सभी स्रोतों से आय जैसे कि तनख्वाह, व्यवसाय, घर-संपत्ति, कैपिटल गेन्स व अन्य स्रोतों का जोड़ लगाने से कुल आय निकाली जाती है और फिर उस कुल आय में से आयकर की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मिल रही छूट को घटाने से करयोग्य आय निकाली जाती है।
टैक्स प्लानिंग से हमारा आशय आयकर की चोरी करना बिलकुल नहीं है बल्कि आयकर एक्ट की विभिन्न धाराओं का न्यायसंगत तरीके से इस्तेमाल कर अपने आयकर के दायित्व को कम करने से है।
आयकर की विशिष्ट धाराएँ, जो टैक्स प्लानिंग में काम आती हैं उनमें धारा 80 सी के अलावा अन्य धाराएँ 24, 80 डी, 80 डीडी, 80 ई, 80 जी व नई धारा 80 सीसीएफ प्रमुख हैं।
टैक्स प्लानिंग की विभिन्ना छूटों को हम चार स्पष्ट वर्गों में बाँट सकते हैं। एक तो कुछ आवश्यक खर्चों पर मिलने वाली छूट, दूसरी पूर्व में किए गए निवेश पर अपने आप मिलने वाली छूट, तीसरी विशिष्ट ऋण अदायगी पर मिलने वाली छूट और चौथी निर्देशित निवेश करने पर मिलने वाली छूट।
पहले वर्ग की छूट में बच्चों के स्कूल को दी हुई ट्यूशन फीस व आवासीय मकान खरीदने पर रजिस्ट्री व स्टैम्प ड्यूटी पर किए हुए खर्चे आते हैं। दोनों ही ऐसे आवश्यक खर्चे हैं, जो कि आयकर की छूट (80 सी) मिलने के मुख्य उद्देश्य से हरगिज नहीं किए जाते हैं।
इनके अलावा स्वास्थ्य बीमा के लिए दिया प्रीमियम (80 डी, 80 डीडी इत्यादि) भी एक आवश्यक खर्च ही है, पर जो आमतौर पर निवेश की श्रेणी में नहीं आता है। किराए के मकान में या माता-पिता/बच्चों के मकान में रहने वाले व्यक्ति भी देय वास्तविक या धरनात्मक किराए पर छूट ले सकते हैं (80 जीजी)।
दूसरे वर्ग की छूट में राष्ट्रीय बचत पत्र या एनएससी में पूर्व में किया हुआ निवेश आता है, जहाँ हर वर्ष में अर्जित ब्याज स्वतः ही छूट (80 सी) के लिए योग्य हो जाता है।
तीसरे वर्ग में आवासीय घर खरीदने के लिए हुए ऋण की अदायगी (80 सी) व हर वर्ष देय ब्याज (धारा 24) शामिल है। उच्च शिक्षा के लिए हुए ऋण के देय ब्याज पर भी छूट (80 ई) ली जा सकती है।
चौथे वर्ग में निर्देशित निवेश पत्र जैसे कि पीएफ, पीपीएफ, बैंक एफडी, म्युचुअल फंड की ईएलएलएस योजनाएँ, जीवन बीमा पॉलिसियों इत्यादि में निवेश करने पर छूट (80 सी, 80 सीसीएफ) ली जा सकती है। अगले सप्ताह हम उपयुक्त निवेश पत्र चुनने के औचित्य की बात करेंगे।