नई दिल्ली, ज्ञात ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ग्रह है जहां जीवन है। पृथ्वी के प्राकर्तिक संसाधनों पर उत्तरोत्तर बढ़ते दबाव को देखते हुए आज मानव चंद्रमा से लेकर मंगल तक जीवन की सं भावनाएं तलाशने में जुटा है।
आशंका है कि बदलते जलवायु और संसाधनों के संकट के कारण धरती पर रहना दूभर हो जाएगा। अनंत ब्रह्माण्ड में अपनी बस्तियां बसाने की संभावनाओं की तालाश कब पूरी होगी, कब किसी अन्य ग्रह पर मानव के बसने की परिस्थितियां निर्मित होंगी, इसके बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है।
ऐसे में हमें पृथ्वी के वातावरण को सुरक्षित रखने के उपाय तलाशने ही होंगे। पृथ्वी के संरक्षण का संकल्प लेने के लिए ही प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को समूचे विश्व में पृथ्वी दिवस का आयोजन होता है। इस वर्ष पृथ्वी दिवस की थीम है 'रीस्टोर अवर अर्थ' यानी अपनी पृथ्वी को पुनः पहले जैसा बनाना है।
यह अत्यंत महत्वाकांक्षी थीम है, क्योंकि पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों के बेहिसाब दोहन के कारण पृथ्वी के वातावरण का निरंतर क्षरण हो रहा है और यदि इस पर विराम न लगाया गया तो एक दिन पृथ्वी पर जीवन मुहाल हो जाएगा, जिसके अभी से संकेत मिलने भी लगे हैं।
वास्तव में पृथ्वी अपने आप में एक जटिल और वृहत्त संरचना है। जल, थल और नभ इसके अभिन्न पहलू हैं। मनुष्य से लेकर जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की भी यहां अनगिनत प्रजातियां हैं। कई तो ऐसी हैं कि उनकी अभी तक पहचान ही नहीं हो पाई है। इन सभी पर एक अदृश्य खतरा मंडरा रहा है जो पूरी तरह अदृश्य भी नहीं है। यह खतरा है अस्तित्व के संकट का। पृथ्वी पर उत्तरोत्तर बढती आबादी और संसाधनों की मांग में वृद्धि ने न केवल मानव, बल्कि अन्य प्राणियों एवं वनस्पतियों के लिए भी खतरा बढ़ा दिया है। यह खतरा तभी टल पाएगा, जब पृथ्वी का वातावरण सुरक्षित होगा।
पृथ्वी के पर्यावरण के संरक्षण के प्रति पृथ्वी दिवस के रूप में एक वैश्विक अभियान के सूत्रपात का श्रेय जाता है अमेरिकी सीनेटर गेलोर्ड नेल्सन को। पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने वर्ष 1970 में 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने का आह्वान किया। कहा जाता है कि उनकी इस अपील पर करीब दो करोड़ अमेरिकी जुट भी गए। दरअसल नेल्सन के जीवन में घटी एक घटना ने उन्हें ऐसे किसी आयोजन के लिए प्रेरित करने का काम किया। यह वाकया साल 1969 में घटित हुआ था। हुआ यूं कि अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में तेल का रिसाव हुआ था।
उस साल 22 जनवरी को समुद्र में तीस लाख गैलेन तेल बह गया था। इस कारण 10,000 से ज्यादा सी-बर्ड, डॉल्फिन, सील और सी-लायंस की मौत हो गई थी। इस घटना से नेल्सन बहुत व्यथित हुए थे। इस तबाही ने ही उन्हें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कुछ पहले करने के लिए प्रेरणा बनने का काम किया।
पहली बार 1970 में आयोजित हुए पृथ्वी दिवस ने उसके बाद से व्यापक स्वीकृति हासिल कर ली है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों के इस दौर में पृथ्वी दिवस जैसे आयोजन की महत्ता और बढ़ गई है। आज दुनिया के लगभग 195 देशों में पृथ्वी दिवस का आयोजन होता है। यानी अब यह पूरी दुनिया में एकसमान रूप से मनाया जाता है। इसका लक्ष्य लोगों को धरती और पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के साथ ही उन्हें यह आभास भी कराना है कि पृथ्वी केवल मानव के लिए ही नहीं है, उन अन्य अनेक प्राणियों एवं वनस्पतियों का भी इस पर उतना ही अधिकार है, जो इस पर वास करते हैं। चूंकि मानव ही पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान और सक्षम प्राणी है, ऐसे में इस ग्रह के संरक्षण का सबसे बड़ा दायित्व भी उसी का है। (इंडिया साइंस वायर)