आयकर की धारा 80सी के तहत टैक्स प्लानिंग की बात आते ही उपलब्ध अनेक विकल्पों में से सही विकल्प चुनने की समस्या आ जाती है कि किसे चुनें और किसे छोड़ें? आइए, आज हम सही विकल्प चुनने के औचित्य की बात करें।
सबसे पहले तो आपको अनिवारिक व आदेशिक भुगतान जैसे कि मौजूदा प्रॉविडेंट फंड की कटौती, गृह लोन की किस्त का भुगतान, बच्चों की ट्यूशन फीस व पूर्व में खरीदे हुए एनएससी पर इस वर्ष प्राप्त ब्याज का जोड़ लगा लेना चाहिए।
अब दूसरे चरण में पूर्व में ली हुईं जीवन बीमा पॉलिसियों के तहत दिए हुए प्रीमियम का भी जोड़ लगाएँ, क्योंकि पॉलिसियों को जारी रखने के लिए प्रीमियम का भुगतान तो आपको करना ही है। दोनों राशियों के जोड़ को अब 80सी में निर्धारित अधिकतम लिमिट एक लाख से घटा दें। अब जो राशि आपको प्राप्त हुई है, वह राशि आपको इस वर्ष अतिरिक्त निवेश करनी है, अगर आप 80सी की लिमिट का पूरा उपयोग करना चाहते हैं।
उपलब्ध अनेक विकल्पों में उचित विकल्प का चयन करना टेढ़ी खीर है और चयन के पहले हमें अपने निवेश के उद्देश्य को तरलता, मुद्रास्फीति, जोखिम उठाने की क्षमता की कसौटी पर तौलना होगा।
धारा 80सी के तहत किए हर निवेश पर लॉक-इन नियम लागू होने से निवेशित राशि की वापसी का समय एक अहम सवाल है। पीपीएफ व जीवन बीमा पॉलिसियों में 15 वर्ष या अधिक समय का लॉक- इन होता है, वहीं एनएससी, बैंक एफडी व यूलिप्स में 5 या 6 साल का लॉक-इन होता है और म्युचुअल फंड की ईएलएसएस योजनाओं में 3 वर्ष का लॉक-इन होता है।
मुद्रास्फीति का निवेश पर गहरा असर पड़ता है। बहुत से 80सी निर्देशित निवेश-पत्र जैसे कि एनएससी, पीपीएफ व बैंक डिपॉजिट में तय दर से ब्याज मिलता है और बहुत बार इनकी ब्याज दर वास्तविक महँगाई की दर से कम होती है। फैसला आपको करना है कि क्या आपको सुरक्षा के साथ ऐसा ब्याज चाहिए, जो कि मुद्रास्फीति की दर से भी कम है।
म्युचुअल फंड की ईएलएसएस व जीवन बीमा के यूलिप्स शेयर बाजार में निवेश करने वाले निवेश-पत्र हैं। यहाँ निवेशित राशि वापस मिलने की और प्रतिफल पाने की कोई गारंटी तो नहीं होती है, पर मुद्रास्फीति से मुकाबला करने की शक्ति यहाँ जरूर मिलती है। अगर आपकी जोखिम उठाने की क्षमता बिलकुल नहीं है तो आपको इनसे दूर ही रहना चाहिए।