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कंपनी फिक्स डिपॉजिट

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राकेश सामर

बढ़ती ब्याज दर के जमाने में निवेशकों के पास अब कंपनियों में फिक्स डिपॉजिट करवाने के आकर्षक विकल्प उपलब्ध हो रहे हैं, पर धन योजनाओं में निवेश करने के पहले इनको ठीक से समझना बहुत जरूरी है।

निजी व सरकारी क्षेत्र की कई कंपनियाँ आम जनता का पैसा सावधि जमा के रूप में लेती हैं जिसे वह अपनी कार्यशील पूँजी व अन्य उपयोग में काम में लेती हैं।

अलग-अलग कारणों से कंपनियाँ कई बार अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार संस्थानों से राशि उधार नहीं ले पाती हैं व संस्थान भी उन्हें अधिक देने में असमर्थ होते हैं। ऐसी परिस्थितियों में तलरता की कमी को कंपनियाँ फिक्स डिपॉजिट द्वारा पूरी करती हैं।

कंपनी फिक्स डिपॉजिट नामक निवेश पत्र का प्रचलन भारत में ही ज्यादा हैं। आम जनता से राशि एकत्रित करने के लिए कुछ छोटी-मोटी पूँजी की शर्तें होती हैं, ब्याज दर व समय अवधि की कुछ बाध्यता होती है, इत्यादि पर अलग से किसी प्रकार का लाइसेंस लेना जरूरी नहीं होता है।

अगर कोई कंपनी इन शर्तों की पूर्ति नहीं करते हुए भी अगर जनता से फिक्स डिपॉजिट के माध्यम से राशि इकट्ठी कर रही हो तो आम निवेशकों को इसके बारे में क्या मालूम पड़ सकता है? हमारे देश के लचीले नियम ऐसी योजनाओं को बढ़ावा ही देते हैं।

कंपनी डिपॉजिट योजनाओं में अभी कुछ कंपनियाँ 11-13 प्रतिशत तक का ब्याज दे रही हैं, उस पर एजेंट को देय 3-5 प्रतिशत का कमीशन व 3-4 प्रतिशत का वितरण खर्च भी उठाना ही पड़ता है यानी कुल मिलाकर करीब 18-21 प्रतिशत का खर्च कंपनी पर आता है।

जरा सोचिए, ऐसे कितने व्यवसाय हैं, जहाँ 21 प्रतिशत सालाना ब्याज पर राशि लेकर मुनाफा कमाया जा सकता है? कंपनियों को आम जनता से राशि इकट्ठी करने की मंजूरी देना एक तरह से कंपनियों को सीमित दायरे में बैंकिंग लाइसेंस देने के समकक्ष भी कहा जा सकता है, जो कि देखा जाए तो गलत ही है।

नासमझ और लालची निवेशक तो ज्यादा ब्याज के प्रलोभन में फँस ही जाते हैं। ख्याल रहे कि मैं यहाँ यह नहीं कह रहा हूँ कि फिक्स डिपॉजिट के माध्यम से राशि इकट्ठी करने वाली हर कंपनी गलत है। फैसला आपको करना है कि क्या थोड़े से ज्यादा ब्याज के लालच में आपको अधिक जोखिम उठानी है।

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