नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने तीन नए कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों के संगठनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिए चार सदस्यीय समिति गठित कर दी।
हालांकि उच्चतम न्ययालय ने कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के फैसले को 'असाधारण' करार दिया लेकिन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने कहा कि वे उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे और आरोप लगाया कि यह सरकार समर्थक समिति है। किसान संगठनों ने कहा कि उन्हें तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने एक साक्षात्कार में उच्चतम न्यायालय द्वारा गतिरोध समाप्त करने के लिए गठित समिति को निष्पक्ष बताया और कहा कि सरकार वार्ता के लिए हमेशा तैयार रही है लेकिन यह किसान संगठनों पर निर्भर है कि 15 जनवरी को निर्धारित नौवें दौर की वार्ता में वे आगे बढ़ना चाहते है या नहीं। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों के नेता और राकांपा सुप्रीमो शरद पवार समेत कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अंतरिम आदेश पारित किया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इसके परिणाम स्वरूप, कृषि कानून लागू होने से पहले की न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली अगले आदेश तक बनी रहेगी। इसके अलावा किसानों की जमीन के मालिकाना हक की सुरक्षा होगी अर्थात नए कानूनों के तहत की गई किसी भी कार्रवाई के परिणामस्वरूप किसी भी किसान को जमीन से बेदखल या मालिकाना हक से वंचित नहीं किया जाएगा।
पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के साथ ही इस विषय में दूसरे हितधारकों के पक्ष सुनेगी और दिल्ली में अपनी पहली बैठक की तारीख से दो महीने के भीतर अपनी सिफारिशें से न्यायालय को सौंपेगी। इस मामले में अब आठ सप्ताह बाद सुनवाई होगी। न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि इस समिति की पहली बैठक मंगलवार से 10 दिन के भीतर आयोजित की जाएगी।
पीठ द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति के सदस्यों में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री तथा कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि इस समिति का गठन कृषि कानूनों के बारे में किसानों की शिकायतों को सुनने और सरकार की राय जानने के बाद न्यायालय को सिफारिशें देने के उद्देश्य से किया गया है। पीठ ने कहा कि इन तीन कृषि कानूनों- कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून पर अगले आदेश तक रोक लगी रहेगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस आशा और अपेक्षा से यह अंतरिम आदेश पारित करना उपयुक्त समझा कि दोनों पक्ष इसे सही भावना से लेंगे और समस्याओं के निष्पक्ष, समतामूलक और न्यायोचित समाधान पर पहुंचने का प्रयास करेंगे। पीठ ने इन कानूनों के विरोध में किसानों के शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन की सराहना की और कहा कि अभी तक किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हुई है।
पीठ ने कहा कि यद्यपि हम शांतिपूर्ण विरोध को रोक नहीं सकते, हम समझते हैं कि इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने के असाधारण आदेश को फिलहाल ऐसे विरोध का मकसद हासिल करने के रूप में लिया जाएगा और यह किसान संगठनों को अपने सदस्यों को अपनी जिंदगी और सेहत की रक्षा और दूसरों के जानमाल की हिफाजत की खातिर अपनी आजीविका के लिए वापस लौटने के बारे में संतुष्ट करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से कहा कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आन्दोलन में खालिस्तानी संगठन सहित कुछ प्रतिबंधित संगठनों के प्रवेश के दावों के बारे में वह हलफनामा दाखिल करे। केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि इस विरोध प्रदर्शन में खालिस्तानी घुस गए हैं और वह गुप्तचर ब्यूरो से प्राप्त आवश्यक जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करेंगे।
वहीं सिंघू बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि संगठनों ने कभी मांग नहीं की कि उच्चतम न्यायालय कानून पर जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए समिति का गठन करे और आरोप लगाया कि इसके पीछे केंद्र सरकार का हाथ है। पंजाब के 32 किसान संगठनों की बैठक के बाद राजेवाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के सदस्य विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि वे लिखते रहे हैं कि कृषि कानून किसानों के हित में है। हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे।
एक अन्य किसान नेता दर्शन सिंह ने कहा कि वे किसी समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि संसद को मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए और इसका समाधान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम कोई बाहरी समिति नहीं चाहते हैं। बहरहाल, किसान नेताओं ने कहा कि वे 15 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली बैठक में शामिल होंगे। भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने उच्चतम न्यायालय के किसी भी आदेश का पालन संबंधित सभी पक्षों द्वारा किया जान चाहिए।
कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से बातचीत में दावा किया कि समिति के इन चारों सदस्यों ने इन कानूनों का अलग अलग मौकों पर खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने सवाल किया कि जब समिति के चारों सदस्य पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेत-खलिहान को बेचने की उनकी साजिश के साथ खड़े हैं तो फिर ऐसी समिति किसानों के साथ कैसे न्याय करेगी? सुरजेवाला ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को जब सरकार को फटकार लगाई तो उम्मीद पैदा हुई कि किसानों के साथ न्याय होगा, लेकिन इस समिति को देखकर ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगती। (भाषा)