5 june world environment day:हमारा बचपन बहुत ही हराभरा हुआ करता था। हमारा बचपन प्रकृति की छांव में बिता है। हम कहीं भी तितलियों की तरह उड़ते रहते थे और कहीं भी किसी भी डाल पर बैठकर प्रकृति का आनंद लेते थे। उस वक्त हमारे माता-पिता को फिक्र नहीं होती थी कि उनका पुत्र कहां है। आजकल के माता पिता तो बच्चों को ज्यादा देर तक अकेला छोड़ नहीं सकते।
1. छायादार वृक्ष : हमारे बचपन में हर गली, मोहल्ले और चौराहों पर वृक्षों के झुंड के झुंड हुआ करते थे। तब गुलमोर जैसे कचरा पैदा करने वाले पेड़ नहीं होते थे और न ही कैक्टस या बोनसाई जैसे नकारात्म ऊर्जा पैदा करने वाले पौधे नहीं होते थे। तब पीपल, बरगद, नीम, कैथ, अशोक के पेड़ जैसे छायादार वृक्ष बहुतायत में होते थे। पहले हर चौराहे, स्कूल, मंदिर और बगीचों में में बड़े-से छायादार पेड़ हुआ करते थे। कई पेड़ों के आसपास चौपाल हुआ करती थी।
2. फलदार वृक्ष : आजकल हमें नहीं दिखाई देते खिरनी, शेहतूत, बोर, पेमली, इमली, जामुन, आंवला, अनार, खजूर, कबिट और आम के पेड़। पहले हमें यह हर कहीं पर भी ये दिखाई दे जाते थे। खासकर जामुन और आम के पेड़ याद आते हैं, जिनकी घनी छाव में हमें गर्मी में सुकून मिलता था और साथ ही हम आम एवं जामुन का स्वाद भी चख लिया करते थे।
3. फूलदार पौधे : हमें याद है कि जब हम गलियों से गुजरते थे तो चंपा, चमेली, कनेर, चांदनी, रातारानी, मोगरा, हरसिंगार, रजनीगंधा, छुईमुई, और गुलाब की खुशबू हमें मदहोश कर देती थी। पहले यह पौधे हम हर घर के आंगन, गमले या सार्वजनिक स्थानों पर आसानी से देख सकते थे। आजकल यह नहीं दिखाई देते हैं। इनकी जगह लोगों ने मनी प्लांट, क्रसुला ओटोवा सहित कई तामाम अंग्रेजी पौधे लगा रखे हैं। हम आज भी रातरानी और मोगरे की खुशबू को मिस करते हैं। उन फूलों के आसपास ढेर सारी रंग बिरंगी तितलियां हुआ करती थीं। फूल नहीं रहे तो तितलियां भी गायब हो गई है।
4. पशु-पक्षी : पहले हर कही देशी गाय, भैंस, बैल, बंदर, खरगोश और देशी बकरियां कहीं पर भी आसानी से नजर आ जाया करती थी। आजकल यह नहीं दिखाई देती है। पहले पूरा आसमान चील, बाज, तोते, कौवे और चिड़ियों से भरा रहता था। सुबह और शाम को हम पक्षियों का मधुर कोलाहल सुनते थे तो मंत्रमुग्थ हो जाते थे। पक्षियों के झुंड के झुंड को आसमान में एक साथ उड़ते हुए देखना मन को सुकून देते थे लेकिन बड़े शहरों में ही नहीं कस्बों में भी यह नजारा देखने को नहीं मिलता है। अब तो कबूतरों की संख्या ज्यादा हो चली है।
5. बारिश : हमें याद है कि हमारे बचपन में जो बारिश होती थी वैसी बारिश आजकल नहीं होती। पहले 10 से 15 दिन तक की झड़ी लगती थी। यानी लगातार बारिश होती थी। बारिश के मौसम में सभी दिन लगभग बारिश होती थी और तब मौसम बड़ा ही सुहाना होता था। आजकल बारिश नाममात्र की ही होती है। हां यह सही है कि अब कुछ राज्यों में हर बारिश में बाढ़ जैसे हालात होते हैं और कुछ राज्यों में सूखा। हमारे बचपन जैसी बारिश आजकल नहीं होती है।
6. जुगनू : हमारे बचपन में हमने ऐसे जीव जंतु देखे हैं जिन्हें संभवत: आजकल के बच्चे शायद ही देख पाएं। जुगनू एक ऐसे प्रकार का कीट या जीव है तो रात में चमकता है। इनके द्वारा उत्पन्न प्रकाश पीला, हरा, लाल आदि होता था। इसे हम पकड़ पकड़ कर एक कांच की बरनी में रख लेते थे, जिसका जालीदार ढक्कन होता था। रात में पूरी बरनी किसी लाइट की तरहा रुक-रुककर जगमगाती थी। जुगनू की ही तरह के कई और भी रंग-बिरंगे जीव होते थे जो आजकल नजर नहीं आते हैं। कभी कभी बारिश में बटन के आकार का एक जीव ओले के साथ नीचे गिरता था। वह आजकल नहीं गिरता है। हां, एक सफेद फूद्दी भी हुआ करती थी। दरअसल, वह किसी वृक्ष का बीज होता था जो हवा में उड़ता रहता था, जिसे फ्लाइंग सीड कहते हैं।
7. कुआ-बावड़ी : पहले कुए और बावड़ी में नहाना आजकल बहुत याद आता है। जिन्हें तैरना आता था वे उपर से ही कुए में कूद जाते थे और जिन्हें नहीं आता था वे बावड़ी में सीढ़ियां उतरकर रस्सी बांधकर नहाते थे। अब न तो प्राकृति झरने हर कहीं देखने को मिलते हैं और न ही बावड़ी। जंगल और पहाड़ भी अब कम हो चले हैं।
8. अब यह रह गई है यादें : बरगद के वृक्ष की शाखाओं पर झुलना, सावन के झुले, आम की रोटी, देसी आम को चूस-चूसकर खाने का आनंद, कैंच की फली और ज्वार की बाली से किसी को परेशान करना, गेहूं की उम्बी, मूंगफली, कच्चे चने जिसे होड़, होला या छोड़ करते हैं उसे सेंककर खाना अब बहुत याद आता है।
आप अपने बचपन की कौनसी बातें मिस करते हैं हमें जरूर बताएं...