गाजियाबाद। गाजीपुर-दिल्ली बॉर्डर एक माह से किसानों का आंदोलन कृषि कानून को लेकर चल रहा है। ठिठुरती ठंड में किसान आंदोलनरत है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ने मंच से भाषण देकर अपनी मंशा को साफ करते हुए कहा है कि ये वैचारिक क्रांति है, देश की 70% जनसंख्या गांवों में रहती है, सरकार उनको नाराज करके खुश नहीं हो सकती है।
दिल्ली में सरकार से होने वाली वार्तालाप से पहले टिकैत ने मंच से दो टूक कहा कि ये आंदोलन दो सूरतों में ही खत्म हो सकता है। पहला सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले और पूरे देश में फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य एक होने का कानून बने।
टिकैत ने कहा ये तो वैचारिक क्रांति है, इसको खत्म करने के दो माध्यम है। एक तो सरकार किसानो की सभी मांगे मान ले या फिर किसानो पर गोलियां चलवा कर आंदोलन खत्म कर दें। लेकिन सरकार ये समझ ले कि किसान अब गोलियों से डरने वाला भी नहीं है।
टिकैत इतने पर भी नही रूके, उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि किसान अभी सिर्फ कानून वापसी की मांग कर रहे हैं, सरकार से गद्दी छोड़ने की बात नहीं कर रहे। इतिहास गवाह है जब जब ऐसी (वैचारिक) क्रांति होती है, तो सरकार का तख्ता ही पलट जाता है।
टिकैत ने भाषण के दौरान ब्राह्मणों और मंदिरों पर दिए गए अपने बयान पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि मैने सिर्फ कह कहा था कि गुरद्वारे की तरह इस आंदोलन की स्पोर्ट में मंदिरों को भी आगे आना चाहिए। मंदिर आगे आ भी रहे है, मथुरा के मंदिरों से किसानों के लिए 5 कुंटल लड्डू बनकर आए हैं।
डैमेज कंट्रोल करते हुए टिकैत बोले कि ब्राह्मणों के लिए कोई गलत शब्द का प्रयोग नहीं किया है। ब्राह्मण कुल का छोटा बालक भी हमारे लिए पूज्यनीय है।
राकेश टिकैत के मंदिरों पर दिए गए बयान पर उन्नाव के सांसद और धर्मगुरु साक्षी महाराज ने कहा था कि टिकैत किसान नही है, बल्कि नेता है। इस तरह के बयान नेता देते है और उन्हें नजर अंदाज कर देना चाहिए।
अब देखना होगा की किसानों और सरकार के बीच सुलह होती है या नही। टिकैत के भाषण ने शीतलहर का असर कम करते हुए किसानों में जोश और गर्मी भर दी है।