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कैसे करें अमरनाथ की कठिन चढ़ाई

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तरूण हिंगोरानी

Jaideep NathWEBDUNIA
अमरनाथ की गुफा तक पहुँचने का रास्ता बेहद दुर्गम है। यहाँ तक पहुँचने के लिए काफी कोशिश करनी होती है। रास्ता तय करने के लिए आप हवाई मार्ग का आसान सफर या चढ़ाई का दुर्गम सफर चुन सकते हैं।

यहाँ आने के लिए दर्शनार्थी जम्मू तक रेल से व जम्मू से पहलगाम या बालटाल तक बस एवं चार पहिया वाहन या दो पहिया वाहन से भी पहुँच सकते हैं। कुछ दर्शनार्थी श्रीनगर तक हवाई जहाज में एवं श्रीनगर से बालटाल और बाबा अमरनाथ की गुफा तक हेलिकॉप्टर से भी पहुँच सकते हैं

यहाँ से आगे पहुँचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला- पहलगाम मार्ग से, दूसरा बालटाल मार्ग से। पहलगाम मार्ग से आने के लिए दर्शनार्थियों को जम्मू से चलने के बाद श्रीनगर आने से पहले अनंतनाग शहर की ओर जाना पड़ता है और वहाँ से पहलगाम पहुँचना पड़ता है

पहलगाम से गुफा तक की दूरी लगभग 51 किलोमीटर है। पहलगाम से चंदनवाड़ी तक 17 किलोमीटर मार्ग पर चार पहिया वाहन जैसे जीप, सूमो, ट्रैक्इत्यादि चलती हैं। चंदनवाड़ी से चार किलोमीटर की दूरी पर है - पिस्सू टॉप। पिस्सू टॉप की चढ़ाई लगभग एक किलोमीटर है।

यहाँ से शेषनाग झील की दूरी लगभग आठ किलोमीटर है। यहाँ से महागणेश टॉप की चढ़ाई शुरू होती है। यह 6 किलोमीटर के लगभग है। यह इस यात्रा का सबसे ऊँचा स्थान है। यह समुद्र तल से लगभग 14,200 फुट ऊपर है।

इसके बाद उतार शुरू होता है। जो रास्ता सीधे पंचतरणी के लिए जाता है। महागणेश टॉप से पंचतरणी की दूरी लगभग 8.5 किलोमीटर है। पंचतरणी से बाबा अमरनाथ की गुफा के लिए चढ़ाई शुरू होती है। यह दूरी लगभग 6.5 किलोमीटर है। इस तरह से पहलगाँव से बाबा अमरनाथ की गुफा तक की 51 किलोमीटर की यात्रा होती है।

बालटाल मार्ग पर पहुँचने के लिए दर्शनार्थी जम्मू से सीधे श्रीनगर होते हुए बालटाक पहुँचते हैं। बालटाल पहुँचने से 9 किलोमीटर पहले कश्मीर वादी का एक और सुंदर स्थान सोनमर्ग भी यहीं पर है।

बालटाल से ही एक रास्ता सीधे कारगिल की पहाड़ी गुफा की ओर जाता है। यह लगभग 16 किलोमीटर है। यह रास्ता थोड़ा सँकरा भी है और थोड़ा पथरीला होने के साथ ऊँची खड़ी चढ़ाई वाला भी है। इस रास्ते में कहीं चढ़ाव भी है तो कहीं उतार भी है।

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बालटाल से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर एक स्थान है, जिसे संगम कहा जाता है। यहाँ पर बालटाल से आने वाला रास्ता एवं पहलगाँव से पंचतरणी होते हुए आने वाला रास्ता मिलता है। इसलिए इसका नाम संगम पड़ा। और यहाँ से 3 किलोमीटर की दूरी पर है - बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा। यहाँ की पारंपरिक यात्रा पाँच दिनों में पूरी होती है। यात्रा का अंत छड़ी मुबारक के दिन होता है।


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