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2019 में राजधानी दिल्ली फिर बनी गैस चैम्बर

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, मंगलवार, 31 दिसंबर 2019 (16:57 IST)
नई दिल्ली। अक्टूबर में नीले आसमान ने दिल्ली को साल के अंत में सर्दियों के मौसम में स्वच्छ हवा की आस जगाई, लेकिन शहर में कई स्रोतों से होने वाले प्रदूषण और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाए जाने से राष्ट्रीय राजधानी 2019 में एक बार फिर से ‘गैस चैम्बर’ में तब्दील हो गई। इस वजह से अधिकारियों को स्कूल बंद करने पड़े और स्वास्थ्य के लिए आपात स्थिति घोषित करनी पड़ी।
 
दिवाली के कुछ ही दिनों बाद वायु प्रदूषण 2019 में दूसरी बार आपात स्थिति वाले स्तर तक पहुंच गया, जिस पर उच्चतम न्यायालय को इस संकट का फौरी हल निकालने के लिए आपात सुनवाई करनी पड़ी और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को उच्च स्तरीय बैठक बुलानी पड़ी।
 
दिल्ली सरकार ने सितंबर में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि उसकी कोशिशों के चलते पिछले चार बरसों में वायु प्रदूषण में 25 फीसदी की कमी आई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर दिल्ली के नीले आसमान की तस्वीरें पोस्ट कीं। 
 
यहां तक कि उन्होंने डेनमार्क के कोपेनहेगन में ‘सी 40 वर्ल्ड मेयर समिट’ में वायु प्रदूषण पर सफलता की कहानी साझा की। इस सम्मेलन को उन्होंने वीडियो काफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया।
 
केजरीवाल सरकार ने लोगों को पटाखे नहीं जलाने के लिए समझाने की कोशिशों के तहत एक बड़े लेजर शो का भी आयोजन किया। हालांकि, काफी संख्या में लोगों ने इस साल भी पटाखे जलाने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा तय की गई दो घंटे की समय सीमा का धड़ल्ले से उल्लंघन किया।
 
हरित पटाखों को विक्रेताओं और खरीददारों ने भी तवज्जो नहीं दी। इसका कारण संभवत: उनमें विविधता का अभाव, सीमित भंडार और ऊंची कीमतें रहीं। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायर्नमेंट (सीएसई) ने दावा किया कि दिवाली पर जलाए गए पटाखों की शहर की वायु गुणवत्ता को बदतर करने में बड़ी भूमिका थी।
 
इसके बाद नवंबर में दिल्ली और एनसीआर के आसमान में धुंध की चादर छा गई और वायु गुणवत्ता ‘गंभीर प्लस’ श्रेणी में पहुंच गई। इस पर शीर्ष न्यायालय से अधिकार प्राप्त पर्यावरण प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) प्राधिकरण को कदम उठाना पड़ा और जन स्वास्थ्य आपात स्थिति घोषित की गई।
 
धुंध के कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा, लोगों को मॉस्क लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जबकि अन्य लोगों ने ज्यादातर समय घरों से बाहर नहीं निकलने का विकल्प चुना।
 
पर्यावरणविदों ने बीसीसीआई को पत्र लिखकर तीन नवंबर को होने वाले भारत/बांग्लादेश टी20 मैच दिल्ली से बाहर कराने का अनुरोध किया। स्कूली बच्चों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रदूषण की बदतर स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग की।
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी तेज हो गए। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को ‘गैस चैम्बर’ में तब्दील करने के लिए पड़ोसी राज्यों, खासतौर पर हरियाणा और पंजाब में पराली जलाए जाने को जिम्मेदार ठहराया।
 
सरकार की वायु गुणवत्ता एवं पूर्वानुमान सेवा, ‘सफर’ ने कहा कि कृषि अवशेषों को जलाने से दिल्ली में प्रदूषण एक नवंबर को 44 फीसदी बढ़ गया। जबकि सीपीसीबी के डेटा से यह प्रदर्शित हुआ कि पंजाब में कृषि अवशेषों को जलाए जाने में वृद्धि हुई है, लेकिन हरियाणा में पराली जलाए जाने में कमी आई है।
 
उच्चतम न्यायालय ने प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए कदम उठाया और पराली जलाने को लेकर राज्यों को फटकार लगाई। न्यायालय ने उनसे किसानों को वित्तीय मदद देने को कहा ताकि वे फसल अवशेषों का प्रबंधन कर सकें। न्यायालय ने 10 दिसंबर तक सभी निर्माण कार्य एवं तोड़फोड़ गतिविधियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
 
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार वाहनों की सम-विषम (ऑड-ईवन नंबर) व्यवस्था का तीसरा संस्करण लेकर आई लेकिन विशेषज्ञों और शीर्ष न्यायालय ने इसके प्रभाव पर सवाल किए। मौसमी दशाओं से राहत एवं बारिश तथा तेज हवाओं ने शहर के बाशिंदों को प्रदूषण से राहत की सौगात दी।
 
शीर्ष न्यायालय ने केंद्र और शहर की सरकार को चीन की तर्ज पर दिल्ली में एक विशाल ‘स्मॉग टावर’ (वायु को शुद्ध करने के लिए) बनाने को कहा। लेकिन पर्यावरणविदों एवं विशेषज्ञों ने कहा कि यह महंगा और अक्षम है जो सिर्फ इसके निर्माताओं एवं विक्रेताओं को फायदा पहुंचाएगा।
 
सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण के मुताबिक पिछले तीन बरसों में कई अहम कदम उठाए गए हैं जिनमें दिल्ली में कोयला के उपयोग पर प्रतिबंध से लेकर वाहनों के लिए स्वच्छ ईंधन की ओर बढ़ना और प्रदूषण के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार ट्रकों के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाना आदि शामिल हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि ये पर्याप्त कदम नहीं हैं।
 
उन्होंने कहा कि शहर को फिर से गैस चैम्बर में तब्दील होने से बचाने के लिए पराली के प्रबंधन को लेकर सतत समाधान, बिजली संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण पर रोक, स्वच्छ ईंधन आधारित उद्योग, मजबूत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और व्यापक जनजागरूकता की जरूरत है।
 

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