भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में तापमान वृद्धि के कारण मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। जलवायु की उष्णता के कारण ग्रीष्म ऋतु में लू तथा गर्मी से होनेवाली मौतों में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण देश में श्वास तथा हृदय-संबंधी बीमारियों की दर में इजाफा होगा। जलवायु की तपन के कारण उच्च रक्तचाप, मिर्गी तथा माइग्रेन जैसी बीमारियों की बारम्बारता में वृद्धि होगी साथ ही मानसिक बीमारियों जैसे अवसाद (डिप्रेशन) तथा साइजोफ्रेनिया (सीजोफ्रेनिया) से पड़ने वाले दौरों के बारम्बारता में भी बढ़ोत्तरी होगी।
उष्णता तथा नमी के कारण घाव के उपचार हेतु ‘प्रतिजैविक’ (एंटीबायोटिक्स) पर निर्भरता में वृद्धि होगी। रोगाणुओं की नई प्रजातियों के उद्भव से पुराने ‘प्रतिजैविक’ असरहीन हो जाएंगे। स्वाइन फ्लू (स्वाइन फ्लू) के विषाणु में उत्परिवर्तन के कारण टेमीफ्लू नामक ‘प्रतिजैविक’ अब इस बीमारी के उपचार में असरहीन साबित हो रही है जिससे बीमारी का प्रकोप घटने की बजाय दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
इसके अतिरिक्त संक्रामक बीमारियों जैसे दस्त, पेचिश, हैजा, क्षयरोग, आंत्रशोथ, पीलिया आदि की बारम्बारता में वृद्धि के फलस्वरुप इन बीमारियों से होने वाले मौतों में कई गुना की वृद्धि होगी। बच्चों में खसरे तथा निमोनिया के प्रकोप में वृद्धि के कारण इन बीमारियों से मृत्युदर में बढ़ोतरी होगी।
चूंकि तापमान तथा नमी बीमारी फैलाने वाले वाहकों के बढ़ने में सहायक होते हैं। अतः भारत में मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों जैसे मलेरिया, फ्रील पांव, डेंगू ज्वर, चिकनगुनिया, जापानी मस्तिष्क ज्वर तथा बेस्ट नाइल ज्वर के प्रकोप में वृद्धि होगी। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों से डेंगू ज्वर, चिकनगुनिया तथा जापानी मस्तिष्क ज्वर के प्रकोप में वृद्धि दर्ज की गई है।
डेंगू ज्वर जहां उत्तर भारत के शहरी क्षेत्रों में आज प्रमुख स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरा है वहीं देश का पूर्वी उत्तर प्रदेश जापानी मस्तिष्क ज्वर का प्रमुख केन्द्र बन गया है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के 35 जिले मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मस्तिष्क ज्वर बीमारी का प्रकोप देश के बिहार, झारखण्ड एवं असम राज्यों में भी है।
मच्छरों से फैलनेवाली बीमारियों के अलावा, अन्य वाहकों जैसे सी-सी मक्खी तथा बालू मक्खी से फैलनेवाली बीमारियां क्रमशः निद्रा रोग (स्लीपिंग सिकनेस) तथा काला-अजार (ब्लैक फीवर) की बारम्बारता में वृद्धि होगी। जहां काला-अजार असम, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है, वहीं निद्रा रोग मुख्यतः बिहार तथा बंगाल की स्वास्थ्य समस्या है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गरीबी के कारण यौन अपराध, यौन शोषण व वेश्यावृत्ति में वृद्धि होगी परिणामस्वरुप एड्स जैसी लाइलाज यौन संचारी संक्रामक बीमारी का प्रसार होगा जिससे इस घातक बीमारी के प्रकोप में बढ़ोत्तरी के कारण मृत्यु दर में कई गुना वृद्धि होगी।
एक अनुमान के अनुसार भारत में आज लगभग 50 लाख से भी ज्यादा व्यक्ति इस एड्स विषाणु रोग से ग्रसित हैं। असुरक्षित यौन संबंध इस बीमारी के प्रसार का प्रमुख कारण है। एड्स के अतिरिक्त हेपेटाइटिस बी, सूजाक तथा सिफलिस जैसी यौन संचारी बीमारियों के संचार तथा प्रकोप में भी वृद्धि होगी।
जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप खाद्यान्न में कमी के कारण देश में कुपोषण की समस्या होगी परिणामस्वरुप, रक्तअल्पता (एनीमिया), रतौंधी, रिकेट्स, मेरेस्मस, क्वासिरकोर, पेलाग्रा, बांझपन आदि जैसी गैर-संक्रामक बीमारियों की दर में वृद्धि होगी। कुपोषण के कारण बच्चों की मृत्यु दर में अभूतपूर्व वृद्धि होगी।
कुपोषण से प्रभावित जनसंख्या संक्रामक बीमारी क्षयरोग के प्रति संवेदनशील होगी, परिणामस्वरुप क्षयरोग के प्रकोप में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। विदित हो कि वर्तमान में भारत में लगभग 1.5 करोड़ क्षयरोगी हैं जो दुनिया में क्षयरोगियों की संख्या के एक तिहाई से भी ज्यादा है। प्रत्येक वर्ष 20,000 से 25,000 भारतीय क्षयरोग से पीड़ित होते हैं और इस बीमारी से 1,500 से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है।