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म्यूच्युअल फंड्स के साथ टैक्स प्लानिंग

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राकेश सामर

टैक्स प्लानिंग में म्यूच्युअल फंड की ईएलएसएस योजनाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि इनमें निवेश कर निवेशक को आयकर की छूट मिलने के साथ-साथ मुद्रास्फीति से डटकर लड़ने का एक विकल्प भी मिलता है।

म्यूच्युअल फंड्स की जिन योजनाओं में आयकर की धारा 80 सी के तहत छूट उपलब्ध है, उन्हें इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम या ईएलएसएस कहा जाता है। ईएलएसएस योजनाओं में 3 वर्ष का लॉक-इन होता है, पर 3 वर्ष बाद भी निवेशित राशि को उसी योजना में निवेशित रख सकते हैं।

ख्याल रहे कि ईएलएसएस का निवेश शेयर बाजार में किया जाता है और किए गए निवेश में मूल पूँजी के वापसी की व लाभ अथवा ब्याज मिलने की भी कोई गारंटी नहीं होती है, पर इतिहास इस बात का गवाह है कि अगर इनमें योजनाबद्ध तरीके से लंबी अवधि के लिए निवेश किया जाए तो पारंपरिक ऋण-पत्रों की तुलना में इक्विटी निवेश ने अधिक लाभ निवेशकों को दिया है।

टैक्स बचाने के लिए काफी निवेशक सुरक्षित निवेश पर ज्यादा ध्यान देते हैं, पर ऐसा करते हुए वे शायद मुद्रास्फीति के शुद्ध लाभ पर प़ड़ने वाले प्रभाव को भूल जाते हैं।

5 वर्षीय बैंक एफडी एनएससी, पीपीएफ इत्यादि मूल पूँजी व प्राप्त होने वाले ब्याज के सुरक्षा की गारंटी तो होती है, पर जब मुद्रास्फीति की दर ब्याज की दर से अधिक होती है तो वास्तव में देखा जाए तो आपके पैसे की खरीद शक्ति में शनैः शनैः कमी ही होती है।

वर्तमान में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पर आधारित मुद्रास्फीति की दर करीब 11 प्रतिशत है, पर जैसा कि आप सब महसूस कर रहे होंगे कि वास्तविक महँगाई की दर इससे अधिक ही है। क्या निवेशित राशि की सुरक्षा इतनी जरूरी है कि हम अपने बचत के खरीद शक्ति में होने वाले ह्रास को मंजूर करें?

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