Kisan Andolan 2.0 के पीछे कहां हैं राकेश टिकैत और चढूनी?
क्या आंदोलन को लेकर किसान संगठन में है फूट
चढूनी ने उठाए सवाल
टिकैत बोले जरूरत हुई तो होंगे शामिल
पिछली बार के नेताओं से नहीं है तालमेल
farmer protests 2024 : किसान एमएसपी सहित कई मांगों को लेकर फिर प्रदर्शन कर रहे हैं। वे दिल्ली में घुसने के लिए सीमाओं पर डटे हुए हैं। सरकार किसानों को मानने के प्रयास कर रही है। मंत्रियों और नेताओं की वार्ता विफल रही है। 2020 में किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले भाकियू नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) और किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी (Gurnam Singh Chadhuni) ने इस बार के आंदोलन से दूरी बना ली है।
आखिर ये दोनों बड़े नेता आंदोलन में शामिल क्यों नहीं हो रहे हैं। आंदोलन से दूरी बनाने को लेकर दोनों नेताओं के बयान भी सामने आए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा से कुछ दल अलग हो गए और यह आंदोलन उन्होंने बुलाया है।
कौन कर रहा है अगवाई : इस बार आंदोलन की अगुवाई संयुक्त किसान (अराजनैतिक) और किसान मजदूर मोर्चा कर रहे हैं। दोनों संगठन पहले संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा रहे हैं। किसान मजदूर मोर्चा 18 किसानों का समूह है। सरवन सिंह पंढेर जिसके संयोजक हैं। दोनों ही समुहों में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के किसान शामिल हैं।
क्या कहा राकेश टिकैत ने : भारतीय किसान यूनियन के नेता और किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने मीडिया के सामने आंदोलन से दूरी बनाने को लेकर अपना पक्ष रखा है। टिकैत ने कहा है कि सब अपने तरीके से कार्यक्रम कर रहे हैं। सरकार जो कर रही है वो गलत कर रही है।
बातचीत करके समस्या सुलझानी चाहिए। टिकैत ने कहा कि 16 फरवरी को हमारा ग्रामीण भारत बंद है। अगर इनको परेशानी हुई तो हम भी एक्टिव होंगे। किसानों की समस्या है तो दिल्ली मार्च करेंगे। देश में बहुत से संगठन है।
चढूनी ने कूच पर उठाए सवाल : किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने किसानों के दिल्ली कूच पर सवाल खड़े किए हैं। चढूनी का आरोप है कि उन नेताओं को अलग रखा गया है, जो पिछले आंदोलन में शामिल थे।
उन्होंने मीडिया को कहा कि पिछली बार तय हुआ था कि जरूरत पड़ने पर आंदोलन दोबारा किया जाएगा। अब किसान फिर से प्रदर्शन करने जा रहे हैं, तो उन्हें पहले किसान यूनियनों की बैठक बुलानी थी। हमसे सलाह तक नहीं ली गई।
आंदोलन के बाद शुरू हो गए थे मतभेद : पिछले आंदोलन में सरकार द्वारा कृषि कानूनों के रद्दे होने के बाद जब किसानों ने वापस लौटना शुरू किया तो समूहों के बीच मतभेद शुरू हो गए थे। इससे ये कई गुटों में बंट गए। अब सक्रिय किसान संगठनों की संख्या करीब 50 है, जबकि 2020 में 32 थी। Edited By : Sudhir Sharma