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आँखों का हरापन बचाने के लिए

धरती को हरी रहने दीजिए

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रवींद्र व्यास

NDND
पेड़ों का हरापन मनुष्यों की
भूरी-भुरसट दुनिया में
निचाटपन के विरूद्ध
पानी की हलचल है
पानी के हाथों की तरह
पेड़ों की टहनियाँ
लगातार हिलती हैं
और पत्तियों की स्निग्ध भाषा
आदमी की आँखों को
बंजर होने से रोकती हैं

(चंद्रकांत देवताले की कविता पेड़ की पंक्तियाँ)

दूर तक देखता हूँ तो सिर्फ धूल उड़ती है। सिर पर तेज बरसता सूरज है। धूप और धुल उड़ती हुई आँखों में एक खौफनाक मंजर रचती है। इसी मंजर के बियाबान में कोई पेड़ नहीं दिखता। दूर तक कोई पेड़ नहीं दिखता। पेड़ नहीं होने से बंजर के मंजर में कोई हरापन नहीं। बस, लू चलती है। और यह लू बदन जितना नहीं झुलसाती उतना मन झुलसा देती है।

कहीं कोई हरापन नहीं। दूर तक हरेपन का एक छोटा सा-धब्बा तक नहीं। दूर तक कुछ न हो, और सिर्फ हरेपन का छोटा सा धब्बा हो तो तपते सूरज के नीचे चलते हुए सफर कुछ सहनीय होने लगता है। लगता है बस थोड़ी ही दूर थोड़ी देर में वह हरा धब्बा एक पेड़ में बदल जाएगा।

बस फिर क्या उसके नीचे बैठकर उसके जादू को महसूस किया जा सकता है। अचानक कुमार गंधर्व की आवाज गूँजती है-गुरुजी जहाँ बैठूँ, वहाँ छाया दे। कैसी विरल पुकार है। मन को भेदती हुई। जैसे लगातार जलते जीवन में झुलसते हुए छाँव माँगी जा रही है। दूर तक कोई पेड़ नहीं। बस गाड़ियाँ ही गाड़ियाँ है। तेज रफ्तार से चलती हुई। धूल और धुआँ उडा़ती हुई। हर दृश्य को बदरंग करती हुई।

कहीं कोई पेड़ दिख भी जाता है तो वह धूल में नहाया दिखता है। जैसे धूल पीता हुआ उसी के रंग में रंग चुका है। इतनी गाड़ियाँ है कि सड़क को चौड़ा करना पड़ रहा है। इसलिए पेड़ों को काटा जा रहा है। गाड़ियों गुजर सके इसलिए पेड़ों को रास्ते से हटाया जा रहा है। सड़कों के किनारे पेड़ों की हत्याएँ की जा रही है। वे खामोश गिरते रहते हैं। धूल उड़ती रहती है। सड़क किनारें कटे पेड़ों की शाखें सूखती रहती हैं। लोग आते-जाते रहते हैं।

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एक पेड़ का कटना, पेड़ कटना ही नहीं होता। मनुष्य की आँख में रहने वाले हरेपन का मरना होता है। वह हरापन जिसकी वजह से जीवन में पानी की हलचलें बनी रहती हैं। यानी हरापन बचा रहना मनुष्य के बचे होने का प्रमाण है। इसी हरेपन की वजह से मनुष्य, मनुष्य बना रहता है। उसकी उम्मीद औऱ आशा बची रहती है।

इसलिए एक पेड़ का धराशायी होना मनुष्य की आँख में बचे हरेपन का धराशायी होना है। इसलिए हरापन बचा रहना यानी आदमी की आँखों को बंजर होने से बचाए रखना। हम धरती के बंजर होने की चिंता करने के साथ मनुष्य की आँखों के बंजर हो जाने की चिंता भी करनी चाहिए। इसलिए एक पेड़ उगाइए, धरती को बंजर होने से बचाइए और इस तरह मनुष्य की आँखों को भी बंजर होने से बचा लीजिए। यह हरापन रहेगा तो जीवन रहेगा। यह हरापन रहेगा तो जीवन में उम्मीद रहेगी।

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