यह कैसे हो सकता है कि दूसरों के चेहरे पर नूर बरसाने वाले का करियर चमकदार न हो? डेंटिस्ट्री निश्चित ही आज की नई दुनिया का एक ऐसा प्रोफेशन है, जिसका आज भी चमकदार है और कल तो और भी ज्यादा चमकदार होगा। जहाँ तक भारतीय दंत चिकित्सा क्षेत्र का प्रश्न है वह अत्यधिक चमकदार है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से यह एक परिष्कृत पेशा अर्थात साफिस्टिकेटेड प्रोफेशन के रूप में उभरा है। कल तक यह आलम था कि डेंटिस्ट को ग्राहकों का इंतजार होता था और आज हालत यह है कि अपना मुँह पकड़े ग्राहक घंटों डेंटिस्ट के क्लिनिक पर सोचता रहता है मेरा नंबर कब आएगा।
विदेशों में दाँतों के प्रति शुरू से ही जागरूकता बनी हुई है, लेकिन अब विदेशियों में यह जागरूकता भी आ गई है कि भारत में ओरल ट्रीटमेंट न केवल सस्ता है, बल्कि इस क्षेत्र में उन्हें दी जाने वाली सर्विसेज भी वर्ल्ड क्लास है। यही कारण है कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे अतिविकसित देशों के लोगों का ओरल ट्रीटमेंट के लिए भारत आने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।
सबसे अच्छी बात यह है कि विदेशी प्रवासियों को भारत में न केवल सस्ती और अच्छी उपचार सुविधा मिल जाती है बल्कि वे अपने देश से कम खर्च कर यहाँ पर्यटन और आराम का मजा भी उठा रहे हैं और इससे हमारे डेंटिस्टों की झोली भी खनाखन करते नहीं थक रही है।
पिछले साल ही लंदन में रहने वाले एक दंपति भारत आए थे। उन्होंने दिल्ली स्थित सरकारी अस्पताल से नई बत्तीसी बनवाई। इस पर उन्हें मात्र 700 रुपए का खर्च आया था। उन्होंने बताया कि यदि यही बत्तीसी वे लंदन में बनवाते तो इस पर उन्हें 5000 पौंड अर्थात लगभग चार लाख रुपए खर्च करना पड़ते। इसी तरह विदेशों में सभी तरह का ओरल ट्रीटमेंट अत्यधिक महँगा है।
अमेरिका में नागरिक हर साल औसतन 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर जितनी भारी भरकम राशि दंत सेवाओं पर खर्च करते हैं जिसमें जाँच से लेकर इम्प्लांट तथा नई कास्मेटिक व्हाइटिंग सेवा भी शामिल है। इसने भारत के लिए डेंटल टूरिज्म का कार्य क्षेत्र बढ़ाकर भारतीय डेंटिस्ट का भविष्य जगमग कर दिया है।
विदेशों में भविष्य
जहाँ तक विदेशों का प्रश्न है दुनिया के सारे देशों में डेंटिस्ट्री को एक सम्मानजनक प्रोफेशन माना जाता है। कई विकसित देशों में डेंटिस्ट सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाले प्रोफेशनल्स माने जाते हैं। कई देशों में तो यह हालत है कि लोगों को डेंटल एपॉइंटमेंट के लिएदो से लेकर तीन महीने लंबा इंतजार करना पड़ता है और इस इंतजार के बावजूद वे दंत चिकित्सा पर जो राशि हँसते-हँसते देते हैं वह भारत में उसी उपचार पर होने वाले व्यय से हजार गुना तक ज्यादा होता है।
आसान नहीं है परदेस की डगर
इसका यह मतलब भी नहीं है कि यहाँ से बीडीएस की डिग्री लेकर आप सीधे यूएसए, ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड जाकर सीधे प्रैक्टिस कर अपनी झोली भरने लग जाएँ। कई देशों द्वारा भारत की चार वर्षीय बीडीएस डिग्री को मान्य नहीं किया जाता है। यदि कोई भारत से बीडीएस कर यूएस में प्रैक्टिस करना चाहे तो पहले उसे कुछ बेसिक एक्जाम क्लीयर करनी होगी और फिर दो साल तक अंडरग्रेजुएट कोर्स अलग से करना होगा।
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में प्रैक्टिस करने से पहले लाइसेंसिंग परीक्षा देनी पड़ती है उसे पास करने के बाद ही वहाँ प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस दिया जाता है। तथापि इन परीक्षाओं में वही कुछ पूछा जाता है जो कि आपने बीडीएस के दौरान पढ़ा होता है। यह बात गौरतलब है कि यह परीक्षा जितनी कठिन होती है उसमें शामिल होने की फीस भी उतनी ही ज्यादा होती है। फिर भी यह कोई महँगा सौदा नहीं है क्योंकि वहाँ डेंटिस्ट एक महीने में जितना कमा लेते हैं, हमारे यहाँ उतनी आय बरसों तक नहीं होती।
क्या करे सरकार?
डेंटिस्ट्री के उज्ज्वल भविष्य तथा मेडिकल टूरिज्म से होने वाली आय को देखते हुए यह सरकार का भी दायित्व बनता है कि वह इस उभरते तथा कमाऊ क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए अपनी ओर से पहल करे।
उसे भारतीय जनमानस में दंत सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न स्थानों पर मल्टी स्पेशिएलिटी सेंटर स्थापित करना चाहिए। उसे डेंटल टूरिज्म को बढ़ावा देकर प्रोत्साहित करने के लिए उसे प्रमोट करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा विदेशी प्रवासी दंत निर्वाण के लिए भारत आएँ। इससे न केवल उसकी विदेशी मुद्रा में वृद्धि होगी बल्कि युवाओं को डेंटल साइंसेज में एक नया आसमान मिल जाएगा।