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फैशन की दुनिया में खिले फूल

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-डॉ. सीमा शाहज

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साड़ियों पर सजती फूलों की कतार हो या स्कर्ट पर इठलाते गुलाबों का गुच्छा, फैशन की दुनिया में फूलों ने हमेशा से अपना निश्चित मुकाम बना रखा है। फ्लोरल प्रिंट से लेकर गहनों में असली फूलों के इस्तेमाल तक कल्पना के हजारों रंग आसानी से नजर आ सकते हैं।

युवा साहित्यकार कात्यायनी कहती हैं-'खिले-खिले फूल चाहे नैसर्गिक हों या प्रिंटेड, जहाँ भी अपनी सुवासित छवि बिखरते हैं या लुभावना फलक उपस्थित करते हैं, वहाँ का वातावरण कैसी भी परिस्थिति में खुशनुमा वातायन की खिली-खिली खिड़कियाँ खोल देता है। एक अबोली खुशबू वहाँ के उपस्थित मनोमय जगत में खुशियों की नन्हीं-नन्हीं उर्मियाँ बिखेरती रहती हैं।' युगों से शाश्वत फैशन हैं खिले-खिले फूल...। फूल सौंदर्य और यौवन का प्रतीक आज से नहीं सदियों से हैं। परिधान के क्षेत्र में भी कढ़ाई-बुनाई-चित्रकारी हो या प्रिंट, खूबसूरत फूल और पत्तियाँ चटख सुंदरता के साथ उभरते हैं। भारत हो या अन्य कोई देश हर जगह सामान्य जीवन से फूल जुड़े दिखाई देंगे। जापान के एक प्रसिद्ध डिजाइनर योकोंमत्सुकी ने तो प्राकृतिक पत्तियों को लेटेक्स यानी वनस्पति दूध में 'इम्प्रेस' किया यानी छापा और एक कला निखरकर प्रस्तुत हो गई।

न्यूयॉर्क में इस तरह के अभिनव परिधानों की एक प्रदर्शनी भी हुई थी, नाम था 'ब्लूम' यानी प्रस्फुटन। इसमें सदियों पहले से लेकर आज तक के परिधानों में प्राकृतिक फूलों के सौंदर्य को दर्शाया गया था। अनेक परिधान विशेषज्ञों का मानना है कि 'फूल बदलते सामाजिक परिवेश और रुचि के दर्पण हैं।' इसी वजह से कुछ विशिष्ट फूल कभी फैशन में रहते हैं और कभी नहीं। कभी गुलाबों का जमाना होता है, तो कभी शेवंती का, कभी सूर्यमुखी इठलाता है, तो कभी कैमीलिया, कभी जंगली गुलाबों की शोख बेलें साड़ी या गाउन पर दिखती हैं,तो कभी जापानी फूलों की नफासत और नजाकत कपड़ों को एक नया रूप-रंग प्रदान करती है।

द्वितीय महायुद्ध के बाद प्रसिद्ध परिधान संस्थान गृह 'डिओर' ने मानो शांति और खुशहाली के प्रतीक के रूप में बड़े-बड़े गुलाबों को अपने परिधानों पर सजाया। शायद इस तरह उसने युद्ध की विभीषिका से पहले के खूबसूरत शांत विश्व को फिर याद किया। इसी कंपनी ने एक बार फूल को अपनी ही पत्तियों के आगोश में दिखाकर मानो यह प्रस्थापित किया कि माँ की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। उसका ममतामय घरेलू स्वरूप कितना सशक्त है। उसके इस विशिष्ट डिजाइन में फूल प्रजनन का पावन प्रतीक था, जिसकी सुरक्षा पत्तियों व डालियों के माध्यम से दिखाई गई थी। डिजाइनर नीता लुल्ला का मानना है कि 'डिजाइनरों के मस्तिष्क फूलों...कलियों को माध्यम बनाकर कई बार बहुत अभिनव तथ्यों को उकेरते हैं।' हमारे देश में भी सदा से प्रचलित फूल-पत्तियों और बेलों के पारंपरिक डिजाइन...हरियाली प्राकृतिक संपदा...वनसंपदा को प्रदर्शित करते आ रहे हैं। फूलों की पहुँच मामूली-सी सस्ती साड़ी तक है तो हजारों रुपए मीटर पाँच सितारा घरों के परदों तक भी। फूलों से मुँह कैसे फेरेंगे आप?

विदेशों में परिधान तो परिधान हैट को भी कहीं गुलाब, कही शेवंती और कही बंद गोभी की शक्ल में बनाकर पेश किया गया है। साधारण से दिखने वाले बहुत ही मनमोहक 'डेजी' के फूल को हर देश में बहुत इस्तेमाल किया गया है। किन्हीं-किन्हीं डिजाइनरों ने तो अपने परिधानों को फूलों के गुच्छों से इतना ढँक दिया है कि पहनने वाली मोहतरमा खुद बहार नजर आने लगी।

अधखिली गुलाब की कलियाँ या कमल के पूरे खिले फूल डिजाइनरों के हमेशा से पसंदीदा फूल रहे हैं। कभी ये फूल छापे के रूप में, कभी एप्लीक, कभी कढ़ाई या कभी फैब्रिक कलर के रूप में परिधानों को सजाते-सँवारते हैं। शर्टों के कॉलर, जीन्स के पायचों पर भी फूलों की मोड़दार डिजाइनें उकरने का फैशन कभी धुँधला नहीं पड़ा। भारतीय फूल ही क्यों भारत की प्रमुख परिधान मेकिंग कंपनियों ने मनमोहक विदेशी फूलों जैसे पॉपी, केमीलिया, जीनिया, स्वीटपी, फ्लाक्स, कार्नेशन, ग्लैडियोला इत्यादि को भी अपनी डिजाइन्स में पूरा सम्मान दिया है। आज आइरिस, ऑर्किड, डहेलिया या पानसेटिया को भी फैशन में सम्मिलित किया जा चुका है। इन सबके अलावा खास मौकों पर फूलों के गहने भी विभिन्न वर्गों जैसे महाराष्ट्रीयन, बंगाली समाज, मुस्लिम समाज और समस्त दक्षिण भारत के साथ-साथ विशिष्ट कबीलों में भी खूब पसंद किए जाते हैं। लहराते रेशमी बालों में फूल सजाना एक सदाबहार फैशन बन चुका है। पुरुष वर्ग भी विशेष अवसरों पर बटन होल में फूल लगाना पसंद करते हैं। वस्तुतः फूल गरिमामय फैशन के अभिन्न अंग हैं। फैशन की दुनिया फूलों के बिना... उसके आरेखन के बिना... अधूरी है। फूल ही फूल और उसके रूप ही रूप में खिल उठती हैं फैशन की कलियाँ... बन जाती है... निखर जाती है... रंगों की चटख दुनिया...।

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