी। उसने आखिर तक नरेन्द्र मोदी पर अपना निशान साधा, राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे उनके तमाम चुनावी प्रचार-प्रसार में नरेन्द्र मोदी और उनसे जुड़े विवादों पर उसका वार रहा जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस गुजरात के आमजनों की भावनाओं को समझने में विफल रही।

'सत्ता से तानाशाह को उखाड़ फेंको' जैसे विवादास्पद नारे के साथ निकले भाजपा के असंतुष्ट गुट के केशुभाई पटेल, काशीराम राणा, वल्लभभाई कथीरिया, गोरधन जड़फिया, सिद्धार्थ पटेल, जीतू महेता सहित तमाम बागी मंडली को महानायक मोदी ने पीछे छोड़ दिया।

सौराष्ट्र में असंतुष्ट गुट हावी था। केशुभाई के प्रभुत्व, लेउवा पटेलवाद के वाबदूज मोदी का विजय रथ कोई नहीं रोक पाया। इतना ही नहीं नकारात्मकता की राजनीति खेलने वाले तमाम बागियों को भी अपनी जीत के लिए मोदी ने धन्यवाद दिया।

गुजरात में राहुल का रोड शो करने वाली कांग्रेस रोड से उतर गई। जातिवाद की धज्जियाँ उड़ गईं और बागी नेताओं की बकवास भी न चली। अंत में जीत का स्वाद चखने भाजपा के वरिष्ठ नेता भी मक्‍खियों की तरह उमड़ पड़े, जिन्होंने पहले मोदी से अपनी कन्नी काट ली थी।

वाजपेयी ने मोदी को फोन पर बधाई दी तो आडवाणी ने मोदी की जीत को 1974 में हुई स्व. इंदिरा गाँधी की जीत से तोला लेकिन राजनाथ ने गुजरात में मोदी की जीत के पीछे मोदी की बजाय भाजपा की विचारधारा और राज्य में हुए विकास को महत्व दिया।

वर्तमान चुनावों में नरेन्द्र मोदी की जीत से जाहिर है की केंद्रीय राजनीति में भी उनका वर्चस्व बढ़ेगा क्योंकि मोदी की नजर अब दिल्ली की गद्दी पर रहेगी।

'गली गली में नारा है आज गुजरात कल दिल्ली हमारा है एक देश, एक शख्स और एक नेता नरेन्द्र मोदी'। मोदी के प्रचार में प्रसारित यह एसएमएस तो कुछ एसी ही बातें बयाँ करता है।

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