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सदाबहार सतरंगी साडि़याँ

गरिमामय परिधान: साड़ी

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गायत्री शर्मा

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साड़ी वह पारंपरिक परिधान है जो नारी को परिपूर्णता प्रदान कर उसकी खूबसूरती में अभिवृद्धि करता है। साड़ी तो भारतीय नारी की पहचान है।

केवल पारंपरिक परिधान के तौर पर ही नहीं बल्कि फैशनेबल ड्रेस के तौर पर भी साड़ी को पहना जाता है। इस परिधान में नारी की जो खूबसूरती निखरकर सामने आती है वह लाजवाब होती है।

साडि़यों पर की जाने वाली कसीदाकारी व वर्क उसे और भी खूबसूरत बना देते हैं। शादी व अन्य प्रमुख आयोजनों में महिलाएँ ज्यादा वर्क वाली भारी साडि़याँ पहनना पसंद करती हैं।

श्रीमती कंचन वर्मा के अनुसार- 'शादी में जब तक हैवी वर्क वाली साड़ी नहीं पहनो तो मजा ही नहीं आता है। मैं तो परिवार में होने वाली हर शादी के लिए एक नई साड़ी खरीदती हूँ।'

हमारे देश में हर छोटे-बड़े त्योहारों व आयोजनों जैसे रक्षाबंधन, दीपावली, गृहप्रवेश, विवाह आदि पर बहू-बेटियों को साड़ी उपहार/भेंट स्वरूप प्रदान की जाती है। त्योहारों के लिए विशेष तौर पर कोई नया वर्क या मटेरियल बाजार में आता है। इन साडि़यों के नाम भी उस वक्त के हिट गाने या अभिनेत्री के नाम पर रखे जाते हैं।

* आज की फैशन :- इन दिनों खाटली वर्क, कॉपर वर्क, वाटर सीक्वेंस, जूट वर्क आदि की साडि़याँ महिलाओं को खूब लुभा रही हैं। साडि़यों पर ‍सितारों की लंबी-लंबी कतारों की खूबसूरती और चमक देखते ही बनती है।

साड़ी व्यवसायी बंटी माहेश्वरी की मानें तो- 'साड़ी का फैशन कभी पुराना नहीं होता। कल तक गोटे का जो वर्क साडि़यों पर प्रचलित था, कुछ सालों बाद आज फिर से वही गोटे का वर्क साडि़यों पर नए अंदाज में आ रहा है।'

कुछ भी कहो साडि़याँ सदाबहार होती हैं जिसे हर मौसम में आसानी से पहना जा सकता है। यह नारी के बदन को ढँकने के साथ-साथ उसे एक आत्मविश्वास से भर देती है। भारतीय संस्कृति की छाप छोड़ती ये साडि़याँ नारी की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है।

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