* स्वाति शैवाल
किशोरावस्था का सपना-- मेरी लंबाई अब तेजी से बढ़ने लगी है। मैं चाहता हूँ कि खूब बड़ा हो जाऊँ और आसमान को छू लूँ। अब नई शाखाएँ मेरे तन का विस्तार कर रही हैं। नई पत्तियों का आना मुझे अंदर तक ऊर्जा से भर देता है। धरती माँ ने कहा था कि मुझे बड़े होकर सभी प्राणियों की सेवा करना है, निस्वार्थ, इसलिए मुझे जल्द से जल्द बड़ा होना है। पड़ोस में जो बड़े से बबूल भईया खड़े हैं ठीक वैसे ही मुझे भी बड़ा होना है। ताकि मेरी शाखाओं पर ढेर सारे पंछी बैठ सकें।
इसलिए कभी-कभी मैं बहुत उत्साह में आ जाता हूँ और लंबा होने के लिए अपने शरीर को खींचने लगता हूँ। तब माँ मुझे समझाती है। तेज चमकती बारिश और उसकी भयानक आवाज़ से मुझे डर लगता है लेकिन उस समय माँ मेरा हाथ पकड़ कर पूरे समय साथ रहती है तो डर दूर हो जाता है। हाँ, कभी-कभी मैं शैतानी भी करता हूँ और दो-तीन नन्हीं चिड़िया जब मेरी शाखा पर आकर बैठतीं हैं, तो अचानक तेजी से शाखाएँ हिलाकर मैं उन्हें डरा देता हूँ। सच बड़ा मज़ा आता है।
मुझे अच्छा लगता है जब कोई पूजा या दूसरे मांगलिक कामों के लिए मेरी कुछ पत्तियाँ तोड़कर ले जाता है। हालांकि इसमें दर्द तो होता है लेकिन मैं दूसरों के काम आ रहा हूँ, ये बड़ी बात है। बस तब ज्यादा दिक्कत होती है, जब लोग यूँ ही मेरी पत्तियों को जल्दबाजी में नोच कर ले जाते हैं.. फिर बहुत दिनों तक मेरी खरोंचें ठीक नहीं होतीं और दर्द देती रहती हैं। काश इस बात को लोग समझ पाते।