नई दिल्ली। किसान नेताओं ने सोमवार को दावा किया कि वार्ता के लिए अगली तारीख के संबंध में केंद्र के पत्र में कुछ भी नया नहीं है। केंद्र के नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर हरियाणा और उत्तरप्रदेश से लगी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर किसानों ने क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की है।
क्रांतिकारी किसान यूनियन के गुरमीत सिंह ने कहा कि किसान नेताओं के अगले कदम के लिए मंगलवार को बैठक करने की संभावना है। किसान संगठन बिहार जैसे दूसरे राज्यों के किसानों से भी समर्थन लेने का प्रयास कर रहे हैं।
विपक्ष की ओर से भी दबाव बढ़ गया है, वहीं शिरोमणि अकाली दल ने तीनों नए कानूनों को निरस्त करने के लिए संसद का तुरंत सत्र बुलाने की मांग की। केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने कानूनों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करने के लिए बुधवार को विधानसभा विशेष सत्र आयोजित करने का फैसला किया है।
कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने करीब 40 किसान संगठनों के नेताओं को रविवार को पत्र लिखकर कानून में संशोधन के पूर्व के प्रस्ताव पर अपनी आशंकाओं के बारे में उन्हें बताने और अगले चरण की वार्ता के लिए सुविधाजनक तारीख तय करने को कहा है ताकि जल्द से जल्द आंदोलन खत्म हो।
किसानों और केंद्र सरकार के बीच पांचवें दौर की बातचीत के बाद 9 दिसंबर को वार्ता स्थगित हो गई थी क्योंकि किसान यूनियनों ने कानूनों में संशोधन तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखने का लिखित आश्वासन दिए जाने के केंद्र के प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया था।
किसान नेता अभिमन्यु कोहार ने कहा कि उनके पत्र में कुछ भी नया नहीं है। नए कृषि कानूनों को संशोधित करने का सरकार का प्रस्ताव हम पहले ही खारिज कर चुके हैं। अपने पत्र में सरकार ने प्रस्ताव पर हमें चर्चा करने और वार्ता के अगले चरण की तारीख बताने को कहा है।
उन्होंने कहा कि क्या उन्हें हमारी मांगें पता नहीं हैं? हम बस इतना चाहते हैं कि नए कृषि कानून वापस लिए जाएं। अग्रवाल ने पत्र में कहा है कि विनम्रतापूर्वक अनुरोध है कि पूर्व आमंत्रित आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधि शेष आशंकाओं के संबंध में विवरण उपलब्ध कराने तथा पुन: वार्ता हेतु सुविधानुसार तिथि से अवगत कराने का कष्ट करें।
अग्रवाल ने पत्र में कहा कि देश के किसानों के सम्मान में एवं पूरे खुले मन से केंद्र सरकार पूरी संवेदना के साथ सभी मुद्दों के समुचित समाधान के लिए प्रयासरत है। अग्रवाल ने कहा कि इसलिए सरकार द्वारा आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ कई दौर की वार्ता की गई।
दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों किसान कड़ाके की सर्दी में पिछले लगभग चार सप्ताह से प्रदर्शन कर रहे हैं और नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से हैं।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत ने कहा कि इस मुद्दे पर (सरकार के प्रस्ताव), हमने उनके साथ पहले बातचीत नहीं की थी। फिलहाल हम चर्चा कर रहे हैं कि सरकार के पत्र का किस तरह जवाब दिया जाए।
गुरमीत सिंह ने कहा कि आज संयुक्त मोर्चा की बैठक होगी और फैसला किया जाएगा कि सरकार को क्या जवाब देना चाहिए। हम सरकार के पत्र का आकलन करेंगे और फिर इस पर फैसला करेंगे।
किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा ने बिहार के किसानों से भी आंदोलन में शामिल होने की अपील की है ताकि उन्हें अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल सके।
मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने एक बयान में कहा कि एमएसपी लागू नहीं होने के कारण बिहार में किसान और कामगार पूरी तरह तबाह हो गए हैं। बिहार और समूचे देश में एमएसपी लागू करने के लिए मुहिम चल रही है। बिहार के किसानों और कामगारों को भी इसमें सक्रियता से हिस्सा लेना चाहिए।
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने आरोप लगाया कि भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार वार्ता का प्रस्ताव देते हुए ऐसी धारणा बनाने की कोशिश कर रही है कि वह तार्किक बात कर रही है और किसान गलत हैं। उन्होंने कहा कि कानूनों को निरस्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तुरंत संसद का सत्र आहूत करना चाहिए।
नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल पर प्रदर्शन कर रहे भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) ने किसानों को निरस्त किए जाने की मांग की। भाकियू (भानु) के सदस्य दिसंबर के पहले सप्ताह से चिल्ला बॉर्डर पर डटे हुए हैं।
किसानों ने नोएडा के अलावा पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर, अलीगढ़, मेरठ, मुजफ्फरनगर और फिरोजाबाद में प्रदर्शन किया। नोएडा-दिल्ली रोड पर भाकियू के दो संगठनों के प्रदर्शन के कारण यातायात बाधित हुआ है।
भाकियू (लोकशक्ति) के प्रवक्ता शैलेष कुमार गिरि ने कहा कि तीनों कानूनों को वापस लिए जाने तक हम पीछे नहीं हटेंगे। एक नया कानून होना चाहिए जिसमें एमएसपी से कम मूल्य पर फसल खरीदने वालों के खिलाफ कानूनी कदम का उल्लेख होना चाहिए।
केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों पर चर्चा करने और उनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने के लिए बुधवार को केरल विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। राज्य के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने ट्वीट किया किया कि केरल किसानों के संघर्ष में उनके साथ है और इस सत्र में इन कानूनों पर चर्चा करके उन्हें खारिज किया जाएगा।
मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया है कि मंत्रिमंडल ने राज्यपाल को 23 दिसम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की सिफारिश करने का निर्णय लिया है। यह सत्र तीन कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए बुलाया जा रहा है, जिनके विरुद्ध किसानों ने देशव्यापी आंदोलन कर रखा है।
तापमान गिरने के कारण सिंघू बॉर्डर के आसपास छोटे-छोटे तंबू तन गए हैं। प्रदर्शन स्थल के आसपास अब 50 से ज्यादा तंबू बन गए हैं। हालांकि, अधिकतर किसानों ने ट्रैक्टर की ट्रॉलियों में ही अपने सोने-रहने की व्यवस्था कर रखी है।
किसानों के आंदोलन के संबंध में फेसबुक पर बने एक पेज को अस्थायी तौर पर बंद किए जाने के संबंध में प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को कहा कि उनके आंदोलन के लिए सोशल मीडिया महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे वे अपने शब्दों में सच बता पा रहे हैं।
सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाले किसान हिम्मत सिंह ने कहा कि सोशल मीडिया हमारे आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सोशल मीडिया पर हम घटनाक्रम साझा कर सकते हैं।
वे कुछ दिन पहले ही पंजाब के कपूरथला से प्रदर्शन स्थल पर आए थे। उन्होंने कहा कि यहां पहुंचने से पहले आंदोलन के बारे में सूचना का उनका मुख्य स्रोत सोशल मीडिया ही था। उन्होंने फेसबुक पेज को बंद किये जाने को उन्हें चुप करने की कोशिश करार दिया।
गाजियाबाद में भी किसानों ने भूख हड़ताल शुरू की और कुछ देर तक दिल्ली-गाजियाबाद रोड को अवरुद्ध कर दिया। गाजियाबाद के पुलिस अधीक्षक (सिटी-दो) ग्यानेंद्र सिंह ने बताया कि किसानों को अवरोध हटाने के लिए समझाया गया जिसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग-नौ को यातयात के लिए खोल दिया गया।
दिल्ली की गाजीपुर सीमा पर प्रदर्शनकारी किसानों ने रक्तदान शिविर का आयोजन किया। इस अवसर पर भाकियू नेता राकेश टिकैत ने रक्तदान किया। केंद्र सरकार सितंबर में पारित तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे। (भाषा)