परिवार को जो हर हाल में संभालता है
हर परिस्थिति में हर बात का हल निकालता है
न कोई इच्छा न कोई जरूरत रहती अधूरी
वो इस कदर प्यार से पालता है
खूबियों से इतनी नवाज़ा है खुदा ने जिसको
खुदा का हर रंग उसमें सिमटता है
एक निवाला खिलाने की ख्वाहिश में हमको
वो हर रोज़ यूं ही मर मिटता है
खुशियों का समंदर देने तुझको
उसका हर पल कुछ जर्रे सा कटता है
मोड़ लेती है मुंह कायनात पूरी
जब पिता का साया सर से उठता है...।