फैशनेबल और सुंदर लाख की चूडि़याँ
सुहाग की प्रतीक लाख की चूडि़याँ
हमारी दादी-नानी अक्सर अपनी बहुओं को लाख की चूडि़याँ पहनने का कहती हैं। लाख की चूडि़यों को सुहाग का प्रतीक भी माना जाता है। काँच व मैटल की चूडि़यों का चलन तो अभी-अभी हुआ है। इसके पहले तो लाख की चूडि़यों का ही चलन था। आज फिर लाख की चूडि़याँ अपने नए फैशनेबल रूप में महिलाओं को लुभाने बाजार की रौनक बनकर आई हैं।क्या है मान्यता :- विवाहित महिला की सूनी कलाई होना अपशगुन माना जाता है। हिन्दुओं में कई बड़े तीज-त्योहारों पर सुहागनों के लिए लाख की चूडि़याँ पहनना अनिवार्य माना गया है। हमारे यहाँ शादी में भी नवविवाहिता को बाबुल के घर से लाख का चूड़ा पहनाकर ही विदा किया जाता है, जो उसे लगभग सवा महीने तक पहनना पड़ता है। |
नारी की कलाई यदि चूडि़यों से भरी हो तो उसकी खूबसूरती और भी अधिक बढ़ जाती है। सुहाग की प्रतीक होने के साथ-साथ ये चूडि़याँ नारियों को अपनी संस्कृति व परंपरा से जोड़े रखती हैं और उन्हें परिपूर्णता प्रदान करती हैं। |
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फैशनेबल लाख की चूडि़याँ :-
लाख की चूडि़याँ अब फैशनेबल रूप में ढलती जा रही हैं। आज बाजार में कई वैरायटियों व रेंज की लाख की चूडि़याँ प्रचलन में हैं, जिनमें खरे नग की लाख की चूडि़याँ सबसे महँगी बिकने वाली चूडि़याँ हैं।
इन चूडि़यों में पक्के नग लगाए जाते हैं, जिनकी चमक सालों-साल बरकरार रहती है। खरे नग की चूडि़यों के दाम लगभग 300 रुपए से लेकर 1500 रुपए तक होते हैं।
फैशन के रंग में ढलने के कारण लाख-मैटल की चूडि़यों का भी बाजार में चलन चला है। इन चूडि़यों में मैटल की चौड़ी रिंग पर लाख, काँच और डायमंड की कारीगरी की जाती है। इस प्रकार की चूडि़यों का चलन युवतियों में सर्वाधिक है।
क्या है लाख :-
लाख एक प्रकार के जीव द्वारा अपशिष्ट पदार्थ के रूप में छोड़ा गया पदार्थ है, जिसका शोधन कर इससे सुंदर-सुंदर चूडि़याँ बनाई जाती हैं। यह जीव धावड़ा, पीपल व खाखरे के पेड़ पर पाया जाता है।
यहाँ की चूडि़याँ हैं मशहूर :-
मालवांचल के आदिवासी इलाकों की महिलाओं द्वारा लाख की चूडि़याँ विशेषकर पसंद की जाती हैं। मालवांचल में मंदसौर, उज्जैन व रतलाम की लाख की चूडि़याँ बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं। लाख की चूडि़याँ बनाने का कार्य मुख्यत: लखारा जाति के लोगों द्वारा किया जाता है।
इन चूडि़यों में कुछ कॉमन कलर हैं, जो कि सदाबहार है। इनमें लाल, मेहरून, चटनी हरा, नारंगी पीला आदि शामिल हैं। इन रंगों की लाख की चूडि़यों की बिक्री सर्वाधिक होती है।
नारी की कलाई यदि चूडि़यों से भरी हो तो उसकी खूबसूरती और भी अधिक बढ़ जाती है। सुहाग की प्रतीक होने के साथ-साथ ये चूडि़याँ नारियों को अपनी संस्कृति व परंपरा से जोड़े रखती हैं और उन्हें परिपूर्णता प्रदान करती हैं।