पगड़ी पुरुषों के माथे पर बाँधा जाने वाला एक ऐसा लंबा कपड़ा होता है, जो उनकी शान का प्रतीक होता है। आज भी राजपूतों व राजघरानों में पुरुषों के पगड़ी बाँधने का रिवाज है। विशेषकर राजस्थान में तो पगड़ी व मूँछ को पुरुषों की शानो-शौकत का प्रतीक माना जाता है।वक्त बदलता गया और इस बदलते वक्त के साथ पगड़ी ने भी पाग, साफा, फालिया, घुमालो, अमलो आदि के रूप में अपने कई कलेवर बदले। पगड़ी के इन बदलते कलेवरों के साथ भी इसने अपना अस्तित्व नहीं खोया।कई प्रमुख तीज-त्योहारों, शादियों आदि अनेक अवसरों पर पुरुषों द्वारा पगड़ी पहनी जाती है। यहाँ तक कि हिन्दुओं में विवाह में दुल्हे को रेडिमेड साफा या पगड़ी पहनाना अनिवार्य माना जाता है। हमारे यहाँ कई शुभ अवसरों पर सगे-संबंधियों व मेहमानों को पगड़ी पहनाकर उनका अभिनंदन किया जाता है। |
वक्त बदलता गया और इस बदलते वक्त के साथ पगड़ी ने भी पाग, साफा, फालिया, घुमालो, अमलो आदि के रूप में अपने कई कलेवर बदले। पगड़ी के इन बदलते कलेवरों के साथ भी इसने अपना अस्तित्व नहीं खोया। |
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जिस तरह भारतीय परंपरा में विवाहित महिलाओं का खुला सिर रखना अशुभ माना जाता है, अत: इसके लिए घुँघट परंपरा की शुरुआत की गई, उसी प्रकार पुरुषों का भी अपने बड़े-बुर्जुगों के सामने खुले सिर जाना बड़ों का अपमान माना जाता है इसलिए पुरुषों के माथे पर पगड़ी बाँधने का चलन प्रचलित हुआ।
वर्तमान में पगड़ी या साफे के अलग-अलग प्रकार के मटेरियल बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें सूती, सिल्क, नेट आदि मटेरियल प्रमुख हैं। साफा बाँधने के झंझट से बचने के लिए बाजार में उपलब्ध रेडिमेड साफे व पगड़ी एक बेहतर विकल्प है, जिनमें आपको हेवी वर्क वाले साफे व पगड़ी मिल जाएँगे।
भारतीय संस्कृति की प्रतीक पगड़ी अब रैंप पर भी अपने जलवे बिखेरने लगी है। आजकल कई बड़े फैशन डिजाइनर पुरुषों के वेडिंग कलेक्शन में पगड़ी के साथ नए-नए प्रयोग कर रहे हैं।
पगड़ी के रूप में साफा बाँधना हर किसी के बस की बात नहीं है। पूरी नजाकत के साथ इसकी एक-एक लटकन को गोल-गोल घुमाकर माथे पर बाँधा जाता है। इसकी एक भी लट ढीली होने पर पगड़ी खुल सकती है। राजघरानों में इस कार्य के लिए एक अलग ही व्यक्ति नियुक्त किया जाता था, जो केवल पगड़ी बाँधने का ही कार्य करता था।
दुनियाभर को राजस्थानी संस्कृति से परिचित कराने के लिए कई बड़े और नामी होटलों में शेफ, होटल मैनेजर आदि सभी का ड्रेस कोड धोती-कुर्ता और पगड़ी है। बदलते मौसम के साथ-साथ पगड़ी के रंगों में भी आपको भिन्नता देखने को मिलेंगी। रंगीले राजस्थान में हर तीज-त्योहारों पर अलग-अलग प्रकार की पगड़ी पहनी जाती है। इनमें से लहरिया पगड़ी एक ऐसी पगड़ी है, जो सदाबहार है।
पगड़ी की यह यात्रा एक परंपरा व रिवाज के रूप में शुरू होकर आज फैशन की दुनिया तक चली गई है। इतने पर भी इसका औचित्य समाप्त नहीं हुआ। भले ही अपने नए रूप में ही सही परंतु आज भी यह पुरुषों को रिझा रही है।