नई दिल्ली। प्रदर्शनकारी किसान संगठन नए कृषि कानूनों को लेकर 30 दिसंबर को वार्ता के अगले दौर को लेकर सरकार के एक प्रस्ताव पर 'सिद्धांतत:'सहमत हो गए, लेकिन उन्होंने कहा कि केंद्र को अपने निमंत्रण में बैठक के एजेंडे के बारे में बताना चाहिए।
संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि केंद्र द्वारा प्रस्तावित तारीख पर बैठक में भाग लेने के लिए किसान सहमत हो गए हैं। विवादास्पद कानून के खिलाफ 40 संगठनों का यह प्रतिनिधि संगठन है। केंद्र ने वार्ता के लिए 30 दिसंबर की तारीख के लिए पत्र भेजा। इसके बाद किसानों ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। किसान पहले 29 दिसंबर को वार्ता चाहते थे।
कोहाड़ ने कहा कि सरकार को 26 दिसंबर को भेजे गए अपने पत्र में हमने स्पष्ट रूप से वार्ता के एजेंडे के तौर पर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी की कानूनी गारंटी का जिक्र किया था, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने आज के पत्र में किसी विशिष्ट एजेंडे का जिक्र नहीं किया है। उन्होंने कहा कि लेकिन हम सिद्धांत रूप से सरकार के साथ वार्ता करने के लिए सहमत हो गए हैं।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने एक बयान में कहा कि प्रदर्शनकारी किसान बैठक में 4 विशिष्ट एजेंडों को शामिल करना चाहते हैं जिसमें 'तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने के तौर-तरीकों को अपनाना' भी शामिल है। इसने आरोप लगाया कि सरकार ने 'अस्पष्ट'भाषा का इस्तेमाल किया है, जो दिखाता है कि वह किसानों द्वारा प्रस्तावित पूरे एजेंडे पर चर्चा करना चाहती है। कोहाड़ ने कहा कि सरकार 30 दिसंबर को वार्ता का प्रस्ताव दे रही है जबकि किसानों ने 29 दिसंबर का सुझाव दिया था। यह दिखाता है कि केंद्र अपना दबदबा बनाकर रखना चाहता है।
इस बीच नए कृषि कानूनों के विरोध में 28 नवंबर से सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों की संख्या में सोमवार को बढ़ोतरी देखी गई क्योंकि सप्ताहांत में नए किसान उनके साथ जुड़ गए। राजमार्ग और इसके आसपास के इलाकों में चलना दूभर हो गया क्योंकि ट्रैक्टर ट्रॉली में पहुंचे नए किसानों ने प्रदर्शन स्थल पर ज्यादा जगह घेर ली है। एक महीना पूरा होने पर किसानों ने कहा कि वे लंबे समय तक डटे रहने के लिए तैयार हैं और आंदोलन को चलाने के लिए भोजन और कपड़ा पर्याप्त मात्रा में पहुंच रहा है। नए कानूनों से एमएसपी व्यवस्था और मंडी व्यवस्था के खत्म होने की आशंका से किसान तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। वहीं सरकार कानूनों को कृषि क्षेत्र के लिए बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है।
पटियाला के अमरिंदर सिंह 4 दिसंबर को घर लौट गए थे और अब अपनी पत्नी और बहन के साथ लौटे हैं। उन्होंने कहा कि और लोग आ रहे हैं और अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए पंजाब के हर गांव में हर घर एक हजार रुपए चंदा रहा है। उन्होंने कहा कि 2 जनवरी को एक धार्मिक समारोह समाप्त होने के बाद और लोग फतेहगढ़ साहिब से आएंगे।
पंजाब में 1,500 से अधिक मोबाइल टॉवर तोड़े : 3 कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने पंजाब में 1,500 से अधिक मोबाइल टॉवर तोड़े हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाएं प्रभावित हुई हैं। सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
किसानों का मानना है कि नए कृषि कानूनों से अरबपति उद्योगपतियों मुकेश अंबानी और गौतम अडाणी को सबसे अधिक फायदा होगा, इसलिए उनका गुस्सा मुकेश अंबानी की कंपनी जियो के मोबाइल टॉवरों पर निकल रहा है। राज्य में कई हिस्सों में इन टॉवरों को बिजली की आपूर्ति रोक दी गई है और साथ ही केबल भी काट दी गई है। हालांकि अंबानी का रिलायंस समूह और अडाणी की कंपनियां किसानों से अनाज खरीदने के कारोबार में नहीं हैं। मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि कल तक 1,411 टॉवरों को नुकसान पहुंचाया गया था।आज यह आंकड़ा 1,500 के पार हो गया है।
जालंधर में जियो की फाइबर केबल के कुछ बंडल भी जला दिए गए हैं। राज्य में जियो के 9,000 से अधिक टॉवर हैं। एक अन्य सूत्र ने कहा कि टॉवर को नुकसान पहुंचाने का सबसे आम तरीका बिजली की आपूर्ति काटना है। एक मामले में टॉवर साइट पर जेनरेटर को लोग उठाकर ले गए और उसे एक स्थानीय गुरुद्वारे में दान कर दिया।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शुक्रवार को आंदोलनकारी किसानों से अपील की थी कि वे ऐसा कोई कदम नहीं उठाएं जिससे आम लोगों को परेशानी हो। सूत्रों ने कहा कि राज्य पुलिस ने टॉवर तोड़ने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है और ज्यादातर मामलों में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है। टॉवर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स एसोसिएशन (टीएआईपीए) ने कहा है कि कम से 1,600 टॉवरों को नुकसान पहुंचाया गया है। (भाषा)