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हर्षल सिंह राठौर
विदेश में पढ़ाई करना, वहाँ बेहतर से बेहतर नौकरी पाना और डॉलर में कमाई कर अपने ही देश लौट आराम से जीवन बिताना भला किसे अच्छा नहीं लगता। सालों से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, इंग्लैंड और कनाडा उन युवाओं की आशा को पूरा करते आ रहे हैं जिनके मन में कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश है फिर चाहे बात विदेश में पढ़ाई के अलावा वहीं रहकर जॉब करने की हो या वहाँ से शिक्षा ग्रहण कर अपने देश में सपनों को साकार करने की।
प्रेक्टिकल को प्राथमिकता
इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, होटल मैनेजमेंट, आईटी, फाइन आर्ट, आर्किटेक्ट वकालत आदि का ज्ञान लेने के लिए विदेशों का रुख करने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका कारण वहाँ की शिक्षा प्रणाली में थ्यौरी के अलावा प्रेक्टिकल नॉलेज का प्रमुखता से समावेश होना है।
रोजगार के बेहतर अवसर
इसके अलावा एक सच यह भी है कि आज भी हमारे देश में विदेश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से पढ़कर आने वाले को बेहतर जॉब आसानी से मिल जाती है। पंजाब और गुजरात के कई नगरों व गाँवों के अधिकांश घर आज ऐसे हैं जहाँ से कम से कम एक व्यक्ति विदेश में या तो पढ़ रहा है या पढ़ाई पूरी कर रोजगार प्राप्त कर चुका है। इतना ही नहीं विदेश से भारत आने वाली मुद्रा का इन प्रदेशों में सकारात्मक उपयोग भी होता नजर आ रहा है।
इतनी भी मुश्किल नहीं
विदेश में पढ़ने की ख्वाहिश रखने वाले विद्यार्थियों के मन में अक्सर यह बात उठती है कि विदेश के विश्वविद्यालय में प्रवेश किस तरह पाएँ। क्या भारत के आला दर्जे के विश्वविद्यालयों की तरह विदेश के विश्वविद्यालय में भी प्रवेश पाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। कुछ ऐसी परीक्षाएँ जिनमें पास होकर आप विदेश के हावर्ड, ऑक्सफोर्ड, एडिनबर्ग, ऑस्ट्रेलियन कैथोलिक, स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन जैसी यूनिवर्सिटीज में प्रवेश ले सकते हैं और अपना आने वाला कल सँवार सकते हैं। टॉफैल, सैट जैसी परीक्षाओं द्वारा विदेशों के विश्वविद्यालयों में प्रवेश लिया जा सकता है। पैसे की भी कोई ज्रूादा मुश्किल नहीं है। आजकर लगभग सभी बैंक आसान शर्तों पर शैक्षिक ऋण देते हैं।