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विश्व पृथ्वी दिवस 2022 : महात्मा गांधी के मार्ग से ही बचेगा धरती का पर्यावरण

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अनिरुद्ध जोशी

, गुरुवार, 21 अप्रैल 2022 (14:18 IST)
World Earth Day 2022 : इस बार विश्व पृथ्‍वी दिवस की थीम है- हमारी धरती और हमारा स्वास्थ्य। महात्मा गांधी ने जहां पर्यावरण संवरक्षण को लेकर अपने विचार रखे और उसको करके भी दिखया उसी तरह उन्होंने सेहत को लेकर सजग रहने के लिए भी खुद के जीवन को एक उदाहरण बनाकर समझाया।
 
 
गांधी जी की सेहत का राज (Secrets of Gandhi's health) : कहते हैं कि महात्मा गांधी 110 वर्ष जीना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए खुद के जीवन को पर्यावरण अनुकूल और प्रकृति प्रदत्त बना लिया था। उनका जीवन एक उदाहरण है कि किस तरह हम हमारी धरती को नुकसान पहुंचाया बगैर सेहतमंद जीवन जी सकते हैं। 79 की उम्र में जब उन्हें गोली मारी गई थी तब वे पूर्णरूप से स्वस्थ थे। न उन्हें डायबिटीज थी, ना ब्लड प्रेशर और ना ही अन्य किसी प्रकार का कोई रोग। उन्हें कोई गंभीर रोग नहीं था। वे शाकाहरी भोजन करते थे और भारतीय पद्धति वाला व्यायाम करते थे। खास बात यह कि वे पैदल चलकर ही खुद को सेहतमंद नहीं रखते थे बल्कि वे प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा भी खुद को चुस्त और दुरुस्त बनाए रखते थे। महात्मा गांधी अपने जीवन में प्रत्येक दिन 18 किलोमीटर चलते थे जो कि उनके जीवन काल में धरती के 2 चक्कर लगाने के बराबर था। उन्होंने गाय या भैंस का दूध नहीं पीने की प्रतिज्ञा की थी जो घरेलू उपचार और प्राकृतिक चिकित्सा पर उनके विश्वास को रेखांकित करता है। वह अपने पेट की गर्मी छांटने के लिए उस पर गिली मिट्टी की पट्टियां बांधते थे। कहते हैं कि रोग की उत्पत्ति सबसे पहले मन और मस्तिष्‍क में ही होती है और सकारात्मक विचार रोग को पैदा होने से रोक देते हैं। इसीलिए वे नियमित प्रार्थना करते थे।
 
 
हेनरी डेविड थारो (Henry David Tharo) : महात्मा गांधी को सबसे ज्यादा प्रेरित किया अमेरिका के प्रसिद्ध दार्शनिक हेनरी डेविड थारो (1817-1862) ने। थोरो एक अमेरिकी ट्रांससीन्डेन्टलिस्ट, प्रकृतिवादी और राजनीतिक कार्यकर्ता थे। जिन्हें अपनी पुस्तक वाल्डेन और निबंध 'सिविल असहयोग' के लिए लिए जाना जाता है। महात्मा गांधी का 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' इन्हीं से प्रेरित था। थोरो को यह प्रेरणा इमर्सन के द्वारा भारतीय दर्शन से मिली थी। थारो प्रकृति से बहुत प्रेम करते थे लेकिन महात्मा गांधी ने प्रकृति के अनुसार जीवन जीने की कला को सिखाया। प्रकृति के अनुसार ही मानव जीवन को ढालने से ही प्रकृति को बचाया जा सकता है। महात्मा गांधी ने अपने आश्रम में यह प्रयोग करके बताया कि किस तरह से हम प्रकृति के अनुसार जीवन जीकर धरती के पार्यावरण को बचा सकते हैं। महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज, शांति, सहअस्तित्व, अहिंसा, लोकतंत्र के साथ ही पर्यावरण के लिए भी अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
 
 
स्वच्छता अभियान (Cleanliness campaign) : भारत का स्वच्छता अभियान महात्मा गांधी की प्रेरणा से ही चलाया गया। यह गांधी की ही सोच थी कि देश को स्वच्छ किया जाए, क्योंकि यह बात गांधीजी अच्छी तरह जानते थे कि स्वच्छ भारत ही गरीबी और रोग से मुक्त हो पाएगा। महात्मा गांधी जानते थे कि स्वच्‍छता से पर्यावरण की रक्षा भी की जा सकती है। वे अपने आश्रम में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते थे। स्वच्छता और पर्यावरण के लिए वे जनभागिदारी पर जोर देते थे।
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खादी व कुटीर उद्योग (Khadi and kutir udyog Industries) : आधुनिक युग में धुआं छोड़ती बड़ी कंपनियों के विकल्प के रूप में महात्मा गांधी ने खादी ग्राम उद्योग व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जो कार्य किया वह लाखों लोगों को रोजगार देने के साथ ही पार्यावरण संवरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस समय वैकल्पिक राह निकालने का व्यापक प्रयास किया जाना चाहिए। पूंजीवादी देशों में इस तरह के उद्योग के बारे में सोचा जाना चाहिए जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बगैर कार्य कर सकें। अमेरिका-यूरोप के मॉडल पर आधारित विकास को चुनौती देने के लिए महात्मा गांधी के उद्योग संबंधी विचार आज भी प्रासंगिक हैं। 
 
भूमंडलीकरण की सोच को चुनौती देने के लिए खादी व कुटीर उद्योगों को नए सिरे से सशक्त करना जरूरी है। आज दुनिया से जिस तरह जलवायु बदलाव व महाविनाशक हथियारों जैसे अभूतपूर्व संकट सामने आ रहे हैं उनके समाधान में गांधीजी के विचारों का बहुत महत्व है अतः यह अनुकूल समय है कि गांधीजी के विचारों को व्यापक व सार्थक बदलाव के प्रयासों में समुचित महत्व का स्थान दिया जाए व इस प्रयास को आज की बड़ी चुनौतियों से जोड़ा जाए।
 
 
पर्यावरण में सहयोगी गांधी के विचार (Environment) : आज हम ग्लोबल वॉर्मिंग की बात करते रहे हैं। दरअसल जब महात्मा गांधी अहिंसा की बात करते हैं तो वे प्रकृति के साथ हो रही हिंसा की बात भी करते हैं। महात्मा गांधी ने भारत को सही अर्थों में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा था। 21वीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं जिनका सामना आज विश्व कर रहा है।'
 
 
हमारे प्रधनामंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में कहा था कि महात्मा गांधी ने एक सदी से भी अधिक पहले मानव की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट किया था। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय संयम और करुणा दोनों के पालन की सलाह दी और स्वयं इनका पालन करके मिसाल पेश की थी। वे अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आसपास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। गांधीजी यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में न मिले।'
 
 
गांधी से प्रेरणा लेकर किया पर्यावरण के लिए कार्य (Worked for the environment by taking inspiration from Gandhi) : आचार्य विनोबा भावे, सुन्दरलाल बहुगुणा और बाबा आमटे जैसे लोगों ने महात्मा गांधी से ही प्रेरणा लेकर पार्यवरण रक्षा के लिए अपने अपने स्तर पर कार्य किया था। आचार्य विनोबा भावे का भूदान आंदोलन, ग्रामदान और जीवनदान आंदोलन के माध्यम से पर्यावरण के लिए ही कार्य किया। इसी से प्रेरणा लेकर सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन की शुरुआत की। उनकी पत्नि विमला जी कौसानी ने हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में खूब कार्य किया। भूदान-यात्रा की तरह ही 'चिपको आंदोलन' ने भविष्य में पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। हिमालय क्षेत्र में चिपको आंदोलन के बाद के दौर में वन व जल-सरंक्षण का सराहनीय कार्य कुछ स्थानों पर हुआ। गांधीजी के विचारों को कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दूर-दूर के गांवों में जीवित रखा है। इसी तरह बाबा आमटे ने कुष्ट रोगियों और पर्यावरण के लिए अथक प्रयास किया।

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