मुद्रास्फीति का शुद्ध ब्याज से गहरा संबंध है। 8 प्रतिशत मुद्रास्फीति के दौर में अगर किसी ऋणपत्र पर 10 प्रतिशत से ब्याज देय है, जो सही मायने में शुद्ध ब्याज सिर्फ 2 प्रतिशत ही हुआ और वह भी आयकर लगने के पहले। कुछ परिस्थितियों में जैसे कि बचत खाते की जमा राशि पर तो शुद्ध ब्याज नकारात्मक भी हो जाता है।
शेयर बाजार के जोखिम से दूर रहने वाले व फिक्स्ड इन्कम प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले कुछ निवेशक ऐसे भी हैं जो सरकारी व निजी क्षेत्र के बैंकों से मिलने वाले 10 प्रतिशत ब्याज से उपरोक्त कारणों से असंतुष्ट हैं। वे ऐसी नई योजनाओं की खोज में रहते है जहाँ तुलनात्मक अधिक ब्याज मिल सके पर ऐसा करते हुए वे कई बार अधिक जोखिम न लेने के उनके खुद के सिद्धांत को नजरअंदाज कर देते हैं।
कंपनियों की एफडी में जोखिम को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ऊँची रेटिंग प्राप्त व शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों की डिमैट एफडी में निवेश किया जा सकता है। एफडी का स्वतः ही नवीनीकरण का विकल्प का चयन भी नहीं करना चाहिए।
सहकारी क्षेत्र की कुछ बैंक सावधि जमा पर 12-13 प्रतिशत तक का ब्याज दे रही हैं। सबको ज्ञात है कि पूर्व में महाराष्ट्र व गुजरात के कई सहकारी क्षेत्र के बैंक बंद हो गए थे और निवेशकों की जमा राशि डूब गई थी। सिर्फ ठोस वित्तीय स्थिति वाले सहकारी बैंक में सावधि जमा कराई जा सकती है।
जमीन-जायदाद के कारोबार से जुड़ी कई क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसायटियाँ निवेशकों को 14-16 प्रतिशत का ब्याज देने का वादा कर रही हैं। इन सोसायटियों का मानना है कि जमीन-जायदाद में निवेशित राशि पर उन्हें हर वर्ष 24 प्रतिशत से अधिक का लाभ निश्चित रूप से मिलता रहेगा पर जरा सोचिए कि भविष्य में अगर वृद्धि की दर कम हो जाए या नकारात्मक ही हो जाए जैसा कि सन् 2008 में अमेरिका में हुआ था, तब आपकी जमा राशि पर क्या असर होगा?
वर्तमान में कई मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियाँ (एमएलएम) अपना-अपना जाल फैला रही हैं। ऐसी कई कंपनियाँ पूर्व में बंद हो चुकी हैं। कई निवेशक इन एमएलएम योजनाओं का हिस्सा बनने के बाद, अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को मेम्बर बनाने के लिए उनके पीछे पड़ जाते हैं और अंत में इसका असर उनकी दोस्ती और रिश्तेदारी पर पड़ता ही है, साथ ही निवेशित राशि कुछ ही निवेशकों को वापस मिल पाती है।