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2019 में मध्यप्रदेश की TOP- 20 राजनीतिक खबरें

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विकास सिंह

, शनिवार, 28 दिसंबर 2019 (11:10 IST)
साल 2019 मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक वाला साल रहा। विधानसभा चुनाव जीतकर साल की शुरुआत करने वाले कांग्रेस और भाजपा में साल भर शह-मात का खेल चलता रहा। कमलनाथ के नेतृत्व में 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस ने जहां विधानसभा चुनाव में अपना दबदबा दिखाया तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर समेट कर भाजपा ने विधानसभा चुनाव में मिली हार का एक तरह से बदला ले लिया। इसके साथ ही विधानसभा में दो भाजपा विधायकों की क्रास वोटिंग, आकाश विजयवर्गीय के बल्लाकांड और साध्वी प्रज्ञा के गोडसे गान के चलते मध्य प्रदेश, देश के सियासी फलक पर साल भर खासा चर्चा में रहा। 
 
1- विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर सूबे में 15 सालों के बाद सत्ता में आई कांग्रेस ने विधानसभा के पहले ही सत्र में मुख्य विपक्षी दल भाजपा को चारों खाने चित्त कर दिया। कांग्रेस ने संसदीय परंपरा को तोड़ते हुए विधानसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पदों पर अपना कब्जा जमा लिया। कांग्रेस की  तरफ से सीनियिर विधायक एनपी प्रजापति स्पीकर और हिना कांवेर डिप्टी स्पीकर चुनी गई।
 
2 -विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से सरकार बनाने में चूकने वाली भाजपा को  लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल हुई...भाजपा ने प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल कर सूबे में सत्ता में काबिज कांग्रेस को तगड़ी पटखनी दी। सूबे में सत्तारुढ़ कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मात्र एक सीट छिंदवाड़ा जीत पाई जहां मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ जीत हासिल कर पहली बार लोकसभा पहुंचे। लोकसभा चुनाव में करारी हार से कांग्रेस के खेमे में सन्नाटा पसर गया वहीं भाजपा नेताओं ने कमलनाथ सरकार के कभी  भी गिर जाने की भविष्यवाणी कर दी।         
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3 - लोकसभा चुनाव में वैसे तो कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है लेकिन पार्टी अपनी परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी भी नहीं बचा पाई जहां पार्टी के बड़े चेहरे और महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने ही चेले केपी यादव से हार का सामना करना पड़ा। सिंधिया की इस हार को अमेठी में राहुल गांधी की हार के बाद देश में कांग्रेस की.दूसरी सबसे बड़ी हार के रूप में देखा गया। 
 
4 -लोकसभा चुनाव में भोपाल लोकसभा सीट देश भर में सबसे अधिक सुर्खियों में रहने वाली सीट रही। कांग्रेस की  ओर से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और भाजपा की तरफ से मालेगांव बम ब्लास्ट में आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के चुनाव लड़ने से चुनाव हाईप्रोफाइल हो गया। कांग्रेस की तरफ से पूरी ताकत झोंकने के बाद पार्टी भाजपा के इस अभेध दुर्ग को गिरा नहीं सकी और चुनाव परिणाम में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की एकतरफा जीत और दिग्विजय की बड़ी हार ने सभी को चौंका दिया। 
 
5- भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने बयानों और कामों के चलते साल भर देश में खूब सुर्खियों में रही। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान शहीद हेमंत करकरे पर अपने बयान और नाथूराम गोडसे को चुनाव प्रचार से लेकर लोकसभा तक में देशभक्त बताने के चलते साध्वी प्रज्ञा विवादों में रही। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साध्वी प्रज्ञा को कभी मन से नहीं माफ करने की बात भी कही। इसके चलते साल के आखिरी में फ्लाइट में धरना देने के चलते भी भोपाल सांसद खूब चर्चा में रही।   
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6 – भोपाल सांसद के आलवा इंदौर से पहली बार विधायक बनने वाले आकाश विजयवर्गीय अपने बल्लाकांड के चलते खूब सुर्खियों में रहे। भाजपा के दिग्गज नेता और पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय ने नगर निगम के अमले की बल्ले से धुनाई कर दी। जिसके चलते आकाश विजयवर्गीय के कई रातें जेल में गुजारनी पड़ी, वही पीएम मोदी ने भी इस पूरे मामले पर नाराजगी जताई। 
 
7- साल 2019 में विधानसभा के फ्लोर पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में शह-मात का खेल चलता रहा। मॉनसून सत्र के आखिरी दिन विधानसभा में सरकार के दंड विधि संशोधन विधेयक के समर्थन में भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कौल ने कमलनाथ सरकार के समर्थन में वोट देकर अपनी पार्टी की किरकिरी करवा दी। जिस दिन सदन में यह घटनाक्रम हुआ उस दिन सुबह सदन में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने ऊपर से इशारा मिलने पर कमलनाथ सरकार को गिराने की बात कही थी। 
 
8- मध्य प्रदेश विधानसभा में अपने बल पर बहुमत से मात्र दो सीट दूर कांग्रेस को उस वक्त बड़ी जीत हासिल हुई जब उसने झाबुआ विधासनभा सीट पर हुए उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल करते हुए भाजपा को करारी मात दे दी। कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया ने भाजपा उम्मीदवार भानू भरिया को हरा कर विधानसभा पहुंचे। मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव बनी झाबुआ सीट भाजपा से छीनकर कर कांग्रेस ने बड़ी रणनीतिक जीत हासिल की। 
 
9 - विधानसभा में भाजपा को एक झटका और उस वक्त लगा जब एक पुराने मामले में भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी को कोर्ट से सजा मिलने पर उनकी सदस्यता विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने समाप्त कर दी गई। प्रहलाद लोधी ने फैसले के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई जहां से उन्हें राहत मिली बाद में पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और वहां से राहत मिलने के बाद प्रहलाद लोधी की सदस्यता बहाल हुई और विधानसभा के शीतकालीन सत्र में शामिल हुए। 
 
10 - साल खत्म होते होते विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सदन में बड़ा टकराव देखने को मिला। जिसपर विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापाति ने नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को फटकार लगा दी। जिसके बाद नाराज विपक्ष ने अगले दिन विधानसभा में डाक टिकट विमोचन कार्यक्रम का बहिष्कार किया जिसके बाद नेता प्रतिपक्ष को मानने के लिए स्पीकर खुद उनके चैंबर में गए जिसके बाद मामला शांत हुआ।            
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11- साल 2019 में प्रदेश में सत्ता में काबिज कांग्रेस अपनी गुटबाजी के चलते साल भर चर्चा में रही। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ कैबिनेट में वन मंत्री उमंग सिंघार ने एक दूसरे पर अवैध खनन सहित कई मामलों को लेकर गंभीर आरोप लगाए। आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला इस कदर बिगड़ा कि पूरा मामला दिल्ली में पार्टी हाईकमान तक पहुंच गया। इस विवाद को खत्म करने के लिए खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ को दखल देना पड़ा। 

12 – मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने बागवती तेवरों के लिए साल भर चर्चा के केंद्र में रहे। उनके पार्टी छोड़ने की खबरों से लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से दूरी की खबरें खूब सुर्खियों में रही। सिंधिया समर्थक मंत्रियों के अपनी ही सरकार पर सवाल उठाने को इसी पॉवर पॉलिटिक्स से जोड़ कर देखा गया। सिंधिया के भाजपा खेमे में जाने और अलग पार्टी बनाने की खबरें भी खूब सुर्खियों में रही। 

13 – अपने अनुशासन के लिए पहचानी जाने वाली भाजपा भी बीते साल गुटबाजी के लिए खूब सुर्खियों में रही। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के बीच की दूरियां कई मौकों पर खुलकर सामने आ गई। गुटबाजी के चलते ही सरकार बनाने में मामूली अंतर से चूकने वाली भाजपा सरकार के पहले साल में कोई खास प्रेशर नहीं बना सकी। 
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14- मध्य प्रदेश में बीते साल किसानों के मुद्दे पर खूब सियासत चमकी। कांग्रेस ने जहां किसान कर्ज माफी का एलान कर अपना वचन पूरा करने का दावा किया तो भाजपा साल भर उस कर्जमाफी की पोल खोलने में जुटी रही। बात इस कदर बिगड़ी की दोनों ही पक्षों ने अपने समर्थन में दस्तावेज और प्रमाण भी पेश किए। इसके साथ ही अतिवृष्टि से बर्बाद हुए किसानों को मुआवजे को लेकर भी जमकर सियासत हुई। 

15 – भाजपा सरकार के भष्टाचार को जोर शोर से मुद्दा बना कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार अपने लचीले रुख के चलते आलोचना का शिकार बनी। व्यापम, ई टेंडरिंग, सिंहस्थ घोटाला और नर्मदा किनारे पौधरोपण घोटाले को विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस सत्ता के पहले साल में कुछ खास नहीं कर सकी। इसके साथ ही साल भर विभिन्न संगठनों के विरोध प्रदर्शन को चलते सरकार एक दबाव में रही। 

16 –आर्थिक रुप से मध्य प्रदेश को मजबूत बनाने के लिए और प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कमलनाथ सरकार ने इंदौर में अपना पहला मैग्नीफिसेंट एमपी सम्मेलन किया। सम्मेलन में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी सरकार का रोडमैप पेश करते हुए निवेशकों को प्रदेश में निवेश के लिए बेहतर और सुरक्षित माहौल देने का वादा किया।

17- मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में बीते साल हनीट्रैप और उसके शिकार नेताओं की खूब चर्चा रही। हनीट्रैप के जाल में बड़े नेताओं के फंसे होने और सियासी दबाव में जांच प्रभावित करने को लेकर लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने सामने आई। भाजपा ने बार-बार जांच टीम बदलने पर सवाल उठाकर सीधे सरकार को घेरा। हनीट्रैप की जांच को लेकर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए। आखिरकार मुख्यमंत्री कमलनाथ को खुद सीधा दखल देना पड़ा।
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18 – साल खत्म होते होते मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश को माफिया मुक्त करने का एलान करते हुए खुद इसकी कमान अपने हाथों में ली। मुख्यमंत्री के सख्त तेवरों के बाद भोपाल, इंदौर समेत पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरु हुई। माफियाओं पर शुरु हुई इस कार्रवाई के बाद भी राजनीति शुरु हो गई और कांग्रेस और भाजपा आमने सामने आ गए।
 
19 - दिसंबर में कमलनाथ सरकार ने अपनी सरकार के एक साल पूरे किए इस मौके पर भोपाल के मिंटो हॉल में हुए कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन की उपस्थित में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 2025 तक विजन पेश किया..इसके साथ सरकार ने 365 दिन में 365 वचन को पूरा करने का ब्यौरा भी दिया।    

20- साल के आखिरी हफ्ते में नागिरकता कानून के विरोध में खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ पहली मोदी सरकार के खिलाफ पहली बार सड़क पर उतरे। भोपाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ की अगुवाई में हुई संविधान बचाओ यात्रा कमलनाथ कैबिनेट के कई मंत्री और हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ता शामिल हुए। इस मौके पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश में CAA और NRC को लागू करने से इंकार करते हुए मोदी सरकार को खुली चुनौती दे दी।  
 

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